गुजरात में हिंदी प्रचार प्रसार में शिक्षा संस्थाओं का योगदान

हिंदी साहित्य के विकास में गुजरात का योगदान ११ वीं और १२ वीं शताब्दी से ही हो रहा है| भारत में मात्र गुजरात ही एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है| गुजरात के इतिहास पर जब हम विचार करें तो उत्तर में मेवाड़, मारवाड़, कच्छ, सिंध को पार करके दक्षिण में दमण गंगा और मुंबई थाना के अधिकाँश जिले एवं पूर्व में मालवा खानदेश तथा सह्याद्री पर्वत श्रेणी तक इसके अतिरिक्त पश्चिम में अरबी समुद्र तक माना  गया है| और कहा गया है जहाँ जहाँ गुजराती गए है वहां गुजराती भाषा का विकास भी हुआ है| लेकिन इन गुजरातियों ने गुजराती के साथ हिंदी को साथ साथ प्रचारित करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है|

गुजरात में १२ वी शताब्दी के आसपास जैन आचार्य हेमचंद्र सूरी से लेकर कवि दयाराम के पूर्ववर्ती काल तक 18 वीं शताब्दी तक गुजरात में हिंदी भाषा साहित्य का उद्भव और विकास धीरे-धीरे हो रहा था| गुजरात हमेशा हिंदी भाषा-भाषी प्रदेशों के साथ निकटता से रहा भारत के बहुत से यात्री गुजरात, मध्य प्रदेश से गुजरते हैं | गुजरात धार्मिक स्थल होने के कारण भी हिंदी प्रदेश के लोगों का आना जाना लगा रहता है | गुजरात धार्मिक सांस्कृतिक सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए राजमार्गों का भी योगदान रहा है| “एक तो हिंदी भाषी प्रदेश का निकटवर्ती प्रदेश होने के कारण, दूसरे वल्लभ–सम्रदाय, स्वामीनारायण–सम्प्रदाय, सूफी सम्प्रदाय,जैन सम्प्रदाय और संत मत के व्यापक प्रभाव के कारण, तीसरे गुजरात के मुसलमान बादशाहों और राजपूत राजाओं के हिंदी –प्रेम के कारण गुजरात के अंचल में हिंदी को फलने का –फूलने का पर्याप्त अवसर मिला था|”(१)

कहा जाता है कि प्राचीन काल से ही राजनीतिक परिस्थितियों का गुजरात के हिंदी भाषा साहित्य के उद्भव एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा | गुजरात में हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार में जहां तक सांस्कृतिक चेतना की भूमि का प्रश्न है वल्लभी विद्यापीठ भारत के प्रथम स्थानीय विद्यापीठों में मानी जाती हैं| भारत के अनेक राज्यों के विभिन्न भाषा-भाषी तथा अनेक धर्मों के मर्मज्ञ उच्च दार्शनिक वैज्ञानिक साहित्य शास्त्रीय शैक्षणिक तथा आध्यात्मिक उपाधियां प्राप्त करने के उद्देश्य से यहां आया करते थे | देश में समय-समय पर होने वाले कुंभ स्नान मां कृष्णा, माघ स्नान, नवरात्रि, दशहरा, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस कथा, बड़े उत्सव और मेलों के साथ पशुओं के मेले तथा संतों का समागम जिसके कारण हिंदी का प्रचार प्रसार हुआ | भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम ही नहीं, भावनाओं की अभिव्यक्ति और संस्कृति की संरक्षिका भी है| गुजरात को संतों की भूमि भी कहा गया है| नेमिनाथ, श्री कृष्ण, शंकराचार्य, नाथमुनि, रामानुज, रामानंद, ज्ञानी जी, कबीर, कमाल वल्लभाचार्य, विट्ठलनाथ, नानक, पीपाजी, मीराबाई जैसे संतों का गुजरात में आना जाना रहा | कुछ संतों के विचारों से गुजरात के लोग भी अछूते नहीं रहे | स्वर्गीय कमला शंकर, प्राण शंकर त्रिवेदी ने गुजराती को हिंदी का पुराना प्राकृतिक रूप माना क्योंकि हिंदी और गुजराती दोनों ही किसी निकली हुई है|

