शब्द तेरे….

शब्द तेरे मखमली से,
मेरे जख्मों पर लगते हैं,
दवा से…
इनके परों पर बैठ कर,
हल्की हो जाती हूँ मैं
हवा से…
चाहती हूँ..शब्द यूँ पहरन ,
की तरह लपेट लूँ..
तेरे शब्दों की सुन्दरता
आँखों में समेट लूँ…
तेरे शब्दों की नज़र से ,
खुद को देख लूँ…
अगुँलियां फेर के अपनी
शब्द छू लेती हूँ तेरे.
मय बनते हैं शब्द तेरे,
कानों में घुलते हैं,
नशे में इनके लोग रस्ते,
घर के भूलते हैं,
खुश्बू हैं इनमें टहनियों,
से जैसे फूल झरते हैं..
जादू सा होता है क्या,
हर शैअ हिल जाती है..
जैसे अपनी जगह से….
शब्द तेरे….

 
- शैली किरण

जिला: हमीरपुर , हिःप्रः

 

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