मेराज अहमद की कहानी संग्रह ‘दावत’ में अवध की स्त्री

आधुनिक हिंदी के कथाकारों में मेराज अहमद का नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है। रचनाकार किसी न किसी तरह से अपने कथा साहित्य में अपने समय व समाज को अभिव्यक्त करना चाहता है। मेराज अहमद ने अपने समय समाज संस्कृति रूढ़िवादिता परंपराओं और परिस्थितियों को अपने कथा साहित्य में प्रस्तुत करने का कार्य किया है। जिसमें समाज के अनछुए पहलुओं को दर्शाने का कार्य किया है। जिससे समाज को भली भांति परिचित करा कर स्त्रियों के दिशा और दशा को समझा सके। मेराज अहमद की कहानियों में गरीब मध्यम वर्ग का कामकाजी स्त्रियों का सजीव वर्णन प्रस्तुत किया है।  समाज में उपस्थित स्त्री की उपस्थिति उसकी इच्छाओं तथा समस्याओं को सहज एवं सरल रूप से अभिव्यक्त किया है। साथ ही अपने कथा साहित्य में अभिव्यक्त सामाजिक समस्याओं से जूझती स्त्रियों और उनके समाधान को भी दर्शाते हैं। रचना और रचनाकार की पहचान उसकी सामाजिकता संस्कृति और परिवेश से होती है इसी सामाजिकता और इसके समाधान की गहरी सोच मेराज अहमद की रचनाओं में देखने को मिलती है।

मेराज अहमद ने अवध की स्त्री के जीवन को के यथार्थ को बड़े ही करीब से देखा है। उन्होंने अपने कथा साहित्य में जीवन की सच्चाई को प्रस्तुत किया है। जिसे आज की पीढ़ी भोग रही है। इस दर्द को समझते हुए उन्होंने अनेक कहानी संग्रह और एक उपन्यास लिखा जो ‘अजान की आवाज’, ‘न घर के न घाट के’, ‘दावत’ और उसके बाद उपन्यास ‘आधी दुनियाँ’ अवध की स्त्रियों पर ही है। जिसमें अवध की स्त्रियों की सच्चाई का सरलीकरण करके पाठ को और समाज शास्त्रियों को उनके प्रति सोचने को मजबूर किया। मेराज अहमद की यह कला बहुत ही अद्भुत और अद्वितीय है जो अवध की स्त्रियों को भी सामान्य स्त्रियों के बराबर खड़ा करने का प्रयास करते हैं और उनको शिक्षा बराबरी का हक दिलाने की साहित्य के द्वारा अनूठी पहल है। रचनाकार ने देखने का प्रयत्न भी किया है जो  भारतीय समाज के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही आया है को शहर शैली में ग्रहण किए गए वादों और चरित्रों की स्वाभाविक भाषा में प्रस्तुत करते हुए संवाद स्थापित करती है।

‘दावत’ कहानी संग्रह सन 2016 में प्रकाशित हुआ है। जिसमें 11 कहानियां हैं। हर कहानी का अपना अलग महत्व है। क्योंकि किसी कहानी में निर्धनता के कारण स्त्री का किरदार अलग नजर आता है तो किसी वर्गीय परिवार की कहानी में स्त्रियों के विभिन्न पीड़ा और सुख दुख का अद्भुत वर्णन है। ‘दावत’ कहानी संग्रह में अवध की स्त्री को कथाकार मेराज अहमद ने सहजने का प्रयत्न किया है।

प्रत्येक कहानी अपने आप में अनेक कहानियों, समस्याओं और समाज की जटिलताओं को रेखांकित करने का प्रयत्न करती है और सभी समस्याओं, जटिलताओं का निराकरण करने का प्रयत्न कथाकार अपने पत्रों के माध्यम से कराने का प्रयत्न करता है। यदि हम ‘दावत’ कहानी संग्रह की प्रथम कहानी पर दृष्टिपात करें तो प्रतीत होता है कि किस प्रकार निर्धन बेसहारा मजबूर  सुंदर लड़की को बड़े घर का लड़का अपने जाल में फंसाने का षड्यंत्र रखता है क्योंकि उसकी जगह यह है कि उनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया है और उसकी मौसी उसको अपने घर में अपने कामकाज में हाथ बटाने और उसकी अच्छी परवरिश के लिए ले आती है। जिसमें उसके परिवार में एक साथ होती है जो चौधराइन के नाम से मशहूर है।  जो अपने घर की बहू को आंखों के इशारे पर नचाती है। “दो बेटों की मां पत्नी नीलम चौधराइन की आंखों के इशारे पर चलाती है।”1 चौधराइन का तीसरा बेटा धीरेंद्र फौज में हो गया है जिसके कारण चौधराइन और भी  गर्व रहती है और अपनी बहू पर आदेश चलाती है। बड़ी बहू सरोज अपने मायके कसे कमला को भी साथ ले आती है क्योंकि कमला की मां की असमय मौत हो गई थी। सरोज ने सोचा कि यदि कमला अच्छे से उसके घर पर रहेगी तो उसका अच्छा पालन पोषण हो जाएगा और अच्छे संस्कार भी पा लेगी। जब चौधराइन को मालूम हुआ तो उसने विरोध किया क्योंकि वह चाहती थी किसी भी तरह उसके घर में किसी दूसरे व्यक्ति का रोब न हो। सरोज तो केवल एक बगैर मां की बेटी को ममता, संस्कार तथा कामकाज सिखाने के कारण अपने घर में लाई थी। अचानक उसे अपने घर में देर चौधराइन को अच्छा नहीं लगा। “बुरा उस उनको यह लगा कि उनकी इच्छा के बिना घर पर पत्ता हिला तो  हिला कैसे।”2 यदि उपरोक्त पंक्तियों को देखें और गौर करें तो हमें प्रतीत होता है कि किस प्रकार एक महिला दूसरी महिला को तीसरी महिला के कारण डांट रही है जो मानवता और सामाजिक मूल्यों के भी खिलाफ है। यदि समाज में स्त्री के सम्मान को बचाना होगा तो सर्वप्रथम स्त्रियों को ही स्त्रियों की ईमानदारी से इज्जत करना होगी। वरना इस पितृसत्तात्मक समाज में स्त्रियों को सम्मान मिलने में काफी समय लग जाएगा। इसके बावजूद भी वह कुछ दिन के बाद घर में घुल मिल गई। इधर चौधराइन तो काम बहुत पहले छोड़ चुकी थी तो घर का सारा काम तुम ही करती थीं क्योंकि उस घर में उसको बुलाया भी इसीलिए गया था कि काम करेगी और खाएगी-पिएगी जिस निर्धन लड़की का समय भी निकल जाएगा फिर उसके बाद विवाह हो जाएगा तो वह दूसरे घर की हो जाएगी।

