सरलता सादगी की ये तू संगत छोड़ मत देना
सभी को प्यार करने की ये आदत छोड़ मत देना
बड़ी अच्छी मुझे लगती ये आदत हक़ जताने की
ये चंचलता ये अपनापन शरारत छोड़ मत देना
मुनाफ़े के बिना होते कई सौदे ज़माने में
मगर जो अस्ल चीज़ो की है कीमत छोड़ मत देना
मिली जो प्यार और ममता यही सच्चा ख़ज़ाना है
बहुत मुश्किल से मिलती है ये दौलत छोड़ मत देना
तेरे जीवन की ऐसे तो तरक़्क़ी ग़ैर मुमकिन है
कभी तू और पाने की ये हसरत छोड़ मत देना
यही तो है सबब तुझको जो इतना प्यार मिलता है
सुनीता तू क़लम की ये इबादत छोड़ मत देना
- सुनीता काम्बोज
जन्म : १० अगस्त 1 , जिला यमुनानगर (हरियाणा)
विधा : ग़ज़ल , छंद ,गीत
शिक्षा : हिन्दी और इतिहास में परास्नातक
प्रकाशन : अनुभूति काव्य संग्रह
ब्लॉग : शब्दों की महक
सम्पर्क : यमुनानगर (हरियाणा) , भारत
