सब कुछ लुटा कर भी खली हाथ
बस आंसू अपने लिए जा रही हूँ।
तू जिए कहीं भी, खुश ही रहना
मैं बस यादें अपनी लिए जा रही हूँ।
तेरे शहर से, न चाह के भी
तेरा आशियाना छोड़ कर जा रही हूँ।
मेरे दिल में धड़कन ही नहीं, तेरा प्यार भी है
वो प्यार फिर से पाने की आस लिए जा रही हूँ ।
रह पाऊँगी भी या नहीं बिन तेरे
बिना कोई उम्मीद लिए जा रही हूँ ।
तू लौट कर आएगा या नहीं, मेरे लिए
मैं तेरे इंतज़ार में जिए जा रही हूँ ।
हार गयी मैं ज़िन्दगी-ओ-हालातों से अब
और नहीं बस ये ज़िस्म लिए जा रहीं हूँ ।
प्यार के इस खेल में,अपनी जान ही नहीं,
अपना अस्तित्व भी दाव पर लगा कर जा रही हूँ।
जाते-जाते सुनता जा अ हमदम
तेरे शहर से टूटे सपने लेकर जा रही हूँ ।
- नीरज सोरखी “उजली धूप”
हिसार(हरियाणा) भारत