१.
यहाँ तो कोई भी लगता नहीं खुदा महफूज़
दयार और कोई अब मुझे दिखा महफूज़।
यहाँ तो कोई भी लगता नहीं खुदा महफूज़
दयार और कोई अब मुझे दिखा महफूज़।
हर एक नफ़्स को चखनी है मौत की लज़्ज़त।
तेरा ग़ुलाम मगर मर के भी रहा महफूज़।
तेरा ग़ुलाम मगर मर के भी रहा महफूज़।
हमारा चहरा तो इस मुफ़लिसी ने तोड़ दिया।
कमाल देखो रहा फिर भी आईना महफूज़।
कमाल देखो रहा फिर भी आईना महफूज़।
ग़म ए हयात भला तुझसे क्या करूँ शिकवा।
बिछड़ के तुझ से नही कोई भी रहा महफ़ूज़।
बिछड़ के तुझ से नही कोई भी रहा महफ़ूज़।
हज़ार चाहे करे कोशिशे अगर दुनिया।
खुद के फ़ज़्ल से रहते है पारसा महफूज़।
खुद के फ़ज़्ल से रहते है पारसा महफूज़।
खुदा ही जाने भला ये तज़ाद है कैसा।
जो टूट जाऊं तो खुद को लगु सदा महफूज़।
जो टूट जाऊं तो खुद को लगु सदा महफूज़।
ये राह ए इश्क़ है महबूब तुम सम्भलके जरा
यहाँ से कोई गुज़र कर नहीं रहा महफूज़।
महबूब सोनालिया
यहाँ से कोई गुज़र कर नहीं रहा महफूज़।
महबूब सोनालिया
२ .
कोई भी अक़्स कब ठहरा हुआ था।
नज़र को हर दफआ धोखा हुआ था।
कोई भी अक़्स कब ठहरा हुआ था।
नज़र को हर दफआ धोखा हुआ था।
सुनाकर जो गया है वक़्त मुझको।
वो जुमला मेरा ही बोला हुआ था।
वो जुमला मेरा ही बोला हुआ था।
उसे खुद से शिकायत थी बहुत ही।
ज़माना जिसका दीवाना हुआ था।
ज़माना जिसका दीवाना हुआ था।
किसी की भी नहीं सुनता था ये दिल।
तुम्हारे इश्क़ में बहरा हुआ था।
तुम्हारे इश्क़ में बहरा हुआ था।
तुम्हारे आस्ताने पर ही आ कर
मैं रंजो ग़म से बेगाना हुआ था।
मैं रंजो ग़म से बेगाना हुआ था।
हुई थी ज़िंदगी रौशन उसी से।
सितारा मर्ग का चमका हुआ था।
सितारा मर्ग का चमका हुआ था।
पराया था मेरे महबूब खंजर।
मगर वो हाथ पहचाना हुआ था।
महबूब सोनालिया
मगर वो हाथ पहचाना हुआ था।
महबूब सोनालिया
३ .
शिकता-पा हो मगर होसला जो हारा नहीं
कीसी भी हाल में वो शख्स बेसहारा नहीं ।
शिकता-पा हो मगर होसला जो हारा नहीं
कीसी भी हाल में वो शख्स बेसहारा नहीं ।
यही तो अज़मते सरकार की सताईश है।
खुदा ने उनको कभी नाम से पुकरा नहीं
खुदा ने उनको कभी नाम से पुकरा नहीं
रजा खुदा की यही है कि कर्जदार रहे
तभी तो क़र्ज़ ये माँ-बाप का उतरा नहीं।
तभी तो क़र्ज़ ये माँ-बाप का उतरा नहीं।
हमेशा आराइश ए जिस्म में रहे मसरूफ़।
कभी भी आईना ए जिंदगी संवरा नहीं
कभी भी आईना ए जिंदगी संवरा नहीं
मैं अपनी नज़रों में हो जाऊं खुद का ही मुज़रिम।
मेरे ज़मीर को ये तो कभी गँवारा नहीं
मेरे ज़मीर को ये तो कभी गँवारा नहीं
मिला ये फैज़ है इस दौरे तरक्की से हमे।
दिखाइ देता फलक पर कोइ सितारा नहीं।
महेबूब सोनालिया
दिखाइ देता फलक पर कोइ सितारा नहीं।
महेबूब सोनालिया
४ .
पूछो की मेरी सच्ची खबर किस के पास है।
मेरी ज़मीं पे आज ये घर किस के पास है।
पूछो की मेरी सच्ची खबर किस के पास है।
मेरी ज़मीं पे आज ये घर किस के पास है।
मकतब उधर है और इधर सु ए मैक़दा।
देखो की अब वो जाता किधर, किस के पास है।
देखो की अब वो जाता किधर, किस के पास है।
बस्ती है ये गरीब की, बस प्यार है यहाँ।
मत पूछ के सब लालो गोहर किस के पास है।
मत पूछ के सब लालो गोहर किस के पास है।
ये हौसला है मेरा की बिन पैर दौड़ दूँ।
जज़्बा ये भला जिन्नो बशर किस के पास है।
जज़्बा ये भला जिन्नो बशर किस के पास है।
दस बाय दस का मिलता है मुश्किल से जोपड़ा।
सपनो का हसीं रंग नगर किस के पास है।
सपनो का हसीं रंग नगर किस के पास है।
रोते हुए जो आदमी को पल में हँसा दे।
‘महबूब’ आज ऐसा हुनर किस के पास है।
महबूब सोनालिया
‘महबूब’ आज ऐसा हुनर किस के पास है।
महबूब सोनालिया
५ .
ये करिश्मा भी है इन नज़र के लिए।
बिक गए खुद ही बस एक घर के लिए।
ये करिश्मा भी है इन नज़र के लिए।
बिक गए खुद ही बस एक घर के लिए।
ज़िंदगी की डगर पे है ये बोझ सा।
बुग्ज़ का इतना सामाँ सफर के लिए।
बुग्ज़ का इतना सामाँ सफर के लिए।
तेरे जलवे हर एक शय में मौजूद थे।
मैं तरसता रहा इक नज़र के लिए।
मैं तरसता रहा इक नज़र के लिए।
ज़िंदगी भर रहा मैं अंधेरो में बस
कोई मुझ में जला उम्रभर के लिए।
कोई मुझ में जला उम्रभर के लिए।
अर्श से लौट आती है हर इक दुआ।
माँ के आमीन वाले असर के लिए।
माँ के आमीन वाले असर के लिए।
मेरे महबूब दुनिया बड़ी थी मगर
हम भटकते रहे एक घर के लिए
हम भटकते रहे एक घर के लिए
- महबूब सोनालिया
एल आई सी
सीहोर , भावनगर , गुजरात
सीहोर , भावनगर , गुजरात