पीड़ा

मन मेरे की गहन पीड़ा से

तुम पल भर में जल जाओगे

तोड़ किनारा पलकों का

तुम पानी सा बह जाओगे

 

गहन अंधेरा मन के भीतर

दूर नहीं कर पाओगे

सिले अधर खुलेंगे जब ये

निःश्वासों में मिट जाओगे

 

सागर से आते तूफ़ानों में

पर्वत भी हिल जाएँगे

मेरे दुःख के कंपन से

क्षण भर में तुम हिल जाओगे

 

सम्मुख, तन के काँटों के,

कदम न तुम रख पाओगे

डाली पर बैठे पक्षी से

पलक झपक उड़ जाओगे

 

सह न  सकोगे घु्टन को मेरी

घुटे घुटे जी  पाओगे

हाथ थाम कर मेरा तुम

दो पग भीं न चल पाओगे

 

मेरे दु:ख के बोझ को सिर पर

ढो कर  न बढ़  पाओगे

मन मेरे की गहन पीड़ा से

तुम पल भर में जल जाओगे ।

 

 

- सविता अग्रवाल “सवि”

जन्म स्थान: मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत

शिक्षा: ऍम.ऐ. (कला)

साहित्य रूचि का प्रारंभ और प्रेरणा स्त्रोत: साहित्य प्रवाह मेरे मन में बचपन से ही प्रवाहित होता रहा है|    साहित्य सृजन की प्रेरणा मुझे अपने पिता से मिली है| २००१ में कैनेडा आने के पश्चात यहाँ की जानी मानी संस्था हिंदी रायटर्स गिल्ड की स्थापना से ही इस संस्था की साहित्यिक गतिविधियों में निरंतर भाग लेती रही हूँ | आजकल इस संस्था की परिचालन निदेशिका (Operations Director) के रूप में कार्यरत हूँ |

प्रकाशित रचनाएं: मेरी कवितायेँ, लेख और लघु कथाएं एवं हाइकु इत्यादि समय समय पर ”हिंदी चेतना”, “हिंदी टाइम्स”, ई –पत्रिका “साहित्य कुंज”, “प्रयास”, “अम्स्तेल्गंगा” (Netherland), “शब्दों का उजाला”, गर्भनाल आदि में प्रकाशित होती रहती हैं |मेरा प्रथम काव्य संग्रह “भावनाओं के भंवर से” २०१५ में प्रकाशित | “खट्टे मीठे रिश्ते” उपन्यास के ६५ अन्य लेखकों की सह-रचनाकार |

मेरी प्रिय विधा : कविता और लघु कथा |

निवास : मिसिसागा, कनाडा

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