शोधपत्र : पेपरलेस होती भारत की संसद की पर्यावरण सरंक्षण की पहल

भूमिका:

भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद अब पेपरलेस बनने की ओर अग्रसर है।  साईबर युग में संसद और विधानसभा, भारत व राज्य सरकारों के मंत्रालयों से लेकर विभिन्न संस्थान अब कागज को छोडक़र डिजिटल की ओर बढ़ रहे हैं। यह शुभ संकेत है। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में किसी भी संस्था का पेपरलेस हो जाना असंभव नहीं है। भारत में संसद से पहले हिमाचल प्रदेश की विधानसभा 6 साल पहले ही पेपरलेस बन चुकी हैं। इसके बाद गोवा और अब दिल्ली, हरियाणा समेत दर्जनभर राज्यों की विधानसभाओं में भी अधिकतर कार्य कागजविहीन होने लगा है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 2014 से ही पेपरलेस काम चल रहा है। पेपरलेस संसद बन जाने से देशभर में सकारात्मक संदेश  जाएगा। क्योंकि देश की सर्वोच्च पंचायत यदि पर्यावरण संरक्षण के लिए कागजरहित होगी, तो इससे अन्य संस्थाएं व आम नागरिक भी प्रेरित होंगे। इससे कागज बनाने के लिए पेड़ों पर कुल्हाड़ी नहीं चलानी पड़ेगी और जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रही पृथ्वी को बचाने में मदद मिलेगी। अनुमान है कि यदि संसद व सभी विधानसभाएं व विधान परिषदें पेपरलेस हो जाएं तो देश को सालाना 200 करोड़ रुपये की भी बचत होगी।

संसद को पर्यावरणमित्र बनाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। संसद के पेपरलेस होने की उम्मीद इसलिए भी बढ़ गई है कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला इस बारे में घोषणा भी कर चुके हैं। बिरला ने 17वीं लोकसभा के पहले सत्र की समाप्ति के बाद 10अगस्त, 2019 को अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा की थी कि संसद के अगले सत्र यानी शीतकालीन सत्र से 80 प्रतिशत सदस्यों ने ‘पेपरलेस’ काम करने का आश्वासन दिया। हालांकि बड़ी संख्या में सांसदों के ज्यादा टेक्नोलोजी फ्रेंडली नहीं होने से इसकी गति धीमी है। संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के सचिवालयों  का  कामकाज  पेपरलेस हो जाने पर करोड़ों रुपये की बचत होगी और कागज के उपयोग में भी कमी आएगी।

सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में संसद का कागजरहित होने से देशभर में सकारात्मक संदेश जाएगा। सभी विधानसभाओं के साथ ही सरकारी महकमों में भी कागज का इस्तेमाल घटेगा। कागज का प्रयोग  घट जाने से पेड़ भी बचेंगे। इससे जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रही दुनिया का पर्यावरण बचाने में मदद मिलेगी। संसद को लेकर योजना है कि सांसदों के लिए एक ऐप तैयार किया जाएगा। इससे सासंदों को पेपरलेस काम करने में आसानी होगी। संसद को पेपरलेस बनाने की योजना के तहत इलैक्ट्रॉनिक और डिजिटल तरीकों के उपयोग से सदस्यों को हार्ड कॉपियों को पहुंचाने में होने वाली देरी भी नहीं होगी। सांसदों को संसदीय पत्र की ई-कॉपी या हार्डकॉपी प्राप्त करने के लिए विकल्प दिया जाएगा।

वैस यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था, लेकिन अधिकतर सासंद अब भी परंपरागत तरीकों को छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। जबकि प्रत्येक सांसद को  लेपटॉप, स्मार्ट फोन समेत इलैक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदने के लिए 3-3 लाख रुपए दिए जाते हैं। सांसद सदस्य चुने जाने के बाद लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय सांसदों से  ई मेल भी लेते हैं। इसके बावजूद अधिकतर सांसद दस्तावेजों को कागजों में लेते रहे हैं। 16वीं लोकसभा के दौरान तब की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने भी संसद को पेपरलेस बनाने के प्रयास शुरू कर दिए थे। 2015 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देशभर के पीठासीन अधिकारियों के 77वें सम्मेलन में जिन दो मुद्दों पर चर्चा की गई, उसमें से एक  पर्यावरण के लिहाज से पेपरलेस पार्लियामेंट बनाना भी था। सम्मेलन में सभी ने अधिक से अधिक टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करके पेपरलेस पार्लियामेंट बनाये जाने पर जोर दिया था।