“उसके काम में इतनी तेजी थी कि कब क्या हो गया किसी को पता ही नहीं चलता था”3 कम उम्र के कामों को देख कर चौधराइन भी बहुत प्रसन्न होने लगी थी फिर वह मोहल्ले के में कमरों के की तारीफ के पुल बांधते रहती थी और उसके द्वारा किए गए कार्यों का ब्यौरा ऐसे प्रस्तुत करती थी कि जैसे वह स्वयं घर का काम करती हो दूसरी तरफ सरोज की बेटी निर्मला भी उससे खूब प्रसन्न रहती थी क्योंकि कमला से कम्मू बन चुकी थी और निर्मला तो पहले से ही निंबू निंबू को कम उम्र में छोटी बहन सा ऐसा प्रतीत होता था और वह उसको अपने नए नए कपड़े पहनने को दे देती थी जिससे वह बहुत सुंदर दिखने लगी थी खाली समय में कम और निंबू घंटों बैठकर बातें करती थी अब दोनों में दोस्ताना माहौल हो चुका था तो दोनों एक दूसरे से सब प्रकार की बातें कर लेती थी जबकि निंबू आयु में भी बड़ी थी और बड़े घर के उसके अंदर संस्कार भी थे वह हमेशा कामों से मजाक करती और धीरेंद्र के बारे में अक्सर उससे बातें करती कि धीरेंद्र भैया ऐसे हैं वैसे हैं धीरेंद्र की प्रसन्नता करती रहती थी जिससे कम उसको देखने के लिए हमेशा व्याकुल हो जाती थी

