दोहे : प्रिय होता तरबूज..

गर्मी में प्रिय है लगे,  गुणी जो बेमिसाल ।
बाहर-बाहर हरित जो, भीतर-भीतर लाल ।।
ज्योति बढ़ाये आँख की, पौष्टिकता का द्वार ।
प्राकृतिक ठण्डाई का, है अनुपम उपहार ।।
करे शीघ्र पाचन सदा,  हरे मानसिक श्रम ।
लू से छुटकारा मिले, रक्त चाप करे कम ।।
सुन्दरता का मायना,  चेहरा दे निखार ।
मिटे रोग सेवन करें, गर्मी वैद्य शुमार ।।
मौसम गरमी में सदा, प्रिय होता तरबूज ।
कुछ बातें बूझी यहाँ, कुछ रह गयी अबूझ ।।
ना खाये कप रोग में, त्याज्य निशा के मध्य ।
कविता में कवि ने कहा, आयुर्वेदिक कथ्य ।।

 

 

- विश्वम्भर पाण्डेय ’व्यग्र’

जन्म तिथि - १ जनवरी

पता- कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी , स.मा.(राज.)322201 (भारत)

विधा - कविता, गजल , दोहे, लघुकथा,

व्यंग्य- लेख आदि

सम्प्रति - शिक्षक (शिक्षा-विभाग)

प्रकाशन - कश्मीर-व्यथा(खण्ड-काव्य) एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

प्रसारण - आकाशवाणी-केन्द्र स. मा. से कविता, कहानियों का प्रसारण ।

सम्मान - विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्त 

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