बहरहाल, अब संसद के पेपरलेस होने से पर्यावरण को लाभ होगा, पेड़ बजाएं जा सकेंगे। इसके अलावा सरकारी खजाने में पैसा भी बचेगा। इसके अन्य फायदों को खुद स्पीकर ओम बिरला भी गिना चुके हैं। उन्होंने कहा कि इससे पैसे की बचत तो होगी ही, महत्वपूर्ण समय की भी बचत होगी। सदस्यों को किसी विधेयक की प्रति या कोई अन्य दस्तावेज पहुंचाने पर अभी काफी ज्यादा पैसा खर्च होता है। उदाहरण देते हुए बिरला ने कहा कि मसलन, कोई सदस्य नोएडा में रहता है तो दस्तावेज पहुंचाने के लिए एक डिलीवरी मैन को उनके घर भेजना पड़ता है। इस पर काफी खर्च आता है। कई बार सदस्य शिकायत करते हैं कि  विधेयक की प्रति उन्हें देर से मिली। इस कारण वे बिल का अध्ययन नहीं कर सके। पेपरलेस संसद होने से उनकी यह शिकायत दूर हो जाएगी।

संसद से लेकर देश की विधानसभा व विधान परिषदों में हाल के वर्षों तक बड़ी मात्रा में कागज का इस्तेमाल होता रहा है। ‘अनुमान है कि हर साल महज संसदीय कार्यों के लिए कुछ ही घंटे के वास्ते कोई 2100 ट्रक कागज बर्बाद होता है। इसी तरह विभिन्न विभाग की बैठकों के लिए तैयार की जाने वाली रिपोर्ट, सिफारिशें, सदस्यों के लिए कार्यवाही रिपोर्ट आदि पर हजारों टन कागत इस्तेमाल होता रहा है। इस पर लगा व्यय, श्रम, परिवहन आदि अलग है। एक तो कुछ ही घंटों में इससे उपजे कचरे का निस्तारण, दूसरा इसे तैयार करनेे में काटे गए पेड़ों का हिसाब लगाएं तों स्पष्ट होगा कि भारत की कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की कार्य व्यवस्था में मामूली से सुधार कर दिया जाए तो हर साल हजारों पेड़ों को कटने से रोक जा सकता है, वहीं कई लाख टन कचरे में कमी की जा सकती है।’ (पंकज चतुर्वेदी, https://m.dailyhunt.in/news )

 

संसद : एक परिचय

भारतीय संसद के तीन अंग- राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा हैं। संसद के उच्च सदन राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, इनमें से 12 नामांकित सदस्य होते हैं, जिन्हें  राष्ट्रपति विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में से नामांकित करते हैं। संविधान में व्यवस्था है कि निम्न सदन यानी लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 होगी। इसमें 530 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे, 20 सदस्य संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करेंगे तथा 2 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इण्डियन समुदाय से नामित किया जाएगा। हालांकि लोकसभा में 2 नामित सदस्यों को लेकर मौजूदा सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं किया है। वर्तमान में सदन की सदस्य संख्या 543 है।

संसद के हर साल आमतौर पर 3 सत्र होते हैं, लेकिन आवश्यकता पडऩे पर विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है।  बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र। इसके अलावा संसद की विभिन्न कमेटियां भी होती हैं और इनकी भी बैठकें साल भर होती रहती हैं। इनसे लेकर लोकसभा और राज्यसभा के सचिवालयों के कामकाज के लिए कागज की आवश्यकता होती है।

 

संसद और  कागज :