“ तमाम जानी-अनजानी बुझी-बुझी बातों के साथ निर्मला उसे धीरेंद्र के बारे में भी बताती रहती धीरेंद्र भैया ऐसे हैं वैसे हैं अम्मा तो अगर किसी से छपती हैं तो वह है भैया ममियों की नाक में तो दम किए रहते हैं लेकिन प्यार भी कम नहीं करते हैं”4   धीरेंद्र के बारे में सुनी तो को धीरेंद्र को देखने की उत्सुकता बढ़ने लगी और अचानक धीरेंद्र की तरफ अपना मानसिक जुकाम महसूस करने लगी कुछ समय बाद जैसे ही धीरेंद्र घर आया तो कम्मू को उसके सामने जानने उससे आंखें मिलाने में शर्म आने लगी जो इस बात का प्रतीक ठीक कि कहीं ना कहीं कुछ हृदय में है अर्थात धीरेंद्र को कम पसंद करती है और एक बार नमूने भी कम और धीरेंद्र को बात करते हुए पकड़ भी लिया था जिस से निंबू का सत और अधिक मजबूत हो गया “ अब मैं समझी कि भला तुम इसके बारे में हुए समय क्यों हर हर समय क्यों पूछताछ करते रहते हो कमला के पास जाकर चेहरे पर मुस्कुराहट ओढ़े हुए स्वर में उसने पूछा कहीं कोई चक्कर तो…….”  इन बातों को सुनकर रह गई और उस को अपराधी जैसा प्रतीत होने लगा क्योंकि वह एक निर्धन परिवार की बगैर पिता की पुत्री और धीरेंद्र एक बड़े घर का लड़का जिससे सपनों को साकार नहीं किया जा सकता वह सपना देखना ही को निरर्थक लग रहा था इसलिए ही वह ऊपर से नीचे तक पसीने से नहाई हुई लग रही थी उसकी मजाक बना रही थी धीरे ने मुझसे कहा तुझे क्यों जलन हो रही है जैसी है वैसी कर बात खत्म करना चाहता था जब धीरेंद्र का बैग खोला गया तो उसमें कम उम्र के लिए साड़ी निकली जिसको देखकर ने कहा “ देखो ना भैया कितने प्यारे हैं अरे हां मैं तो देखना दिखाना भूल ही गई तेरे लिए कितनी प्यारी साड़ी लाए हैं पहनोगी तो बिल्कुल दुल्हन लगोगी कम्म…”6  इन सब बातों से कम उनको बहुत डर लगता था क्योंकि कहीं ना कहीं उसको प्रतीत होता था यह प्रेम है या कुछ और उसे यह डर सताता रहता था कि यदि सरोज को उसके बारे में मालूम हो गया तुम्हें क्या सोचेंगी उसके बारे में इधर धीरेंद्र जब से घर आया है उसके कपड़े धोने जूते पॉलिश करने तथा कपड़ो पर स्त्री करने का कार्यक्रम एकदम फिट रखती थी जिससे वह दूसरों दूसरे का खूब ख्याल रखते थे फिर चौधराइन के पास धीरेंद्र के बहुत शादी के रिश्ते आते हैं जिससे धीरेंद्र चौधराइन से बस इस प्रकार से बात करता है कि वह अचंभित हो जाती है और उसके द्वारा बोले गए शब्दों का बार-बार अर्थ समझने का प्रयत्न करती है जब रिश्ते की मध्यस्था करने वाली उसकी दूर की मौसी सामने बैठी है तो वह तिरछी आंख करके कहता है कि- “ अगर लड़की कम हो जैसी हुई तो सौ पर्सेंट मेरा फैसला हां में होगा”7  धीरेंद्र के मुख से यह शब्द उच्चरित होने के बाद उनके मन में अनेक प्रश्न आने लगे उसने धीरेंद्र को देखते ही शर्म से अपनी पलके झुका ली और होठों पर एक आसान सी मुस्कान दौड़ पड़ी जो अपने आप में काफी प्रश्न और उत्तर रखती थी लेकिन उसकी समझ में एक भी बात नहीं आती थी कभी अब सजने सवरने  लगी है क्योंकि उसको भी महसूस होने लगा है कि वह कुछ अलग और विशिष्ट है दूसरी तरफ कम मूवी धीरेंद्र के लिए सजने-संवरने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ती थी पहले वह 2 दिन में कपड़े बदलती थी अब रोज ही नहा धोकर हल्का श्रृंगार करती थी चोटी बनाती थी जिससे उसको कुछ अलग सा प्रतीत होता था “ जब वह दर्पण के सामने खड़ी कमर को छूते बालों को बनाने बिगाड़ने में लगी थी कि ना जाने कहां से धीरेंद्र हवा के झोंके की तरह प्रकट हो गया उसे देखते ही वह जड़ हो गई बालों में गंगा फंसा का फंसा रह गया बुद्धि को जैसे काठ मार गया हो “8 जब धीरेंद्र कमरे  के अंदर आ गया तो वह उसको अपनी बांहों में खींचने लगा जिसके कारण वह बेबस बेसहारा लड़की कुछ कह भी नहीं सकती लेकिन धीरेंद्र का यह कृत्य सामाजिक मूल्यों के विरोध में है जिससे कहीं ना कहीं मानवता का इलाज होता है उसके हृदय में धीरेंद्र के प्रति लगाओ तो है लेकिन अभी वह यह सब करने की समझ नहीं है प्यार के कारण ही कम्मू धीरेंद्र से कुछ कह नहीं पाती है धीरेंद्र कम लोगों की दिल खोलकर प्रशंसा करता है और उस को हमेशा प्रेम की दृष्टि से देखता है कम्मू के प्यार का इंतिहान भी करता रहता है जो स्वस्थ प्रेम के लिए जरूरी भी है लेकिन वह कम मुझसे शादी नहीं करना चाहता कम्मू जैसी लड़की चाहता है नहीं जब भी अवसर मिलता है तो वह उसकी अस्मत से खेलने का प्रयत्न करता है “ दादी, दीदी घर में हैं कहते हुए जो कमरे से भागी तो ऐसा सरपट कि जैसे बिना लगाम की घोड़ी”9  इसके बाद धीरेंद्र की प्रशंसा के पुल दादी ने भी बांधने शुरू कर दिए जिस के डर से पूरा परिवार का पता था धीरेंद्र ही एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरे परिवार को एक धागे में पिरोए रखता है क्योंकि वह एक अच्छा व्यक्तित्व होने के साथ-साथ सबसे मजाक भी खूब करता है जिसको दादी कहती हैं- बस उनका जरा तेज है यह जान लो कि बिकनी चिरई उसके सामने ही है”10  ऐसे वक्तव्य को सुनकर कम्मो धीरेंद्र की ओर खींचती चली जाती है दूसरी तरफ परिवार के सभी सदस्य धीरेंद्र की प्रशंसा किए नहीं थकते हैं हमेशा धीरेंद्र का ही गुणगान होता रहता है दूसरी तरफ दादी धीरेंद्र की प्रशंसा में ऐसे कसीदे पड़ती है कि जिससे मालूम होता है धीरेंद्र एक आस्था और श्रद्धा का पर्याय बन चुका है कम्मो का आकर्षण ही धीरेंद्र को अपनी तरफ खींचने का सफल प्रयास करता है जब धीरेंद्र की बातें हुआ करती है तो मालूम नहीं कौन से रूप में खो जाती है और उसका पूरा ध्यान धीरेंद्र के ही सपनों में होता है इधर पूरे परिवार को मालूम हो गया था कि कम और धीरेंद्र के बीच में कुछ है सब तो सबको था लेकिन पूरी जानकारी ईको नहीं थी फिर जब धीरेंद्र के लिए सब घर वाले रिश्ता देखने ट्रेन से गए घर में दादी धीरेंद्र और कम ही बचे थे तो धीरेंद्र को खाना देने के कारण गई तो वहां पर मामला ही पलट गया जिसकी आशंका तक ना थी वह हो गया “ चारपाई छोड़ने की कोशिश की तो उसके शरीर में कांटे चुभ रहे थे खड़े होने पर टांगे कब कब आ रही थी पूरा शरीर टूट रहा था दादी के स्वर में सचेत किया आज उठने में बड़ी देर कर दी बिटिया रात कब खिला पिलाकर आई तो मुझे पता ही नहीं चला”11 पूरी कहानी पढ़ने के बाद यह साफ प्रतीत होता है कि किस प्रकार एक गरीब मजलूम बेसहारा लड़की को रिश्तेदारी में जगह तो मिल जाती है लेकिन उसके साथ अनेक प्रकार के अत्याचार होते हैं जो कि आधुनिक समय में आम बात हो गई है

दावत कहानी संग्रह की दूसरी कहानी है बल्ली दुनिया इस कहानी में अवध के दुनिया समाज और उनकी स्त्रियों के विषय में गंभीर चिंतन है आर्थिक तंगी के कारण पारिवारिक अंतर्कलह दुनिया समाज के लोगों तथ्यपरक रेखांकन बेरोजगारी की वजह से पुरुष स्त्रियों और स्त्री स्त्री का लड़ना तथा विषमता की अवस्था में सेट का घर पर आना तथा गरीब के बच्चों की भूख का मूल्यांकन राजनीतिक परिवेश का चित्रांकन भी मौजूद है जिसके कारण अवध की स्त्रियों की दशा सोचनीय बनी हुई है

