भरे जो ज़ख़्म तो दागों से क्यों उलझें?
गई जो बीत उन बातों से क्यों उलझें ?
उठाकर ताक़ पे रख दीं सभी यादें,
नहीं जो तू तेरी यादों से क्यों उलझें ?
ख़ुदा मौजूद है जो हर जगह तो फिर,
अक़ीदत केश बुतख़ानो से क्यों उलझें ?
ये माना थी बड़ी काली शबे फ़ुरक़त,
सहर जब हो गयी रातों से क्यों उलझें ?
हवाएँ जो गुलों से खेलती थीं कल,
मेरे महबूब की ज़ुल्फ़ों से क्यों उलझें ?
इसी कारण नहीं रोया तेरे आगे,
मेरे आँसू तेरी पलकों से क्यों उलझें ?
नदी ये सोच कर चुपचाप बहती है,
सदायें उसकी वीरानों से क्यों उलझें ?
उन्हें क्या वास्ता आलोक जी ग़म से,
गुलों के आशना ख़ारों से क्यों उलझें ?
- आलोक यादव
जन्म : 30 जुलाई कायमगंज, फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : बी0 एससी0 (लखनऊ विश्वविद्यालय) एम0बी0ए0 (इलाहबाद विश्विद्यालय)
सम्प्रति : वर्ष 1998 में संघ लोक सेवा आयोग से सहायक भविष्य निधि आयुक्त पद पर चयन
वर्तमान में क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त पद पर बरेली में तैनात
उपलब्धियां : 1 इंटरनैशनल इंटल इंटेलेक्चुअल पीस एकेडमी द्वारा डॉ इकबाल उर्दू अवार्ड 2014
2 डॉ आसिफ बरेलवी अवार्ड 2014 से सम्मानित
प्रकाशन: 1. ‘सरिता’, ‘मुक्ता’, ‘धर्मयुग’, ‘मनोरमा’, ‘फेमिना’, ‘गृह शोभा’, ‘आधार शिला’, ’दैनिक जागरण’, ‘अमर उजाला’ आदि पत्र पत्रिकाओं में लेख, कवितायेँ, ग़ज़ल आदि प्रकाशित I
- आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारण I
- उर्दू दैनिक “इंक़िलाब”, “पैग़ाम-ए-मादरे वतन” एवं उत्तर प्रदेश सरकार के उर्दू मासिक “नया दौर” में गज़लें प्रकाशित I
- अयन प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित प्रशासनिक अधिकारियों के ग़ज़ल संग्रह ‘इज़्तिराब’ का संपादन
- सदा आर्ट सोसाइटी, नई दिल्ली के नाटक “ए सोल सागा” में गीत लेखन
वर्तमान पता : पीलीभीत बाईपास रोड, बरेली – 243006