संसद के दोनों सदनों के सदनों की कार्यवाही, विभिन्न समितियों की बैठकों से लेकर दोनों सदनों के सचिवालयों के कामकाज के लिए कागज की आवश्यकता पड़ती रही है। हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग से अब कागज का प्रयोग लगातार कम होता जा रहा है। पहले सत्र के दौरान संसद में सांसदों के पूछे प्रश्न और उनके उत्तरों को कागज में ही मीडिया को दिया जाता था। अब यह सब बंद हो गया है, यह अब ऑनलाइन ही मिलता है। इसी तरह पिछले कुछ वर्षों से मीडिया को बजट की हार्डकॉपी नहीं दी जा रही है। यह भी सॉफ्ट कॉपी मिलती है। लोकसभा के मीडिया विभाग के निदेशक एमके शर्मा कहते हैं, ‘अब गिना चुना कार्य ही कागजों में हो रहा है। मीडिया का अधिकतर कार्य तो अब पेपरलेस माध्यम से ही हो रहा है।’

बहरहाल, संसद का ई-पोर्टल पहले ही लांच हो चुका है। 16वीं लोकसभा के दौरान तब की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 18 जुलाई, 2016 को इस ई-पोटल को लांच किया था। महाजन ने तब कहा था कि यह सांसदों को आपस में और सचिवालय की विभिन्न शाखाओं के साथ ई-मेल और एसएमएस के जरिए संपर्क करने की सुविधा प्रदान करता है। इस ई-पोर्टल के जरिए अब सांसद अब संसदीय प्रक्रियाओं को बिना कागज के पूरा कर सकते हैं।

इस के बाद से लोकसभा और राज्यसभा के सचिवालयों ने सत्र के दौरान पूछे जाने वाले अतारांकित प्रश्न और संबंधित मंत्रालयों से मिले जवाबों को कागज पर प्रकाशन बंद हो गया है। अब अतारांकित सवाल-जवाब की जानकारी सांसदों को इंटरनेट के जरिए दी जाती है। इसी तरह बुलेटिन-टू का प्रकाशन भी बंद कर उसे इंटरनेट के माध्यम से मुहैया कराया जाता है। बजट की प्रतियों के प्रकाशन में 35 फीसदी की कमी कर दी गई  है।

लोकसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव देवेंद्र सिंह असवाल कहते हैं, ‘पेपरलेस प्रशासन के कई पहलू हैं। जब  हम डिजिटल इंडिया की बात कह रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि अब कागज का इस्तेमाल कम होगा। इससे मंत्रियों को डिजिटल फाइल भेज सकते हैं। इससे समय की बचत भी होगी। पैसा भी कम खर्च होगा। कार्य प्रणाली में पारदर्शिता आएगी और काम भी तेजी से निष्पादित होगा।’

संसद से लेकर देश की सभी विधानसाओं और विधान परिषदों को पेपरलेस बनाने की पहल शुरू होने के साथ ही अब देश की पहली ई-विधान अकादमी तपोवन धर्मशाला हिमाचल प्रदेश में बन रही है। इसमें देशभर के सांसदों व विधायकों को ई प्रशासन को लेकर प्रशिक्षण दिया जाएगा।

 

मीडिया में संसद की कवरेज पर असर-

पेपरलेस संसद होने से पत्रकारिता की रिपोर्र्टिंग पर असर पड़ रहा है। हालांकि इस मुद्दे पर पत्रकार एकमत नहीं हैं। बड़ी संख्या में पत्रकार ऐसे हैं जिनका मानना है कि मीडिया में कवरेज घटने की एक बड़ी वजह बजट, आर्थिक सर्वेक्षण, संसद में पूछे सवालों के उत्तर, संसदीय समितियों की अधिकतर रिपोर्ट अब कागजों की बजाए डिजिटल में मिलना भी है। एशियन एज के पूर्व वरिष्ठ पत्रकार वैंकटेश केसरी कहते हैं- कागज में रिपोर्ट देखना आसान था। खाली समय में पत्रकार संसद भवन में ही प्रश्नों के उत्तर या रिपोर्ट देखकर खबरें तलाश लेते थे, लेकिन एक तो इंटरनेट की स्पीड भी ठीक नहीं रहती है, ऐसे में हिजिटल फासल को देखना भी मुश्किल होता है। हालांकि द टाइम्स ऑफ इंडिया के एडीटर इनवायरमेंट विश्वमोहन कहते हैं- संसद का डिटिजल होना अच्छा कदम है। पर्यावरण संरक्षण के लिए तो यह बेहद ही अच्छा फैसला है, जबकि मीडिया के ऑनलाइन संस्करणों के लिए अब समाचार भेजना बहुत आसान हो गया है। पत्रकारों को टाइप की सामाग्री मिल जाती है।