कहानी में वाली दुनिया सेठ कमर के यहां ब्लू चलाता है किसी शादी विवाह के अवसर पर सेट कमर उसके गांव आते हैं तो वल्ली अपनी लोक लाज के कारण उनको घर पर आने के लिए न्योता देता है तथा घर की सफाई पुताई भी करा देता है और सेट कमर के आने के दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगता है यदि दुनिया की कमाई की बात करें तो वह बहुत कम है फिर भी घर चलाने के लिए वह जी तोड़ मेहनत करता रहता है  मुस्लिम निर्धन परिवारों में परिवार भी काफी बड़ा रहता है जिससे वह विकास ही नहीं कर पाते करें भी तो कैसे जो कमाते हैं उसको हाथ डालते हैं “ पूरे 7 आदमी का परिवार और महीने में कमर सेठ के यहां कुल हिसाब बड़ी मेहनत मशक्कत से बनता है ₹2500 गेहूं का भाव आसमान को छू रहा है”12  इससे प्रतीत होता है कि अवध के निर्धन परिवारों की स्थिति कैसी है किस प्रकार दुनिया समाज समय को काट रहा है और लोक-लाज समाज निर्धनता आर्थिक विषमता को धो रहा है उधर छोटे भाई की पत्नी और बल्ली की पत्नियों में रोज ही लड़ाई हो जाती थी जिसके कारण घर का बटवारा हो गया सबको हिसाब से पंचायती होने जमीन दे दी और सही से रहने की सलाह दी सेट कमर के आने से पहले वाली औरतों को गुस्से में समझाते हुए कहते हैं कि “ आज भी घर से निकलने से पहले वाली तीनों औरतों से जाते हुए बोले थे हरामजादी यूं हमारे दरवाजे भोलेपुर के सेठ कमर का परिवार आ रहा है वह दिखाना हमारे मालिक हैं मुझे अपना नौकर समझ कर नहीं आ रहे हैं उन के कारखाने में हमारे जैसे बहुत लोग हैं काम करने वाले यह हमारे घर की साख का नतीजा है कि आ रहे हैं”13  इसमें एक निर्धन व्यक्ति अपनी सभी पारिवारिक अंतर्कलह को दूर करवाने का प्रयत्न करता है जब उसके घर पर कोई सम्मानीय व्यक्ति आ रहा हो कमर से पीड़ित हैं और उनको भी यह मालूम हो कि भले ही गरीब है लेकिन एकता है और परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे का सम्मान करते हैं जिससे कमर सेट पर भी असर जाए परिवार का व्यक्ति है जिसके परिवार में खुशियां ही खुशियां हैं यदि देखा जाए के हालात बहुत दिन बाद तो घर में गोश्त बनता था फिर भी वह अपनी गुजर-बसर कर रहा था “ और गरीबी का पेट भरने की मशक्कत के अलावा और कुछ सोचता ही नहीं था”14  पुरुषों से अधिक महिलाओं को चलाने के लिए कशमकश करना पड़ती है पुरुष कर ले आते हैं लेकिन महीने भर किस प्रकार उस का प्रबंध करना होता है यह तो मर ही ही ही जानती हैं जब बल्ली कमर सेठ के घर पता है तू किस प्रकार से एक निर्धन के बच्चे खाने के लिए लग जाते हैं अपनी मान मर्यादा के कारण वर्ली नहीं देता है लेकिन वर्ली की पत्नी की ममता जाग जाती है वह दोनों बच्चों को आधा आधा टुकड़ा दे देती है जिससे बल्ली और उसकी मां नाराज हो जाते हैं जिसमें बल्ली अपनी पत्नी को अपशब्द बोलता है “ ह**** ऐसे बोल रही है जैसे मैं सब कुछ हजम कर के घर को भूखा मरता हूं”15  जरा सी बर्फी का टुकड़ा दोनों बच्चों को देने में किस प्रकार एक नारी गाली खाती है यह दिखाया गया है जबकि उसकी ममता नहीं मानती है वह अपने बच्चों को दे ही देती है दूसरी पत्नी को होली की माफिया अंदाज में गाली देती है “ आई है घर से और मीठे के नाम पर गुड़ की डली खाई है तो क्या समझेगी मिठाई में बर्फी की कीमत”16  इसमें एक निर्धन परिवार की स्त्री को उसकी सांस सांस जो कि स्वयं स्त्री है तंज में उसके निर्धन स्त्री होने का मजाक बनाती है जो स्वयं में स्त्री स्त्री का दोहन कर रही है इधर का भी माथा ठनका हुआ है वह अपनी पत्नी को पीटने का मन बना चुका है और बार-बार सोचता है कि किसी भी प्रकार से उस को पीट ही हूं क्योंकि इधर बली की मां का भी समर्थन उसको मिल चुका है “ प्रधान के द्वारे पर पहुंचते-पहुंचते कितनी बार मन में आया कि वापस लौट कर पहले सही हुआ की अम्मा कि मन भर कुटाई कर ले फिर दूसरा काम” पितृसत्तात्मक समाज में किस प्रकार से एक स्त्री दूसरी स्त्री को पिटवाने के लिए उत्प्रेरक का काम करती है जबकि एक स्त्री की ममता की लड़ाई है बल्ली को मना करने पर भी सही दुआ की अम्मा ने से दुआ और उसकी बहन को बर्फी के टुकड़ों को दोनों में आधा आधा बांट दिया था जिसके कारण उस निर्धन परिवार में आई स्त्री को गालियों से साथ-साथ पिटाई भी नसीब हो रही थी दूसरी तरफ पति-पत्नी का आपसी प्रेम भी आती है एक पत्नी है गालियां खाती है फिर भी वह पतिव्रता होती है कभी भी अपने पति को कुछ नहीं कहती है दूसरी तरफ पति भी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है और हमेशा उसके बारे में सोचता है परिवार की खुशहाली के बारे में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रतिबद्ध होता है लेकिन क्रोध हमेशा अपनी पत्नी पर ही निकलता है दूसरी तरफ उसकी सब जगह प्रशंसा भी करता है “ इस हाल में उसे देखकर भला कौन कह सकता था कि यह पांच लड़कों की महतारी है शादी के समय उसकी खूबसूरती की चर्चा आने से निकलकर पटना तक पहुंच गई थी”18  इसी अदा के कारण पति अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है लेकिन समय बदलता रहता है हमेशा एक दूसरे से में बात करते-करते कभी-कभी बहुत प्यार करता है इसके अलावा आजकल पुरुषों का बाहर आना जाना लगा रहता है कभी व्यवसाय तो कभी मजदूरी के सिलसिले में बाहर जाते रहते हैं उनकी भी जागृत होती हैं जिस कारण यह मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाते हैं और वहां पर वेश्याओं से भी अवैध संबंध बनाते हैं  “रंडियां आलू गोभी की तरह बाजार में इतराती थी”19 दरअसल पुरुष जब लंबे समय तक बाहर रहते हैं तो उनकी यौन इच्छाएं जागृत होती हैं तो वह दूसरी औरतों से अवैध संबंध बनाते हैं जो की सांस्कृतिक प्रकार से भी गलत है लेकिन पुरुषों का अधिकतर यह रूप देखने में मिलता है फिर भी पत्नी अपने पति का सम्मान करते हैं और उनको हमेशा प्रेम की दृष्टि से ही दिखती हैं उनके खाने पीने का भी ध्यान रखती हैं और समय समय पर अपने पति की फिक्र उनको रहती है फिर भी स्त्रियों को मतलब के समय स्वीकार है उसके बाद उनको गालियां और पिटाई तो मिलना ही मिलना है उसके बाद वह भारतीय नारी अपना पतिव्रत आती है और हर प्रकार से अपने पति का ध्यान रखती है “ घर हो तो आप खुद ही चले जाते बीवी ने कहा हमेशा यही हो जाता है कम से कम एक टाइम का खाना खा लेते”20  इसमें बलि की पत्नी उसको सही दुआ के साथ शादी में खाना खाने जाने के लिए कह रही है क्योंकि उसको मालूम है कि वह लोग घर पर अच्छा और पोस्टिक खाना नहीं खा पाते हैं कम से कम एक बार तो पौष्टिक खाना मिल जाएगा स्वयं तो बलि की पत्नी कुछ हल्का फुल्का खाकर सो जाएगी लेकिन पति को अच्छा खाना मिलना चाहिए इस कहानी में दुनिया समाज उसकी विशेषताएं तथा नगरी स्त्री जीवन का मन भावक चित्रण मिलता है जिस में सामाजिक और आर्थिक विषमता में जीवन यापन करना मुश्किल कर दिया है रचना काल में स्त्री जीवन की दृष्टि से बहुत ही अति और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है

