लिखती हूँ तुमको पाती , क्या याद नहीं आती
बाबा और बूढी मईया, सब भूल गए क्या ।
बचपन कि सारी बातें , कहानियों की रातें
बहना से लाड लड़ैया , सब भूल गये क्या ।
गर्मी की दुपहरिया , मट्ठा या ठंडी दहिया
सत्तू और चना लैय्या , सब भूल गए क्या ।
सर्दी की छुट्टिओं में , मौसी के घर को जाना
लखनऊ कि भूल भुलैया , सब भूल गए क्या ।
वोह आम के बगीचे , पड़ोस कि वोह इमली
पीपल कि ठंडी छाया , सब भूल गए क्या ।
दशमी की रामलीला , दीवाली का वोह मेला
चेतगंज कि नक्कटैया , सब भूल गए क्या ।
दीवाली के पटाखे , होली में रंग लगाके
पढ़ना बड़ो के पैँय़ा , सब भूल गए क्या ।
गिनती के दिन बचे हैं , तेरी याद में काटें हैं
इतनी अर्ज है तुमसे , यही मांगती हूँ तुमसे
फागुन में अबकी आना , बच्चों को संग में लाना
जी भर के देख लूंगी , माथे को चूम लूंगी
लूंगी तेरी बलैया ,
आ जाओ मेरे लल्ला , आ जाओ मेरे भैया ॥
- अतुल कुमार श्रीवास्तव
मैनेजिंग डाइरेक्टर डेल ,
अमेरिका