ऑन लाइन खर्राटे !

कोरोना काल का एक  व्यंग्य
ऑन लाइन खर्राटे !
गिरीश पंकज
 खर्राटे तो खर्राटे होते हैं, जिसे सुनकर  खुर्राट व्यक्ति भी घबरा जाता है। खर्राटे होते ही ऐसे हैं। सुमधुर गायिका भी जब खर्राटे लेती है, तो लोग चकित हो कर सोचते हैं, इतने मधुर सुर में गाने वाली गायिका के खर्राटे  इतने असुर यानी सुरहीन कैसे हो गए। खर्राटे शालीन व्यक्ति को भी कुछ घण्टों के लिए अशालीन टाइप का बना देते हैं। वह जब सोता है तो लगता है, खर्राटे के बहाने अपने भीतर की दबी-कुचली अशालीनता को बाहर निकाल रहा है। हमारे एक मित्र ने अपने एक खर्राटेबाज मित्र के खर्राटे को टेप करके जब उनके ही कान में लगाकर उन्हें सुनाया, तो वह हड़बड़ा कर जागे और कहने लगे,  “यह क्या बदतमीजी है ? ये.. ये.. किसकी आवाज सुना कर  मुझे डरा रहे हो ? ” तब सामने वाले ने कहा,  “बदतमीजी नहीं, यह आपके ही सुमधुर  ‘टेपित’- खराटे हैं, जो हम आपको सप्रेम लौटा रहे हैं।”  मित्र की बात सुनकर उन्होंने शरमाते हुए कहा, ” क्या करें, यह हमारी खानदानी आदत है। पिताजी राजनीति में थे। अकसर खर्राटे लिया करते थे। चाहे घर हो, चाहे विधानसभा अथवा कोई सार्वजनिक स्थल,  बस मौका मिलता था तो एक नींद मार कर खर्राटे भरने लगते थे। उनकी आदत मुझसे चिपक गई है।”
तो ऐसे होते हैं खर्राटे । कुछ खर्राटे  कानफाड़ू होते हैं।  कुछ  खर्राटे ऐसे लगते हैं गोया सोने वाले की आत्मा विलाप कर रही है। कुछ खर्राटे सागर की लहरों की तरह होते हैं । जमकर आते हैं,  फिर कुछ देर शांत हो कर लौट जाते हैं। मगर फिर आ धमकते हैं। कुछ खर्राटे हरामी बम की तरह होते हैं और कुछ खर्राटे फुसफुसिया बम जैसे। जिन्हें झेला जा सकता है।
अचानक ये खर्राटा -प्रसंग  छेड़ने के पीछे  दरअसल एक बड़ा खर्राटा है। नहीं-नहीं एक बड़ा कारण है।  देश में जब पिछले दिनों लॉक डाउन लागू हुआ, तो एक खर्राटेबाज़ की मानो निकल पड़ी। सरकार ने आदेश दिया कि “कोरोना नामक वायरस-दैत्य से निपटने के लिए घर पर रहकर ही लोग काम करें। उसी में देश की भलाई है।” यह आदेश सुनते ही अपने खर्राटों के लिए कुख्यात नटवरलाल छेदी की बल्ले-बल्ले हो गई । वह खुशी से अपने घर पर ही नाचने लगा। नाचते-नाचते उसे पता ही न चला कि कब उसके पायजामे का नाड़ा ढीला हो गया है। थोड़ी देर बाद ही वह आदिम युगीन अवस्था में आ गया। उसकी यह हालत देख कर उसकी पत्नी लज्जा से जल-जल हो गई। बेटे ने आंखें मूंद लीं।  तब नटवरलाल को सहसा आत्मज्ञान हुआ कि वह किस अवस्था को प्राप्त हो गया है। उसने सॉरी- सॉरी.. बोलकर नाड़ा टाइट किया और पत्नी से कहा, ” ए सुमुखी, इस कृत्य के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मारे खुशी के मैं भी लंपटाई को प्राप्त कर गया था। दोबारा से ऐसी गलती नहीं होगी। दरअसल,
 बड़े भाग लॉक डाउन पावा।
मारे खुशी के रुक न पावा।
इसीलिए हुई गवा कबाड़ा।
खुल गया पजामे का नाडा।”
 पत्नी ने  पति की तुकबंदी को दरकिनार करते हुए और अपने आक्रोश का विषपान करते हुए कहा, “हे स्वामी, खुशी का यह जो रूप मैंने अभी देखा है, इसे कभी बाहर न प्रदर्शित कीजिएगा । वरना आपको किसी पागलखाने में भेज दिया जाएगा। या फिर आप जब घर लौटेंगे, तो आपकी पीठ  सूजी हुई मिलेगी।” फिर पत्नी ने फौरन विषय बदलते हुए कहा, ” यह लॉक डाउन का समय है। अब घर पर ही रहना है लेकिन शालीनता के साथ । अब आपको अपने दफ्तर के सारे काम घर पर ही करने हैं और ऑनलाइन ही करने हैं। यह तो आपको पता ही है।”
पत्नी की बात सुनकर नटवरलाल छेदी गंभीरता के साथ सोचने लगे कि दफ्तर में तो अकसर नींद ले लिया करते थे और जमकर खर्राटे भरते थे, तो क्या अब ऑनलाइन खर्राटे भरने होंगे? पत्नी से अपनी जिज्ञासा रखते हुए नटवरलाल ने कहा, ” हे रामभरोसे की पुत्री, मेरी प्रानखादेश्वरी, मेरे मन की शंका का तुम ही समाधान करो ।”
पत्नी मुस्कुराते हुए बोली, ” स्वामी, कामचोरी की यह खानदानी परंपरा आप तो घर पर भी जारी रख सकते हैं । दिखाने के लिए थोड़ा-सा काम कीजिए, फिर चैन से खर्राटे लीजिए। कौन देखने आया है कि आप क्या कर रहे हैं? अगर ऊपर से कोई फोन आए, तो कह दीजिए कि ससुरा इंटरनेट काम नहीं कर रहा है। बस,  मौजा -ही- मौजा है आपका। आराम से यूट्यूब में फिल्में देखिए। गाने सुनिए।” पत्नी की बात सुनकर नटवरलाल गदगदा गए और बोले, ” तुमने मेरे मन की बात कह दी। तुम बड़ी अच्छी हो।”