दावत कहानी संग्रह की तीसरी कहानी है सही इसमें आर्थिक तंगी के कारण पारिवारिक अंतर्कलह को दर्शाने का सफल प्रयास किया गया है दूसरी तरफ पढ़ लिखकर गांव से बाहर शहर में गैर सरकारी नौकरी करते हुए एक परिवार के व्यक्ति से हमेशा किसकी उम्मीद लगाए रखना जिसने खेती के लिए ट्रैक्टर बैंक से लोन लिया है जबकि कहानी में एक प्राइवेट नौकरी करने वाले की ऐसी व्यथा है जिसको पढ़ कर आया था वह स्वयं चलकर आने लगता है दूसरी तरफ गांव  महिलाएं पुरुष सोचते हैं कि बहुत ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत कर रहे हैं जब खान साहब अपने गांव जाते हैं तो उनकी भाभियां उनकी पत्नी पर तंज कसते हैं और कहती हैं कि- “ दुल्हन तो तुम्हारी है अकेली जान सानंद और देवरानी जेठानी की झंझटों से आप हो”21इसमें खान साहब की भाभियां भी व्यथा ठीक ही उनके परिवार के सभी सदस्यों की देखभाल करना पड़ती है और उनकी हां में हां अभी मिला नहीं पड़ती है जो स्त्री के अपने मूल्यों के खिलाफ है और इन्हीं बातों को लेकर उन स्त्रियों में अंतर्विरोध भी उत्पन्न हो जाता है और वह जब आपस में बैठकर बात करती हैं तो हमेशा अपने मायके वालों को बुरा-भला कहती थी “ बाजी मेरी तो किस्मत ही फूट गई न जाने क्या देखकर वह दिया अपने ढंग ढंग से कामकाज से तो दुश्मनी है इनकी”22  दूसरी तरफ बड़े भैया की बीवी अपने मायके वालों को पूछती रहती हैं कहती है न जाने कैसे हमारे अब्बा ने इनके घर पर हमें भुला दिया जिससे हमें इतनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तीन लड़कियां हैं वह भी नानी के ही घर रहती हैं और भैया अपने आप को बहुत बड़े राजनेता समझते हैं जब देवरानी-जेठानी आपस में बैठती हैं तो यह बातें आम रहती हैं वह हमेशा एक-दूसरे को अपनी व्यथा कथा सुना कर मन हल्का करती हैं और एक दूसरे को सांत्वना देते हैं जब अवध क्षेत्र में बढ़ती बेरोजगारी को ढकने के लिए वहां के नौजवान जल्दी-जल्दी गर्ल्स जाने की सोचते हैं जिससे उनकी मूलभूत समस्याएं दूर हो जाएं और वह भी समाज व परिवार में अपनी जिम्मेदारी को समझें दूसरी तरफ अवध की स्त्रियां गांव में ऐसे काम करके अपना पालन पोषण करती हैं “ मुर्गी बकरी कितने घरों में और जलाने का काम करती हैं”23  अवध की स्त्रियों का त्याग और समर्पण का अद्भुत नमूना पेश करती हैं और घर परिवार में निर्धनता से दो-दो हाथ करके अपने दम पर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं और परिवार की अनेक समस्याओं से भी जूझती रहती है

