अलीगढ़। दिनांक १५ नवम्बर,२०१८ को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ‘विश्वविद्यालय प्रसार व्याख्यानमाला’ के अंतर्गत कला संकाय में “भारतीय अस्मिता और वैश्विक संस्कृति” विषय पर एकल व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी यूनिवर्स फाउंडेशन, नीदरलैंड्स की निदेशक, प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी उपस्थित रहीं, वहीं विश्वविद्यालय के सह-कुलपति प्रो. एम. हनीफ़ बेग़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो.अब्दुल अलीम ने प्रो. अवस्थी के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए मुख्य वक्ता के साथ-साथ अन्य गणमान्य अतिथियों का औपचारिक स्वागत किया।इससे पूर्व, विभागीय शिक्षक प्रो. मेराज अहमद ने प्रो. अवस्थी का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके रचनात्मक अवदान से सभी को अवगत कराया।
प्रतिष्ठित प्रवासी साहित्यकार प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने बतौर मुख्य वक्ता सभा को संबोधित करते हुए मनुष्यता के पक्ष में निर्मित उस संस्कृति के विषय में विचार करने पर बल दिया जिसके अधिकांश गुणसूत्र भारतीय संस्कृति में सन्निहित हैं। विदेशी राष्ट्रों के निर्माण के इतिहास में भारतवंशियों की भूमिका का उचित उल्लेख न होने की व्यथा का वर्णन करते हुए उन्होंने निरंतर दासता के कारण भारतवंशियों की क्षरित हो चुकी प्रतिरोध क्षमता को मुख्य कारण माना।
इसी क्रम में, प्रो. अवस्थी ने कहा कि संवेदनात्मक ज्ञान के साथ-साथ हार्दिकता में भी कोई भोगौलिक दूरी नहीं होती। संवेदना और मनुष्यता वैश्विक भाव हैं जिसका पोषण संस्कृतियों एवं साहित्य द्वारा होता है।
संस्कृति के वैश्विक संदर्भों को उद्घाटित करते हुए प्रो. पुष्पिता ने कहा कि संस्कृति पूरे विश्व को एकत्व में समायोजित करने वाला अक्षय-तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति के मानस में उसके देश का चारित्रिक गुण अनुस्यूत होता है जो उसे वैशिष्ट्य प्रदान करता है।
संस्कृति के वैश्विक संदर्भों को उद्घाटित करते हुए प्रो. पुष्पिता ने कहा कि संस्कृति पूरे विश्व को एकत्व में समायोजित करने वाला अक्षय-तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति के मानस में उसके देश का चारित्रिक गुण अनुस्यूत होता है जो उसे वैशिष्ट्य प्रदान करता है।
प्रवासी साहित्य-सृजन की मूल चेतना पर विचार करते हुए उन्होंने मानस में संचित स्मृतियों के कोश तथा चित्त-चेतना के पारस्परिक संवाद को प्रवासी साहित्य-सृजन का मूलाधार माना।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. एम.हनीफ़ बेग़ ने अपने विदेश-प्रवास के दौरान हिन्दी भाषा और संस्कृति से संबंधित अनुभवों को साझा किया। साथ ही, वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति की बढ़ रही स्वीकार्यता पर संतोष व्यक्त किया।
कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. मसूद अनवर अलवी ने प्रो. पुष्पिता की रचनात्मक सक्रियता की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए उनके तथा अन्य उपस्थित अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रो. मेराज अहमद ने किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ विश्वविद्यालय की परंपराओं के अनुरूप पवित्र कुरान की आयतों के सस्वर पाठ से हुआ। तत्पश्चात, प्रो. अवस्थी को विश्वविद्यालय की ओर से पुष्प-गुच्छ एवं स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में, हिन्दी विभाग के शोधार्थी अकरम हुसैन की सद्यप्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण भी संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के साथ-साथ अन्य विभागों के शिक्षकों के साथ ही बड़ी संख्या में शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के साथ-साथ अन्य विभागों के शिक्षकों के साथ ही बड़ी संख्या में शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे।
– अम्बरीन आफ़ताब
शोधार्थी,
हिन्दी विभाग,
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
हिन्दी विभाग,
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय