ग़ज़ल १:
किस हुनर के मुज़ाहिरे में हो?
तुम तो खुद से मुक़ाबले में हो
क़त्ल करना तो इसको ठीक नहीं
इश्क़ की मौत हादसे में हो
चाँद आएगा सुल्ह करने को?
जाग जाओ ,मुग़ालते में हो
नाम मैं दूसरा मुहब्बत का?
तुम हो पागल या फिर नशे में हो
आते-आते हंसी यूं फिसली है
जैसे अश्कों के रास्ते में हो
चाँद ग़ायब है ,चाँद रातों से
क्या पता मेरे आइने में हो?
तुम चले थे ख़ला को भरने..क्यूँ?
लौट आये कि रास्ते में हो?
कौन मुंसिफ बने सिवा दरिया
इक जज़ीरा जो कटघरे में हो
ग़ज़ल २
मैं देखती हूँ जिसे भी वो ख़ुद में मुब्तला है
ये कैसी दुनिया हुई है,ये सब को क्या हुआ है?
अभी हुई है अदब की दुनिया में मेरी आमद
अभी तो मेरे लिए ये क़िस्सा नया नया है
मैं सोचती हूँ अजीब है पर ये बात सच है
कि खोज में हर ख़ला के इक दूसरा ख़ला है
थी मुंतज़िर तो निगाहें इक दूसरे की, पर अब
मेरी ख़बर है कोई न उसका ही कुछ पता है
उधार के दिन हैं सारे,मांगी हुई हैं रातें
जो कुछ नहीं है मेरा ,तो किस बात का गिला है
ग़ज़ल ३
देखी गली न उसकी, कभी उसका दर न देखा
सब कुछ अबस है, उसको तूने अगर न देखा
वो साथ था तो मेरे क़दमों में मंज़िलें थी
पर उसके बाद मैं ने, वैसा सफ़र न देखा
मेमार के ही हाथों, टूटा था जो वो घर हूँ
अपनों के हाथ अपना, ज़ेरो-ज़बर न देखा
जिसको तमाम दुनिया में ढूंढती रही मैं
मुझमें ही रह रहा था, मैं ने मगर न देखा
कहने को उम्र कम है, हर सम्त है नज़ारे
इक उम्र में ही मैनें, क्या-क्या मगर न देखा
थी ख़ाक उसकी क़िस्मत, सो आया ख़ाक ले कर
था सामने गुहर पर, उसने उधर न देखा
नाराज़गी की शायद, थी इन्तिहाँ तभी तो
उसने इधर न देखा, मैंने उधर न देखा
ग़ज़ल ४
इस तरह से अपना सौदा कर दिया
मुझ में हिस्सा तेरा दुगना कर दिया
कुछ नहीं था देखना तेरे सिवा
मैंने हर चेहरे को तुझसा कर दिया
वक़्त का दिल आ गया मुझ पर तभी
मैंने सबका काम पक्का कर दिया
दूर तक पानी का सहरा था मगर
प्यास ने पानी को रुस्वा कर दिया
मर रहा था प्यास से सहरा तभी
“रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया
फेर ली उसने नज़र जाते हुए
काम उसने मेरा आधा कर दिया
ये उदासी हर तरफ़ बिखरे न सो
नाम इसके एक कमरा कर दिया
उस ने सब रक्खा था सब के वास्ते
हम ने सब कुछ तेरा-मेरा कर दिया
- पूजा भाटिया प्रीत
नाम: पूजा भाटिया
उपनाम: प्रीत
जन्मस्थान: अकोला (महाराष्ट्र)
औपचारिक शिक्षा: जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से जीव विज्ञानं में स्नातकोत्तर
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर से बी एड
व्यवसाय: विभिन्न सीबीएसई विद्यालयों में अध्यापन, बच्चों की मार्गदर्शिका एवं परामर्शदात्री, फिलहाल इंदौर में अपने पति एवं दो तूफानी बच्चों को सँभालने का पूर्णकालिक कार्य
अन्य उप्लभ्धियाँ: स्कूल एवं कॉलेज के दिनों में बास्केटबाल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन
विधा: कहानी, हिंदी कविता एवं ग़ज़ल
प्रकाशन: प्रथम काव्य संग्रह “प्रीत” 2010 में इंदौर से प्रकाशित, विभिन्न हिंदी पत्र पत्रिकाओं में कहानिओं, कविताओं एवं ग़ज़लों का नियमित प्रकाशन
सम्मान: 2011 में विश्व पुस्तक दिवस पर शासकीय पुस्कालय इंदौर द्वारा मध्य प्रदेश के नवोदित युवा साहित्यकार पुरुस्कार से सम्मानित
सदस्यता: हिंदी साहित्य समिति इंदौर, हिंदी परिवार इंदौर की आजीवन सदस्य
अन्य उप्लभ्धियाँ: आकाशवाणी इंदौर पर कविता पाठ एवं विभिन्न मंचों से कविता पाठ
संपर्क: इंदौर-452009 (म.प्र.)