माजिद एक दलित युवती की कहानी है जो कि बहुत गरीब परिवार में जन्मी है पिता मजदूरी का कार्य करता है और माता घर पर रहती है निर्धन परिवार में जन्म देने के बाद भी वह बहुत सुंदर है गांव के हर टोने का व्यक्ति उसकी तरह चुंबक की तरह आकर्षित होता है और उसको अपने स्तन प्रेमजाल में फंसाकर शारीरिक संबंध स्थापित करने की इच्छा मन ही मन में पाली रहता है उसको पाने का भी हर संभव प्रयास करता है निर्धन होने के कारण उसके पिता और उसकी माता से रतिया उसके हाथ समय पर पीले नहीं कर पाए फिर भी वह घर पर रहती है और सिर्फ दिया हमेशा बड़ी-बड़ी बातें करके अपनी बेटी के लिए सपने देखती है “ सिर्फ कहती थी अपनी राजकुमारी जैसी बिटिया का ब्याह मजूरा से नहीं करेगी उसे कोई सरकारी नौकर ही पैदा करा कर ले जाएगा”24  जबकि सच तो यह है कि हर माता पिता अपनी पुत्री के विवाह के लिए अच्छा रिश्ता ही देखते हैं लेकिन दलित परिवार में जन्मी एक पुत्री की मां को यह सपना देखने का अधिकार सवर्ण जाति वाले नहीं देते हैं इसी दौरान मस्तियां जीतन के साथ भाग जाती है तो गांव के सभी तोले के लोग एक गरीब दलित की बेटी का मजाक उड़ाते हैं क्योंकि यह खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल चुकी थी बार-बार सर बिटिया को घर गांव जात की इज्जत का सवाल बना कर सब लोग लज्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे “ मल्टी आ तो गई ही उसके साथ उसके घर बिरादरी और गांव की मरजाद भी गई”25  जबकि गांव के दूसरे टोले में लड़कियां अक्सर भाग जाती थी उनकी कोई चर्चा नहीं होती थी कि आप भी लड़की ही है जैसे दूसरी लड़कियां है लेकिन इसमें केवल कुछ ही अंतर है वह सवाल होती है दिया बहुजन उसके अलावा गलतियां की खूबसूरती के कारण चर्चा में रहती थी उसको अपनी उंगली पर नचाने की ख्वाहिश रखते थे गलतियां गरीब होने के साथ-साथ खूबसूरत और दलित बौद्ध वादी सोच के लोग निर्धन की पुत्री को गंदी नजर से देखते हैं जबकि “ पुराने और उल्टी की बात दीगर है नहीं तो कौन सी बिरादरी है जिसकी लड़कियां भाग 3 रही हैं”26  लेकिन अलग ही मजा है जो कि निंदनीय होने के साथ-साथ और भी है गलतियां के जीवन के साथ भागने के बाद गांव में राजनीति भी अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई और विधानसभा के चुनाव में जल्दी ही होने वाले हैं सभी प्रत्याशी चमक उठी के बूथों पर गिद्ध जैसी नजरें गड़ाए बैठे हैं प्रत्याशियों को गलतियां मलसियां से मतलब है नहीं जीतन से कोई लेना देना उनको तो अपनी राजनीति चमकाने है जिससे वह चुनाव में उनके वोट लूट सके “ हालांकि उन्हें ना तो गलतियां के भागने से कोई फर्क पड़ने वाला था ना ही जीवन के उसके भागने से बस उनका मकसद यह इसी तरह सेवा कुछ ऐसा कर दे कि वह सब की निगाहों में आ जाए”27  चुनाव के समय आसपास के नेताओं का मकसद यही रहता है किसी भी तरह जनता की आंखों में वह हीरो बन जाए जिसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं इसके अलावा शबर जाति के लड़के दलित लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनके साथ यौन संबंध बनाते थे और उनको कुछ लालच दे और लोग के कारण पैसे भी दे दिया करते थे जिससे वह जब चाहे अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए बुला लें और अपनी हवस की भूख पूरी कर सकी सफल होने के साथ-साथ यह जमींदार परिवार से भी होने होते थे जो निर्धन दलित लड़कियों की इज्जत से खेलते थे “ बाबू साहब लंगोट के कच्चे हैं रामराज चमार उनके इस काम के गुंडे काम रजामंदी से होता है हवा यही थी कि रामराज जुगाड़ करते हैं बाकी कोई जोर जबरदस्ती नहीं होती है पूरा दाम चुकाया जाता है”28  इसमें बाबू अनिरुद्ध सिंह के बारे में है जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत करके लौटे हैं लेकिन बुरे व्यसनों में पूरी तरह सम्मिलित हैं उसका साथ चमार अर्थात दलित जाति का ही व्यक्ति देता है जो सब कुछ सेट करता है और उनको पैसों का भी लालच देता है वह निर्धन दलित अपनी मजबूरी और पेट भरने के लिए ऐसे लोगों के चक्कर में आकर फस जाती हैं और मजबूरी में यह सब काम करती हैं और अपनी अस्मिता से खिलवाड़ के लिए मजबूर हो जाती है दूसरी तरफ चीटियां को लेकर चले जाता है तो की स्त्रियों में भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी है “ उसके भागने की खबर से प्रसन्नता तो उनको हुई जो जिनको अपने आदमियों पर विश्वास नहीं था” 29  क्योंकि वह भी अपने आप को अपनी तुलना गलतियां से करती थी और उनको अपने पतियों का भी विश्वास नहीं था किस प्रकार एक औरत अपने पति पर हमेशा शक करती है और दूसरी स्त्री के बारे में उल्टा सीधा सोचती है इस कहानी में दलित स्त्रियों की आर्थिक स्थिति के कारण हुई दशा को करने का प्रयत्न किया है

अपना परिवार कहानी में पारिवारिक अंतर काले की कहानी है कि किस प्रकार एक समृद्ध परिवार की बहू को उसकी मां वह खाती है जबकि अपना घर चलाने के लिए बहुत समझदार है वह अपनी मां की बातों में नहीं आती है और हमेशा अपने ससुराल को देख कर चलती है तथा उसकी संस्कृति भी एकदम अलग है जबकि वह एक शहरी जीवन में पली-बढ़ी है लेकिन उसमें संस्कार कूट-कूट कर भरे हैं वह अपने परिवार को जिम्मेदारी से लेकर चलती है