 

पेपरलेस विधानसभा से हिमाचल प्रदेश है अग्रणी:

देश में हिमाचल प्रदेश पहले प्रदेश है जिसकी विधानसभा पूरी तरह से पेपरलेस है। हिमाचल के बाद गोवा विधानसभा में भी  पेपरलेस कामकाज हो रहा है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 2014 से कागजरहित काम होने लगा है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने तब कहा था कि उसके इस कदम से हर साल 6 हजार पेड़ कटने से बचेंगे। प्रदेश विधानसभा में 68 सदस्य हैं। यदि संसद और सभभी प्रदेशों की विधानसभाएं पेपरलेस हो जाएं तो लाखों पेड़ों को बचाया जा सकेगा।

‘हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा, देश की पहली पेपरलेस या काग़ज़मुक्त विधानसभा बन गई है.विधायकों की मेज़ों पर लगाए गए टच-स्क्रीन कंप्यूटर पर पहले से ही सारी सूचनाएँ और जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं। इस कंप्यूटर में सुपर-स्पीड वाला प्रोसेसर है, जिसमें सवाल और जवाब बारी-बारी से स्क्रीन पर आते रहते हैं।’ (https://www.bbc.com/hindi/ )

हिमाचल प्रदेश की इस परियोजना को केंद्र ने पूरा सहयोग किया। 2013 सिंतबर में विधानसभा ने इस परियोजना पर काम शुरू किया और 2014 का पहला मानसून सत्र पेपरलेस हुआ। इसके बाद तो अब यह दूसरे राज्यों के लिए एक उदाहरण बन गया है। इसके बाद गोवा विधानसभा भी पेपरलेस हो गई। अब केरल, दिल्ली, हरियाणा भी पेपरलेस होने जा रहे हैं। इनके अलावा लगभग सभी प्रदेशों में यह काम चल रहा है। यानी यह प्रयोग मील का पत्थर साबित हुआ।

 

पेपरलेस विधानसभा सदन:

हिमाचल प्रदेश की पेपरलेस विधानसभा में सदन में विधायकों की मेजों पर टचस्क्रीन कंप्यूटर लगाए गए हैं। विधायकों को टैब भी मुहैया कराए गए हैं। इस कंप्यूटर के माध्यम से वे विधानसभा सत्र के दौरान होने वाले कामकाज की सूची देख लेते हैं। सदन की कार्यवाही से जुड़े प्रश्नों व अन्य दस्तावेजों की सूची इसमें दिख जाती है। विधायक यह भी जान लेते हैं कि सत्र में पूछे जाने वाले प्रश्नों में उनके प्रश्न शामिल हैं या नहीं। इसी तरह विधायकों को सदन में वोट करने के लिए भी हां या न करने की जरूरत नहीं पड़ती। वे टचस्क्रीन कंप्यूटर से हां या ना पर क्लिक कर देते हैं। इसी तरह विधेयकों के पक्ष या विपक्ष में अपना वोट टचस्क्रीन कंप्यूटर के माध्यम से ही देते हैं। स्पीकर सदन की कार्यवाही संचलित करने के लिए टचस्क्रीन कंप्यूटर का उुपयोग करते हैं। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री भी  सवालों का जवाब देने के लिए  अपने टचस्क्रीन कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं। स्क्रीन पर जवाब लिखा आ जाता है।

 

केंद्र सरकार की पहल:

