तुम कभी टूटे नहीं
इस लिए हंस रहे हो
जिस दिन टूटेगा
तुम्हारी आत्मा का दर्पण
उस खणिडत दर्पण में
अपने आपको
अनेक खण्डों में विभाजित हुआ
पाओगे
तब अहसास होगा तुम्हें
टूटना कैसा होता है
दर्पण की टूटन में
हर एक का दर्द है
हर एक की पीड़ा
धरती पर रह कर
आकाश बनने के सपने
हर कोर्इ देखता है
आकाश बन जाने के बाद
धरती के सपने कोर्इ नहीं देखता
दर्पण अपनी सार्थकता
कभी नहीं खोता
अपनी खण्डता में भी अखण्डता
वह तुम्हारे असितत्व का कवच है
दर्पण बनोगे तो
तुम हार बन जाओगे
सच
इसी में तुम्हारे होने की सार्थकता है।
- राजकुमार जैन ’राजन’
जन्म तिथि : २४ जून
जन्म स्थान : आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
लेखन विधाएं : कहानी, कविता, पर्यटन, लोक जीवन एवं बाल साहित्य
प्रकाशन : लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन : कर्इ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन
पुरस्कार व सम्मान : राष्ट्रीयप्रादेशिक स्तर पर ६० सम्मान
संस्थापक : ‘सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार,
‘डॉ राष्ट्रबंधु स्मृति बाल साहित्य सम्मान एवं कर्इ साहित्यिक सम्मानों के प्रवर्तक,
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का कि्रयान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन, आकोला , चित्तौडगढ़ (राजस्थान)