सूई-धागा

वह
अब नहीं डाल पाती है
सूई में धागा
आँखे कमजोर हो गई हैं
उम्र के साथ
दूर तक नहीं देख पाती
पास का भी
नहीं दीखता उसे स्पष्ट

उधड़े रिश्तो को
कैसे सिले वह।

 

- अरुण चन्द्र रॉय 

संपर्क : इंदिरापुरम, गाज़ियाबाद
सम्प्रति : भारत सरकार में वरिष्ठ अनुवादक . देश के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में कविता प्रकाशित।

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