पति को खुश करने की अपनी पारम्परिक कला पर पत्नी मुस्कुराती हुई बोली, “सचमुच मैंने आपके मन की बात की है। मेरे मन की बात तो कुछ और है। वैसे मैं तो चाहती हूं कि सरकार को आप धोखा न दें।कभी कभी ईमानदारी के साथ भी काम करें लेकिन ऐसी सलाह देने के बावजूद आपको जो करना होता  है,वही करते हैं इसीलिए मैंने आपके मन की बात कही है।”
पत्नी की बात सुनकर नटवरलाल छेदी का चेहरा लटक गया और वे सोचने लगे, कामचोरी करूं या ना करूं? करूं तो कितना करूं ? सरकार के खौफ से डरूं तो कितना डरूं? सरकार को हमेशा की तरह ठगूँ या ना ठगूँ?  फिर उन्होंने यह भी सोचा कि जिसे देखो वही सरकार को चूना लगाने पर तुला रहता है, तो मैं क्यों अंतुला रहा हूं। मैं भी मुख्यधारा में शामिल हो जाऊं और लॉक डाउन का इस्तेमाल करके दो-चार किलो वजन बढ़ा लूँ। खाओ पियो और मौज करो। दफ्तर का काम घर पर ही करूँ, यानी यहीं खर्राटे लूँ। हाँ, यह काम ऑनलाइन हो कर भी किया जा सकता है। ऐसा करने से कार्यालय को भी लगेगा कि बंदा कुछ काम कर रहा है। यहां घर पर खर्राटे लेता रहूंगा। खर्राटे की आवाज तो दफ्तर  तक जाने से रही । इतना सोच कर नटवरलाल छेदी  एक बार फिर नाचने लगे लेकिन नाचने से पहले एक बार उन्होंने पायजामे के नाड़े का निरीक्षण किया, जो मजबूती के साथ बंधा हुआ था। फिर भी सुरक्षा की दृष्टि से उसे एक हाथ से पकड़ कर नाचने लगे।  पिता की हरकत देख कर उनके हाईटेक होनहार बेटे ने उनकी चंचल मुद्रा का वीडियो बना लिया। फिर बाद में अपने महान पिता को दिखाते हुए कहा, “हैलो डैड, लॉकडाउन की आपकी  इस खुशी को क्यों न मैं अब विश्वव्यापी कर दूं ? इसे फेसबुक में पोस्ट कर देता हूं ।”
इतना सुनना था कि नटवरलाल छेदी के होश उड़ने लगे। उन्होंने बेटे के सामने हाथ जोड़कर कहा, “अरे, ओ कुल कलंकी, तू अपने बाप की फजीहत कराने पर क्यों तुला हुआ है, बे? भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता हिरणकश्यप को निपटाया था। कलयुग में तू अपने आप को निपटाने पर तुला हुआ है?”
इस पर बेटा मुस्कुरा कर बोला, “आप भी तो सरकार को निपटाने में लगे हुए हैं।” इतना बोल कर लड़के ने कहा,” डोंट वरी डैड, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा।  मैंने तो मनोरंजन के लिए यह वीडियो बना बनाया है । जब कभी मेरा या मम्मी का मूड खराब होगा, तो हम लोग इस वीडियो को देख कर खुश हो लिया करेंगे ।”
लायक पुत्र की बात सुनकर नटवरलाल छेदी की जान-में-जान आई और उसने बेटे से कहा, ” यह वीडियो मुझे भी भेज दे । कभी-कभी मैं भी अपने वीडियो को देखकर खुश हो जाया करूंगा । आज के समय में किसी के पास खुश होने का अवसर ही कहां रहता है? लॉकडाउन के बहाने देश के अनेक सरकारी -गैर सरकारी कर्मचारी खुशी से नाचे तो रहे हैं । वरना तो कर्मचारियों का काम कर कर के तेल ही निकल रहा था। अब जाकर लोगों के दिल को थोड़ा-सा करार आया है।”
पिता की बात सुनकर पुत्र ने पूछा, ” तो क्या देश में सारे कर्मचारी दफ्तर में काम चोरी करते हैं ? और खर्राटे लेते रहते  हैं ? ओह ! यही तो मार खा रहा है अपना इंडिया।”
बेटे की बात सुनकर नटवरलाल छेदी कुछ-कुछ शर्मिंदा हुए और बोले, ” नहीं मेरे लाल, पीले, हरे! मेरे जैसे दो-चार लोग ही  होंगे, जो कामचोरी की इस कला में पारंगत हैं। बाकी तो मन लगा कर काम करते  हैं”।
इस पर पुत्र ने कहा, ” तो पिताजी, आप भी अब काम करना शुरू कीजिए न। सोच लीजिए अगर इससे आपकी आत्मा को कोई परेशानी ना हो तो?”
बेटे की बात सुनकर नटवरलाल छेदी को लगा कि अब  अपनी मां के साथ बेटा भी व्यंग्य करने लगा है। अब तो सुधर जाना चाहिए। ईमानदारी के साथ काम शुरू कर दिया जाय। इतना सोच कर नटवर ने बेटे से कहा, “आज से मैंने संकल्प ले लिया है कि घर हो चाहे बाहर, मुझे मन लगाकर काम करना है।”
इतना बोल कर नटवरलाल छेदी अपने कमरे में गए और कमाल ही हो गया। वह कंप्यूटर खोलकर ऑनलाइन काम करने लगे। लेकिन हमेशा की तरह कुछ देर बाद ही उनके खर्राटे शुरू हो गए। कुछ लोगों के लिए खर्राटे भरना भी  एक बड़ा काम रहता है । उधर नटवरलाल दफ्तर से ऑन लाइन जुड़े हुए थे और इधर उनके बुलंद-खर्राटे भी ऑन लाइन जारी थे। फुल स्पीड के साथ । दफ्तर के लोग बड़े खुश थे कि देखो, सुतक्कड़ नटवरलाल छेदी घर पर ऑनलाइन काम कर रहे हैं। कितने अच्छे हैं।

