कांटों में अपनी राह बनाते रहे हैं हम।
बंजर जमीं पर फूल खिलाते रहे हैं हम।
सोने न देगें देश को अब गहरी नींद में,
में जागरण का गीत सुनाते रहे हैं हम।
आधार जिनके हम है, ना तकलीफ उनकेा हो।
तूफां से नाव उनकी बचाते रहे हैं हम ।
काटें सदा बिछाये है, राहों में आज तक ,
राहों ने उनकी फूल बिछाते रहे हैं हम ।
है बर्क की नज़र में हमारा ही आशियाँ,
नज़रो से उनकी इसको बचाते रहे है हम।
– डॉ प्रभा शर्मा ‘सागर’
जन्म: सागर (मध्य प्रदेश )
मातृभाषा : हिंदी (बुंदेलखंडी )
शिक्षा : एम ए , बी एड , बी एस सी
मानद उपाधि : डॉ
प्रकाशन : गजल /कविता संग्रह “तिमिर की उम्र ढलती जा रही है “, नवभारत , दबंग दुनिया , लोकजंग , महानगर आदि विभिन्न पात्र पत्रिकाओं में लेख /कवितायेँ प्रकाशित।
प्रसारण : मुंबई आकाशवाणी से कथा।