“ शहर की थी पैसे वाले परिवार से थी फिर भी भोर में ही बिस्तर छोड़ देती थी अपने घर रहते हुए शायद ही कभी चूल्हा चक्की देखी हो मगर यहां चूल्हे पर भी बैठने को तैयार रहती”30  एक संभ्रांत परिवार में पली-बढ़ी होने के बावजूद उसमें सबको साथ लेकर चलने का अजीब अदम्य साहस था वह हमेशा परिवार को जोड़ कर रखना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी यदि परिवार मिलकर एक साथ रहेगा तो आर्थिक और सामाजिक मजबूती रहेगी समाज की दृष्टि में भी परिवार का अच्छा रुतवा बनेगा नया घर शहर में बनता है क्योंकि पति की नौकरी शहर में लग गई है तो गृह प्रवेश की रस्म कराई जाती है सभी सगे-संबंधियों को बुलाया जाता है जिसमें बहू के मायके वाले भी आते हैं और और और रस्म अदायगी के बाद जब सब लोग साथ में बैठ कर बात करते हैं तो ताऊ जी और पिताजी अपने समधी और समधन से बात करते हैं और बहू के संस्कारों के दिन दिल खोलकर प्रशंसा करते हैं जिसमें समधी समधन तो खुश होते ही हैं लेकिन बीच में कुछ ऐसे कठोर शब्दों में अपनी बात कहती हैं जो उन दोनों को बहुत बुरी लगती है “ मैंने बिटिया को समझा भी दिया है कि यह प्रेमव्यवहार तभी तक का है जब तक वह बुझना बने”31  इधर लगभग चार पांच पीढ़ियों के साथ रह रहा परिवार जिसमें सब एक दूसरे का बहुत आदर करते हैं एक दूसरे की भावनाओं को भी अच्छे से समझते हैं और एक दूसरे के लिए हमेशा तैयार रहते हैं बड़ी कठिनाइयों से ताऊ जी ने अपने भतीजे को पढ़ा लिखा कर एक नौकरी में लगवाया है उसके बाद जब उनको शहर में रहने की दिक्कत हुई तो उस को मकान बनवा कर दिया जिससे दोनों बहू बेटा खुश रहें और परिवार निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हो लेकिन समधन के ने सारे सपनों को चूर चूर कर दिया चंदन की बात सुनकर वर्मा जी के कानो में जैसे शीशा ही पिघल गया है उन्होंने उसकी बात को कोई अहमियत नहीं दी बल्कि अपने परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में सोचा

 

दावत कहानी संग्रह में अनेक कहानी जिसमें प्रत्येक कहानी किसी ना किसी अनछुए मुद्दे पर पाठक का ध्यान आकर्षित करती है और उसको सोचने पर मजबूर भी करती है “ अब सब ठीक-ठाक है”  नामक लंबी कहानी है जिसमें एक मध्यम वर्गीय परिवार का वर्णन विश्लेषण आध्यात्मिकता भावुकता और सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है इस कहानी में संयुक्त परिवार के अनेक बिंदुओं को उठाया गया है स्त्री पुरुष के संबंधों को भी बहुत बड़ी सूक्ष्मता से पाठक के सामने कथाकार ने प्रस्तुत करने का कार्य किया है “ सत्ता को अपने काबू में कर के नए के के रंग में रंगने लगी”32  प्रस्तुत पंक्तियों में नए-नए विवाह के बाद किसी भी स्त्री पर यह अच्छी बात है इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐसे आरोप प्रत्यारोप लगाते थे क्योंकि अभी शादी के कुछ दिन बाद अपने ससुराल लेकर आए थे जिससे इश्क़ और ज्यादा हो गया था सबसे बड़ी बात यह भी थी कि घर में सबसे छोटे थे जिससे उनको लाड़ प्यार नहीं रखते थे अचानक छोटे चाचा के बीमार हो जाने में सभी भाइयों ने बड़ी मेहनत से उनका इलाज कराया जबकि छोटी चक्की का नहीं था दूसरी तरफ आज भी लड़कियों को मोबाइल से दूर रखा गया है और पकड़े जा रहे थे यदि कोई लड़की तो बदचलन हो जाएगी इससे परिवार की नाक कटने का अंदेशा भी है जब छुट्टी चाचा बीमार हो जाते हैं तो मोबाइल की महत्ता उनको प्रतीत होती है “ मोबाइल लेने के लिए कह कह कर थक गई और मैं मोबाइल के विरोध करते”33  इससे प्रतीत होता है कि आज भी मध्यम वर्गीय परिवारों में लड़कियों को मोबाइल रखने की मनाही है जिस पर परिवार के लोग नए-नए पंच भी करते नजर आते हैं अब जब घर को देखने वालों का तांता लगा रहता है तो थी ही सब की आवभगत में लगी रहती हैं और आने वाले सभी मेहमानों का दिल से आभार भी करती हैं उसके अलावा उनके बच्चे उनको लखनऊ में सब जगह में घुमाने ले जाते हैं “दोनों बहनें जब तक रहने वालों पर जान छिड़कती तो हमेशा से लोगों को हाथों-हाथ लिए रहने की कोशिश करती”34  जबकि यह पारिवारिक संस्कार भी होते हैं जिस को पूर्णतया स्त्रियां ही पालन करती हैं और सब और सब आने वाले रिश्तेदारों नातेदारों और मेहमानों का खास ख्याल भी रखती हैं फिर भी एक स्त्री पर शादी के बाद आरोप प्रत्यारोप लगते हैं कि उसने पति को अपने कब्जे में ले लिया है अब अपने ससुराल वालों का ज्यादा ध्यान रखते हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है वह सबका बराबर ख्याल रखते हैं और जिस तरह होता है उस तरह परिवार को बांधने के लिए तत्पर दिखते हैं इसी बीच यदि हम देखें तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धार्मिक मान्यताओं के कारण लड़कियों को पर्दे में रहने की प्रथा है जो लड़कियों का स्वयं का फैसला है लेकिन इस फैसले के कारण उन को शिक्षा से दूर करना यह बिल्कुल सही नहीं है “ यहां लखनऊ में पर्दे की शक्ति के नाते ही नाहीद और अख्तर को फांसी वहीं होने के बावजूद करामत हुसैन गर्ल्स डिग्री कॉलेज से b.a. करके बैठ जाना पड़ा” 35 पर्दा आपकी धार्मिक पहचान हो सकती है लेकिन उनके समझदार होने के वजह से उनकी पढ़ाई छुड़वा कर घर पर बैठा लेना  यह बिल्कुल तर्कसंगत और उचित नहीं है आजकल लड़कियां हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रही है जबकि वह दोनों लड़कियां विलक्षण प्रतिभा की धनी थी