-गिरीश पंकज

प्रकाशन : दस व्यंग्य संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, भ्रष्टचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं, नेताजी बाथरूम में, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फारमूले, चमचे सलामत रहें, एवं सम्मान फिक्सिंग। चार उपन्यास – मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), पॉलीवुड की अप्सरा एवं एक गाय की आत्मकथा। नवसाक्षरों के लिए तेरह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। 2 गज़ल संग्रह आँखों का मधुमास,यादों में रहता है कोई . एवं एक हास्य चालीसा।

अनुवाद: कुछ रचनाओं का तमिल, तेलुगु,उडिय़ा, उर्दू, कन्नड, मलयालम, अँगरेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद। सम्मान-पुरस्कार : त्रिनिडाड (वेस्ट इंडीज) में हिंदी सेवा श्री सम्मान, लखनऊ का व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टïहास युवा सम्मान। तीस से ज्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार।

विदेश प्रवास: अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड एंड टुबैगो, थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई एवं दक्षिण अफीका। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से सीधा काव्य प्रसारण। श्रेष्ठ ब्लॉगर-विचारक के रूप में तीन सम्मान भी। विशेष : व्यंग्य रचनाओं पर अब तक दस छात्रों द्वारा लघु शोधकार्य। गिरीश पंकज के समग्र व्यंग्य साहित्य पर कर्नाटक के शिक्षक श्री नागराज एवं जबलपुर दुुर्गावती वि. वि. से हिंदी व्यंग्य के विकास में गिरीश पंकज का योगदान विषय पर रुचि अर्जुनवार नामक छात्रा द्वारा पी-एच. डी उपाधि के लिए शोधकार्य। गोंदिया के एक छात्र द्वारा गिरीश पंकज के व्यंग्य साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर शोधकार्य प्रस्तावित। डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा संपादित सहित्यिक पत्रिका साहित्य वैभव, रायपुर द्वारा पचास के गिरीश नामक बृहद् विशेषांक प्रकाशित।

सम्प्रति: संपादक-प्रकाशक सद्भावना दर्पण। सदस्य, साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं सदस्य हिंदी परामर्श मंडल(2008-12)। प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्टभाषा प्रचार समिति, मंत्री प्रदेश सर्वोदय मंडल। अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध।

संपर्क :रायपुर-492001(छत्तीसगढ़)

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