मैं अनंत ब्रह्मांड की ध्वनि से
प्रकट हुआ था वर्ण
कूच किया था लक्ष्य शब्द की ओर
बना यहाँ मैं एक अधूरे शब्द से
एक संपूर्ण शब्द इस ओर |
मैं जुड़ता गया
शब्द से शब्द बनता बनता गया
शब्द से शब्द और फिर
एक अधूरे वाक्य से
संपूर्ण वाक्य बनता गया |
भीतर और बाहर से नजाने
कितने भावों और विचारों का
वहन मैं करता गया
कभी ढलान से लुड़का
तो कभी अथक चलता रहा पहाड़ों पर |
न जाने मैं कबसे कब तक चला आया
मैं बंट गया भाषाओँ में
धर्म और उनकी जातियों में
उनके ग्रन्थों की ख्यातियों में
बनता-संवरता रहा गति की रीतियों में |
कभी मैं कविता बना
तो कभी बना महाकाव्य
उपन्यास,कहानी,नाटक
कई विधायें संभाव्य
प्रस्तुत होता रहा मैं भव्यातीभव्य |
मैं बना चर-आचर का ईतिहास
समाज,संस्कृति,धर्म,विज्ञान आदि का अभ्यास
कभी बना हास तो कभी बना परिहास
कभी ज्ञान की जिज्ञासुओं का मोहक सुहास
मैं बना सच्चा मित्र कईयों के ह्रदय के पास |
मैं अनंत, अपरिमित, अटूट ,असीमित
मैं कल्पना और कल्पनातीत
मैं वर्तमान, भविष्य और अतीत
मैं नित्य नवीन और अमित
मैं मधुर ध्वनि, संगीत और अनुपम गीत |
मैं वर्णन और वर्णनातीत …..
- डॉ. सुनिल जाधव
रचनायें :-
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कहानी / एकांकी : मैं भी इन्सान हूँ / एक कहानी ऐसी भी /भ्रूण ….
शोध : नागार्जुन के काव्य में व्यंग /हिंदी साहित्य विवध आयाम / …..
अनुवाद : सच का एक टुकड़ा {नाटक }
अलंकरण : सृजन श्री ताशकंद /सृजन श्री -दुबई / हिंदी रत्न -नांदेड
विदेश यात्रा : उजबेक [रशिया]/ यु.ए.इ./ व्हियात्नाम /कम्बोडिया /थायलंड …
पता : महाराष्ट्र -०५ ,भारत
आदरणीय सम्पादक जी …शुक्रिया |
आपने मेरी कविता को आप की पत्रिका में छाप कर उसका सम्मान बढ़ाया हैं | सम्मान पुरस्कार एवं प्रोत्साहन के समान होता है | इससे मेरी कलम को और सशक्त गति मिलेगी | गति प्रदान करने हेतु आप का पुनश्च
shabd brahm hota hai.shabd se kya kya kaise nirman hua hai uski vyakhya sarahniya hai.