मैं बेटी हूँ

मैं बेटी हूँ
मुझे उड़ना
आसमा को छूना हैं
रंग अपना भी दिखाना हैं
 मैं बेटी हूँ
तुम से कम नहीं
साथ लेकर तो चल
तुम से आगे ही रहूंगी मैं
 मैं बेटी हूँ
बाबा के उपवन की कली
मां के आंगन की शान हूँ मैं
भाई को पूछ मेरे
कौन हूँ उसकी मैं..???
लड़ता-झगड़ता बहुत हैं मुझसे
फिर भी उसकी प्यारी बहन हूँ मैं
 मैं बेटी हूँ
आंगन में चचाहट करती
नन्ही-सी चिड़िया मैं
रिमझिम-रिमझिम करती बरखा की
नन्ही-सी बून्द हूँ  मैं
उपवन में महकती
नन्ही-सी नाजुक सी कली हूँ मैं
 मैं बेटी हूँ
इंद्रधनुष के रंगों से
अलग-अलग रंगों में हूँ मैं
कभी मां कभी बहन तो कभी पत्नी हूँ मैं
 मैं बेटी हूँ
नाजुक-सा दिल रखती
मासूम-सी हूँ मैं
मां बाबा भाई की पहचान हूँ मैं
 मैं बेटी हूँ
- श्याम राज
जन्म :- मलिकपुर , जयपुर(राजस्थान) भारत
शिक्षा :- बी.ए. , राजस्थान विश्वविद्यालय , जयपुर ,  राजस्थान
            बी. एड. , जे.एन.वी.विश्वविद्यालय , जोधपुर , राजस्थान
 अध्यावसाय :- जून 2016 से भारत तिब्बत पुलिस बल में उप निरीक्षक  पद पर कार्य कर रहा हूँ और वर्तमान में मेरी पोस्टिंग लेह लद्दाख जम्मू कश्मीर में हैं !
रूचि :- लिखना , क्रिकेट खेलना , पढ़ना , लव सॉन्ग सुनना , दोस्तों क साथ घूमना !
लेखन की विधा :- कविता , यात्रावर्तान्त , प्रेम कहानी

One thought on “मैं बेटी हूँ

  1. Thanks for capturing the irony of gender roles and an assertion of inherent confidence in the ability of carrying out the goals. You have highlighted the role of questioning the imposed self to unmask the real self.

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