जब हम साहित्यकारों की बात करते हैं तो भालण की ब्रजभाषा में लिखित रचनाएं ध्यान आकर्षित करती हैं| मीराबाई के पदों में राजस्थानी एवं गुजराती मिश्रित रचनाओं के अतिरिक्त ब्रजभाषा की रचनाएं भी काफी प्रचलित रही| इसी युग में जैन कवि लावण्य समय का उल्लेख मिलता है, उन्होंने गुजराती के साथ खड़ी बोली का प्रयोग किया ‘संत प्रिया’ और ‘ब्रह्म लीला’ दोनों ही ब्रज मिश्रित खड़ी बोली में लिखने वाली कवि अखा भगत को कौन नहीं जानता | गुजराती भाषा के हिंदी पुरस्कर्ता लल्लू लाल जी को भी इस संदर्भ में याद करना उतना ही हिंदी की गद्य रचनाओं का खजाना दिया है| कवि दलपतराम, दुलाभाई काग, सुंदरम, राजेंद्र शाह आदि सभी साहित्यकारों ने हिंदी में भी लेखन कार्य किया हिंदी एक ऐसी भाषा है जो केवल भारत को ही नहीं विश्व को एक कड़ी में बांधने के लिए सक्षम मानी जा सकती है, क्योंकि यह प्यार की भाषा है | मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों में कहें तो “जिसको न निज भाषा तथा निज देश पर अभिमान है, वह नर नहीं पशु है और मृतक समान है|”

 

आधुनिक युग में एक तरफ ग्लोबल विलेज और एक भाषा अंग्रेजी का जहाँ वर्चस्व है वहां विश्वविद्यालयों में हिंदी विषय को पढ़ाकर हमारी साहित्यिक परंपरा को जिन्दा रखा है| सभी विश्वविद्यालय में बी.ए. से लेकर एम.ए. तथा शोध के विषयों में भी हिंदी साहित्य को अध्ययन अध्यापन का कार्य किया जा रहा है| गुजरात के महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के  बारे में संक्षिप्त जानकारी दूंगी|

 

गुजरात के विश्वविद्यालयों का हिंदी में योगदान-

 

भारत के विभिन्न प्रदेशों में जहां हिंदी पढ़ाई जाती है उसकी तुलना में गुजरात में हिंदी का विशेष महत्व रहा है| गुजरात सरकार ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया है| गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने सन 1920 में उसके बाद बड़ौदा में सयाजीराव विश्वविद्यालय की स्थापना 1949 में हुई| गुजरात विश्वविद्यालय की स्थापना 1950 में हुई हिंदी माध्यम की दृष्टि से 1955 में सरदार पटेल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई| इस में गुजरात विश्वविद्यालय का क्षेत्र विस्तार काफी कोटा जा रहा हूं बारिश के चलते दो विश्वविद्यालय सामने आए सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी और दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी इसके अलावा एसएनडीटी यूनिवर्सिटी जो वर्तमान में गुजरात यूनिवर्सिटी के साथ जोड़ दी गई थी| इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी दिल्ली डॉ आंबेडकर यूनिवर्सिटी इन सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्यापन कार्य हो रहा है जैसे कि अनिवार्य हिंदी के रूप में और हिंदी के रूप में बी.ए के छात्रों को  हिंदी के रूप में मुख्य हिंदी और गौण हिंदी पढ़ाया जा रहा है |

 

1. गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद-

 

गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद में हिंदी का पठन-पाठन कई स्तरों पर कराया जाता है हिंदी सेवक की उपाधि भी यहां प्राप्त की जा सकती है | एम. फिल, पीएचडी आदि अनूप उपाध्याय विद्यापीठ की ओर से दी जाती है | हिंदुस्तानी विभाग की स्थापना भी की गई और इस संस्था के अध्यापकों में डॉक्टर अंबाशंकर नागर, काका कालेलकर, आचार्य बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री गिरिराज किशोर, कुंज बिहारी, बासनी आचार्य कृपलानी आदि के नाम उल्लेखनीय माने जाते हैं तथा इस विश्वविद्यालय की कुल हाय श्री रामलाल परीख  हिंदी के पक्षधर रहे|

 

2. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा-

 

विश्वविद्यालय अंग्रेजी माध्यम से चलता है यहां अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता है हिंदी विभाग की स्थापना  सन 1954 में हुई उदयसिंह भटनागर इस विश्वविद्यालय के प्रवक्ता थे| 1954 से 1957 तक हिंदी में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम की व्यवस्था रही| सन 1958 में आचार्य कुंवरचंद्र प्रकाश सिंह की नियुक्ति हिंदी विभाग अध्यक्ष के रूप में हुई |तभी से बड़ौदा विश्वविद्यालय में हिंदी के अनुसार तक शिक्षण और शोध निर्देशन का श्रीगणेश हुआ |आचार्य कुंवरचंद्र प्रकाश सिंह ने गुजरात के विलुप्त हिंदी साहित्य को प्रकाशित किया और आंचलिक शोध  की दिशा में बड़ा भारी योगदान दिया| उन्होंने अनेक विभागीय शोध परियोजनाएं शुरू की विभाग में योग्य प्राध्यापकों की नियुक्तियां शंकर नागर, डॉक्टर मदन गोपाल गुप्त, डा. प्रताप नारायण झा, डॉ. अक्षय कुमार गोस्वामी, विष्णु चतुर्वेदी, प्रो.पारुकांत देसाई, प्रो.शैलजा भारद्वाज  इन सभी ने अपना अपना योगदान दिया पी.एचडी उपाधि प्राप्त करनेवालों की संख्या करीब डेढ़ सौ से डेढ़ सौ तक पहुंच गई है| क्षेत्रीय शोध के साथ साथ तुलनात्मक अध्ययन और मध्यकालीन और आधुनिक विषयों पर शोध कार्य जारी है |