इस कहानी के माध्यम से प्रोफेसर मेराज अहमद ने मध्यम वर्गीय परिवार में होने वाली सामाजिक बुराइयों और रूढ़ियों का विरोध किया है

 

दावत कहानी संग्रह की अगली कहानी है मैं हूं ना कहानी में गांव का एक मध्यमवर्गीय परिवार है जिसमें परिवार का मुखिया जब क्षय रोग से पीड़ित हो जाता है तो किस प्रकार परिवार की सबसे बड़ी बेटी अपने परिवार को ढांढस बनवाती है और किसी भी समस्या से लड़ने के लिए स्वयं को मानसिक और शारीरिक तौर से तैयार करती है और किसी भी समस्या के निराकरण के लिए सोचती रहती है अभी तो परिवार के मुखिया अर्थात अपने पिता को क्षय रोग से मुक्ति दिलाने के लिए शहर के सभी अस्पतालों के चक्कर लगाती है जिसमें उसको “ डॉक्टर ने यह भी कहा है कि पूरे 9 महीने बिला नागा एहतियात के साथ दवा होनी चाहिए”36  यह सब सुनकर उसकी मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह ज्यादा परेशान होकर वहां की आवाज में कुछ चाह कर भी बोल नहीं पाती है क्योंकि परिवार में रजिया ही सबसे बड़ी बेटी है और उसका छोटा भाई हसीम है हसीब और रजिया के छोटे हबीब और नसीब हैं उनका भी ख्याल रखना है इसलिए हिम्मत से काम लो घबराने की जरूरत नहीं इस विपत्ति की घड़ी में हमें अपने भाइयों के साथ साथ माता-पिता का भी ध्यान देना होगा तभी हम इस परेशानी से लड़ सकते हैं इन्हीं सब परेशानियों के बीच में परेशान होने लगती है तो रजिया आत्मविश्वास से लबरेज तपाक से कहती है मैं हूं ना इस कहानी में गांव की एक बहादुर कर्तव्यपरायण आत्मविश्वासी लड़की की कहानी है जो किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहती है

 

 

 

 

- अकरम हुसैन  ‘पुष्प’

स्कूली शिक्षा – ए. के. इण्टर कॉलेज न्यूरिया से एक से चार तक प्राथमिक शिक्षा, उसके बाद सैंट पैट्रिक इण्टर कॉलेज उत्तराखंड से दसवीं उत्तीर्ण करने के बाद ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिक स्कूल लखनऊ से इण्टरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, दो साल इंजीनियरिंग की तैयारी करने के बाद, तकनीक से मोहभंग हो गया क्योंकि वहां पर लाखों की आय-व्यय थी, लेकिन मानवता और संस्कृति का मुझे ह्रास नज़र आया जिससे मुझे यह प्रतीत हुआ कि तकनीक वाले हमे मशीन तो बना रहे है लेकिन मानव बनने की प्रक्रिया में बाधा उतपन्न हो रही है, यूं तो इंजीनियर बनने के बाद  लाखो, करोड़ो कमा सकते थे, लेकिन मेरा अपनी मातृभूमि, संस्कृति, और संस्कार का कर्ज अदा नहीं हो पाता, जिसको पूर्ण करने के लिए हिंदी भाषा ही मात्र एक साधन था, जिसने मेरी परम् इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए एक सेतु का कार्य किया, ततुपरांत मैंने 2008 में स्नातक हिंदी में एएमयू में प्रवेश लिया, फिर उसके बाद स्नातकोत्तर करने के दौरान छात्र राजनीति में भी भाग्य आजमाया जिसमे अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन सफल नही हो पाया उसके बाद हिंदी और सामाजिक कार्यो में पूर्णतया स्वयं को न्योछावर कर दिया, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी से एम. फिल. हिंदी करने के उपरांत गिरमिटिया, भारतवंशियों की वैश्विक स्थिति के परिदृश्य को जानने के लिए सूरीनाम देश के भारतवंशियों पर शोध के रूप में  एएमयू में अध्ययनरत, जिसके मर्म को जानने, समझने, मनन करने का अवसर मुझे छिन्नमूल उपन्यास, भारतवंशी भाषा एवं संस्कृति आलोचनात्मक जैसी पुस्तक को पढ़कर ज्ञात हुआ……जिन्होंने अपनी पुस्तको के माध्यम से मुझे गिरमिटिया श्रमिकों की वेदना, उनकी भारतवंशी पीढ़ियों के संदर्भ में जानने के लिए मजबूर कर दिया। अभी भी उनकी पीड़ा, संवेदना को समझने का निरंतर प्रयत्न कर रहा हूँ….जिस प्रकार से हिंदी भाषा को भारतवंशियों को समझने, सीखने का अवसर जो प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी ने प्रदान किया है उसके लिए हिन्दी संसार सदा उनका ऋणी रहेगा, 
विचारधारा – शुद्ध मानवतावादी ,भारतीय संस्कृति के रक्षक के रूप में काम
मौलिक पुस्तकें- भारतीय समाज और हिंदी उपन्यास
संपादित पुस्तकें- थर्ड जेण्डर कथा की हकीकत, प्रवासी साहित्य का यथार्थ
शोध आलेख- राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिका मे प्रकाशित शोध आलेख
संपति - स्वंतंत्र लेखन एवं हिंदी विभाग अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध
पता- मोहल्ला तिगड़ी न्यूरिया हुसैनपुर ज़िला पीलीभीत उत्तर प्रदेश भारत 

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