पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध
चहचहाती चिडि़याओं के बार में
कुछ भी नहीं सोचते।
वे सोचते हैं कड़कड़ाते जाडे़ की
खूबसूरत चालों है बारे में
जबकि मौसम लू की स्टेशनगनें दागता है,
या कोई प्यासा परिन्दा
पानी की तलाश में इधर-उधर भागता है।
पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध
कोई दिलचस्पी नहीं रखते
पार्क में खेलते हुए बच्चे
और उनकी गेंद के बीच।
वे दिलचस्पी रखते हैं इस बात में
कि एक न एक दिन पार्क में
कोई भेडि़या घुस आयेगा
और किसी न किसी बच्चे को
घायल कर जायेगा।
पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध
मक्का या बाजरे की
पकी हुई फसल को
नहीं निहारते,
वे निहारते है मचान पर बैठे हुए
आदमी की गिलोल।
वे तलाशते हैं ताजा गोश्त
आदमी की गिलोल और
घायल परिन्दे की उड़ान के बीच।
पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध
रेल दुर्घटना से लेकर विमान दुर्घटना पर
कोई शोक प्रस्ताव नहीं रखते,
वे रखते हैं
लाशों पर अपनी रक्तसनी चौंच।
पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध
चर्चाए करते हैं
बहेलिये, भेडि़ये, बाजों के बारे में
बड़े ही चाव के साथ,
वे हर चीज को देखना चाहते हैं
एक घाव के साथ।
पीपल जो गिद्धों की संसद है-
वे उस पर बीट करते हैं,
और फिर वहीं से मांस की तलाश में
उड़ानें भरते हैं।
बड़ी अदा से मुस्कराते हैं
‘समाज मुर्दाबाद’ के
नारे लगाते हैं
पीपल के पेड़ पर बैठे हुए गिद्ध।
- रमेशराज
पूरा नाम- रमेशचन्द्र गुप्त
पिता- लोककवि रामचरन गुप्त
जन्म-15 मार्च , गांव-एसी, जनपद-अलीगढ़
शिक्षा -एम.ए. हिन्दी, एम.ए. भूगोल
सम्पादन- तेवरीपक्ष [त्रैमा. ]
सम्पादित कृतियां
1. अभी जुबां कटी नहीं [ तेवरी-संग्रह ]
2. कबीर जि़न्दा है [ तेवरी-संग्रह]
3. इतिहास घायल है [ तेवरी-संग्रह ]
4-एक प्रहारः लगातार [ तेवरी संग्रह ]
स्वरचित कृतियां
रस से संबंधित-1. तेवरी में रससमस्या और समाधान 2-विचार और रस [ विवेचनात्मक निबंध ] 3-विरोध-रस 4. काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण
तेवर-शतक
लम्बी तेवरियां-1. दे लंका में आग 2. जै कन्हैयालाल की 3. घड़ा पाप का भर रहा 4. मन के घाव नये न ये 5. धन का मद गदगद करे 6. ककड़ी के चोरों को फांसी 7.मेरा हाल सोडियम-सा है 8. रावण-कुल के लोग 9. अन्तर आह अनंत अति 10. पूछ न कबिरा जग का हाल
शतक
1.ऊघौ कहियो जाय [ तेवरी-शतक ] 2. मधु-सा ला [ शतक ] 3.जो गोपी मधु बन गयीं [ दोहा-शतक ] 4. देअर इज एन ऑलपिन [ दोहा-शतक ] 5.नदिया पार हिंडोलना [ दोहा-शतक ] 6.पुजता अब छल [ हाइकु-शतक ]
मुक्तछंद कविता-संग्रह
1. दीदी तुम नदी हो 2. वह यानी मोहन स्वरूप
बाल-कविताएं-
1.राष्ट्रीय बाल कविताएं
प्रसारण-आकाशवाणी मथुरा व आगरा से काव्य-पाठ
सम्मानोपाधि-
‘साहित्यश्री’, ‘उ.प्र. गौरव’, ‘तेवरी-तापस’, ‘शिखरश्री’
अभिनंदन-सुर साहित्य संगम [ एटा ] , शिखर सामाजिक साहित्कि संस्था अलीगढ़
अध्यक्ष-1.सार्थक सृजन [ साहित्यक संस्था ] 2.संजीवन सेवा संस्थान ;सामाजिक सेवा संस्था 3.उजाला शिक्षा एवं सेवा समिति [ सामाजिक संस्था ]
पूर्व अध्यक्ष-राष्ट्रीय एकीकरण परिषद, उ.प्र. शासन, अलीगढ़ इकाई
सम्प्रति- दैनिक जागरण’ से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सम्बद्ध
सम्पर्क- 15/109, ईसानगर, निकट-थाना सासनी गेट, अलीगढ़ [ उ.प्र. ]
-रमेशराज
आदरणीय सम्पादक जी
एम्स्टल गंगा के अन्य अंकों की भांति यह अंक भी नायाब, जनोपयोगी और सार्थक रचनाओं का सुगन्धित समावेश लिए है। पत्रिका में स्थान देने हेतु हार्दिक आभार
सादर
रमेशराज