संसद और विधानसभा व विधान परिषदों को पेपरलेस बनाना केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया प्लान का हिस्सा है। केंद्र सरकार अपने ‘गो ग्रीन इनिशिएटिव’ के तहत संसद तथा राज्य के सदन में कार्य प्रणाली को कागजरहित (पेपरलेस) बनाने तथा इसका डिजिटाइजेशन करने की कोशिश में है।  यह प्रस्ताव जनवरी 2018 में पेश किया गया। (https://spectrumbooksonline.in/)

पिछले कुछ वर्षों के दौरान संसद के दस्तावेजों तथा रिपोर्ट को कागजों पर प्रिंट करने में भारी कमी की गई है। वर्ष 2016 में सरकार ने प्रिंटेट बजट कॉपी की संख्या लगभग आधी कर दी। इसके अगले साल वर्ष 2017 में बजट पेश करते हुए केवल संसद सदस्यों को इसकी प्रिंटेड कॉपी दी गई। मीडिया को सॉफ कॉपी ही दी गई।  वित्त मंत्री के भाषण के कुछ ही समय बाद बजट, उनका बजट भाषण और बजट प्रस्तावों को सरकारी वेबसाइट पर डाल दिया गया। बजट की प्रतियों का प्रकाशन 35 फीसदी कम करने के साथ ही अब संसद की विभिन्न समितियों की रिपोर्ट का अब कागज में प्रकाशन बंद कर दिया गया है। संसदीय समितियों की रिपोर्ट भी वेबसाइट पर डाल दी जा रही है।

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दोनों सदनों के प्रश्नकाल में पूछे जाने वाले सवालों को इस बार अधिकतर ‘माननीय’ सासंदों ने परंगरागत तरीके से भेजने की बजाए ई-फाइल से भेजे।  केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में भी  ई-फाइल से ही सासंदों के प्रश्न मिले। मंत्रालयों ने भी इस बार संसद को कागजों की बजाए ई-फाइलों से ही जवाब भेजे हैं।

 

संसद के लिए नया भवन-

अब संसद के लिए नया भवन बनाए जाने की योजना पर काम शुरू हो गया है। नया भवन पूरी तरह से पेपरलेस यानी डिजिटल होगा।  देश को आजाद हुए 75 साल होने वाले हैं और देश का संसद भवन लगभग सौ साल का होने जा रहा है। इसलिए  देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर संसद को नए भवन में पहुंचाने की योजना है। केंद्र सरकार सेंट्रल विस्टा को पुनर्विकसित करने की योजना को मंजूरी दे चुकी है। सरकार की योजना के तहत नए संसद भवन के लोकसभा के सदन में  900 सीटें होंगी। संसद के संयुक्त सत्र के दौरान लोकसभा में 1350 सांसद बैठ सकेंगे।  नया संसद भवन त्रिकोणीय होगा। ‘केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की इस योजना को तीन चरणों में पूरा किया जा रहा है। पहले चरण में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर के दायरे में मौजूद ‘सेंट्रल विस्टा क्षेत्र’ को 2021 तक नया रूप दिया जाना है। जकि मौजूदा और भविष्य की जरूरतों के मुताबिक संसद भवन की नयी इमारत का निर्माण 2022 तक और तीसरे चरण में सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को एक ही स्थान पर समेकित करने के लिये प्रस्तावित समग्र केन्द्रीय सचिवालय का निर्माण 2024 तक करने का लक्ष्य है।’(https://www.msn.com/hi-in/news/india/ )

 

उपसंहार :

संसद को पेपरलेस बनाने की पहल सराहनीय कदम है। देश की सर्वोच्च पंचायत के पेपरलेस होने से पूरे देश में सकारात्मक संदेश जाएगा। अच्छा होता कि संसद को बहुत पहले ही पेपरलेस बना लिया होता। क्योंकि यह काम कठिन भी नहीं था। लेकिन अधिकतर सासंद परंपरागत तरीकों को छोडऩे के लिए तैयार नहीं थे। जबकि संसद की ओर से हर एक सांसद को टैब, लेपटॉप, स्मार्ट फोन समेत इलैक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदने के लिए 3-3 लाख रुपए दिए जाते हैं। इसलिए अब उम्मीद की जानी चाहिए कि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी वाली साइबर दुनिया में देश के सांसद पीछे नहीं रहेंगे। संसद के पेपरलेस होने से पंचायतों के भी पेपरलेस होने का रास्ता खुलेगा। इससे कागज बचेगा और पेड़ों पर कुल्हाड़ी नहीं चलानी पड़ेगी। पर्यावरण भी बचेगा। यह संसार और खुशहाल होगा।