 

3.सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर-

 

हिंदी विभाग की स्थापना हुई रामेश्वरलाल प्रसाद के मध्य थे स्वयं कवि और शोध निर्देशक थे| अरविंद कॉलेज विभाग के अध्यक्ष ओमानंद सरस्वती जो छात्र जगत में सर्वाधिक और थे | उनके निर्देशन में हिंदी अध्यापन स्नातक स्तर पर तो रहा ही है अनुस्नातक और शोध के क्षेत्र में भी नामांकित रहा| विजय नगर के अध्यापकों में डॉक्टर सुरेश त्रिवेदी, श्रीनगर, डॉ रमाकांत शर्मा और डॉ रमेश पांडेय आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय और सागर विश्वविद्यालय से विकास यात्रा को और बढ़ाया|

 

4.गुजरात यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद –

 

इस विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही स्नातक कक्षाओं में हिंदी का अध्यापन कार्य एल.डी आर्ट्स कॉलेज जेवियर्स कॉलेज रामानंद कॉलेज आदि ने होने लगा ना तो नाटक विभाग की रचना बहुत बाद में हुई|  सन 1957 से 1962 तक हिंदी का अनुस्मारक केंद्र जेवियर्स कॉलेज में चलता रहा | इसके पहले इंचार्ज प्रोफेसर विश्वनाथ शुक्ला थी उनके जाने के बाद हिंदी के चार नाम साहित्यकार डॉ रामदरश मिश्र इसके अध्यक्ष हुए| गुजरात विश्वविद्यालय में हिंदी विश्वविद्यालय से यहां आए और उनके अध्यक्षता में हिंदी विभाग प्रगति करता रहा |

 

5.सौराष्ट्र  विश्वविद्यालय, राजकोट-

 

डॉक्टर नरेश पंड्या, डॉ घनश्याम अग्रवाल, डॉ सुदर्शन मजीठिया, डॉ शेखर जैन आदि के निर्देशन में एक दर्जन से ज्यादा छात्रों को पीएचडी की उपाधि प्राप्त हुए हिंदी के अध्यापकों की संख्या 900 से भी अधिक है|

 

6.दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी सूरत-

 

वीर नर्मद गुजरात यूनिवर्सिटी स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगे एमटीवी कॉलेज गार्डा कॉलेज नवसारी और राज के नाम विशेष रूप से ले जा सकते हैं| डॉ.नारायण भारद्वाज ईश्वर भाई देसाई शोध निर्देशक ओके मार्गदर्शन में विद्यार्थियों का पीएचडी हुआ|

 

7.भावनगर यूनिवर्सिटी, भावनगर-

 

भूतपूर्व अध्यक्ष तथा डॉ शेखर जैन डॉ. मनोहर व्यास डॉ. जे.जे त्रिवेदी आदि शोध निर्देशक के रूप में अपना योगदान दे चुके|

 

8.उत्तर गुजरात यूनिवर्सिटी पाटण-

हिंदी के स्वतंत्र विभाग की स्थापना हुई   1988 में हिंदी विभाग की स्थापना हुई प्रथम परीक्षाएं उसी वक्त हुई| हिंदी के केंद्र मेहसाणा पाटन ईडर पिलवाई विसनगर आदि संलग्न होकर अपना कार्य सुचारू रूप से कर रहे हैं|

 

गुजरात में १० वीं कक्षा से हिंदी को स्वैच्छिक विषयों में रखा है लेकिन  गुजरात में महत्व के विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन का कार्य तथा शोध कार्य बड़े पैमाने पर हो रहा है| दृष्टि से गुजरात को बार-बार अहिंदी प्रदेश कहकर हम हिंदी का अपमान नहीं कर सकते| प्रदेश का अपमान नहीं कर सकते सच तो यह है, हिंदी भाषी क्षेत्रों से भी अधिक हिंदी का कार्य गुजरात में हो रहा है| विभिन्न विश्वविद्यालयों में कबीर, तुलसी, सूर, प्रेमचंद,प्रसाद, निराला जैसे सभी हिंदी के महत्वपूर्ण लेखकों का साहित्य पठन पाठन का कार्य होता रहता है|

 

संदर्भ सूची-

(१)  डा. अम्बाशंकर नागर : गुजरात का ब्रज भाषा –काव्य : पृष्ठ :२१६

 

 

- डॉ कल्पना गवली

एसोसियेट प्रोफेसर,

हिंदी विभाग,
कला संकाय, महाराजा सयाजी राव विश्वविधालय, बडौदा.

 

 

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