बछड़ू

“क्या हुआ? कल से देख रहा हूँ। बार बार छत पर जाती हो।” विमल अनिता से पूछ बैठे।
“नहीं, ऐसा कुछ कहाँ है?”
“कोई हमसे ज्यादा स्माट आदमी आ गया है क्या, उधर?”
“बिना सोचे समझे ऊजूल फ़िज़ूल मत बोला करो। नहीं तो अच्छा नहीं होगा। कहे देती हूं।”
“अरे हम तो मज़ाक कर रहे थे। रानी साहिबा तो बुरा मान गयीं। क्या हुआ, बताओ न!”
” नहीं छोड़ो, जाने दो। तुम नहीं समझोगे।”
“अच्छा! ऐसा कौन सा चीज़ है जो तुम समझती हो और हम नहीं समझ सकते।”
“बात मत बढ़ाओ। छोड़ दो कुछ देर के लिए अकेला हमको।”
“अब तुमको मेरी सौगंध है, बताना ही पड़ेगा।”
” तुमने सौगंध क्यों दे दिया?”
” बताओ न। मेरा जी घबरा रहा है अब।”
“गनेशिया ने अपना बछड़ू बेच दिया।”
“लो,इसमें परेशान होने की क्या बात है? बछड़ू को कब तक पाले बेचारा? बैल बना कर रखना तो था नहीं।”
“नहीं दिखा न तुम्हें! गाय का दर्द नहीं दिखा न! जब से बछड़ू खुट्टा पर से गया है, गाय दो मिनट के लिये भी नहीं बैठी है। उसकी आँखों में देखोगे तो हिम्मत जबाब दे देगा।”
“वह तो होता ही है। क्या किया जा सकता है?”
“अपने सौरभ को भी जर्मनी गये हुए पाँच साल हो गए। शादी से पहले प्रत्येक दिन फोन करता था। शादी के बाद हफ्ता, महीना होते होते आज छह महीना हो गया, उसका फोन आये हुए।”
“उसका, इस बात से क्या मतलब है?”
“हमने भी तो बीस लाख और एक गाड़ी में अपने बछड़ू को….”

-  मृणाल आशुतोष

जन्म-एरौत(महाकवि श्री आरसी प्रसाद सिंह की पुण्य भूमि),समस्तीपुर(बिहार)।
पिताजी, चाचाजी और दादाजी शिक्षक रहे हैं।
शिक्षा-एम बी ए (मार्केटिंग) एम डी यूनिवर्सिटी रोहतक, एम ए(इतिहास) इग्नू यूनिवर्सिटी।
सम्प्रति- भरूच(गुजरात) एक मैनेजमेंट कम्पनी में मार्केटिंग मैनेजर पद पर कार्यरत।
प्रकाशन- दरभंगा रेडियो स्टेशन से लघुकथा और कविता का प्रसारण ।
प्रतिष्ठित लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर के सम्पादन में लघुकथा कलश महाविशेषांक सहित अनेक पत्र-पत्रिका में लघुकथा और कविता का प्रकाशन।
शौक: पुराने गीत सुनना, लघुकथा और कविता पढ़ना व उसकी समीक्षा करने की कोशिश करना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <strike> <strong>