 

 

शोध संदर्भ:

Retrieved   on  february 19, 2020 from

 

Retrieved   on  february 21, 2020 from

 

Retrieved   on  March 2, 2020 from

 

 

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https://www.msn.com/hi-in/news/india/%E0%A4%A8%E0%A4%8F-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6-%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80-1350-%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%87%E0%A4%B8-%E0%A4%A8%E0%A4%8F-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B8/ar-BBZ6gy8

 

 

- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा


भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले के कलीगाड़ तल्ला गांव में जन्में, पले व बढ़े डा. हरीश चंद्र लखेड़ा पत्रकारिता में डा. हरीश लखेड़ा के नाम से जाने जाते हैं। वे पिछले ढाई दशक से से ज्यादा समय से दिल्ली में पत्रकारिता में सक्रिय हैं। जनवरी 1992 में हिंदी दैनिक जनसत्ता से पत्रकारिता में आए। राष्ट्रीय सहारा में दिल्ली टीम के चीफ रिपोर्टर और फिर अमर उजाला के नेशनल ब्यूरो में सीनियर स्पेशल करस्पोंडेंट (समकक्ष एसोशिएट एडीटर) रहने के बाद चंडीगढ़ में ब्यूरो चीफ रहे। अब हिंदी दैनिक ट्रिब्यून के दिल्ली ब्यूरो में कार्र्यरत हैं।
डा. हरीश लखेड़ा पत्रकारिता और जन संचार में पीएच.डी. हैं। उन्होंने उत्तराखंड आंदोलन- स्मृतियों का हिमालय’ भी लिखी है। भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकार डा.लखेड़ा उन गिने-चुने पत्रकारों में शामिल हैं जिनको दिल्ली नगर निगम से लेकर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की विधानसभाओं और संसद की रिपोर्टिंग का अनुभव है। उन्होंने कांग्रेस, भाजपा, वामदल से लेकर तीसरा मोर्चा की पार्टियों और केंद्र सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों की रिपोर्टिंग भी की है। रिपोर्टिंग के लिए ज्यादातर राज्यों का दौरा कर चुके लखेड़ा राष्ट्रपति के साथ भी कई दौरों पर जा चुके हैं। विदेश भी जा चुके हैं।
देहरादून के डीबीएस कॉलेज से एम.एस-सी. (गणित) करने के बाद  दिल्ली के भारतीय विद्याभवन से पत्रकारिता व जनसंचार में पी.जी. डिप्लोमा किया। बाद में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय से एम.ए. (पत्रकारिता व जनसंचार) करने के बाद वहीं से पत्रकारिता व जनसंचार में पीएच.डी की।
दिल्ली हिंदी अकादमी की सहायता से वर्ष 2000 में ‘दिल्ली का रास्ता’ नाम से की कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है। दूसरी किताब ‘उत्तराखंड आंदोलन- स्मृतियों का हिमालय’ के बाद अब  ‘ लखेड़ा वंश: सागर  से शिखर ’ उनकी तीसरी पुस्तक है। लखेड़ा वंश: सागर  से शिखर पुस्तक उत्तराखंड के लखेड़ा ब्राह्मणों के इततिहास पर लघु शोध ग्रंथ है। डा. लखेड़ा  की चौथी पुस्तक ‘पत्रकारिता का स्थानीयकरण’ है। यह पुस्तक उनके शोध कार्य को आधार बनाकर लिखी गई है। अब तक 4 पुस्तकें लिख चुके डा. लखेड़ा  की पांचवीं पुस्तक एक कविता संग्रह के तौर पर आ रही है। यह पुस्तक दिल्ली हिंदी अकादमी के सहयोग से प्रकाशाधीन है। उनके कई शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।
 
पता  -  भारत वंदना अपार्टमेंट्स, द्वारका, नयी दिल्ली ,भारत

 

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