मालवी साफा में हिंदी की बुंदकी वालो पोथो “पचरंगो मुकुट “:
मालवी का ख्यात,प्रतिष्ठित और तेजी से मालवा और मालवी साहित्य का उभरता रचनाकार श्रद्धेय राजेश भंडारी “बाबु” ने अपनी रचना धर्मिता से साहित्य जगत में अपना स्थान बनाने में सफलता प्राप्त की हे | प्रस्तुत “ कृति पचरंगो मुकुट “ इसका एक बेहतरीन उदाहरण हे | मालवी लोकभाषा बोली के साथ साथ अपने हिंदी भाषा को भी इस कृति में सम्मान जनक स्थान प्रदान किया हे | जहा प्रस्तुत कृति में अपने मालवी की रचनाये ,केवाड़ा और जापानी साहित्य विधा हायकु की रचनाए शामिल की हे वही हिंदी की कविताए एवं जुगलबंदी इस कृति में बेहद महत्वपूर्ण पठनीय एवं संग्रहणीय हे | मालवी रचनाए ,केवाड़ा ,हायकू ,हिंदी रचनाए एवं जुगलबंदी शीर्षक से इस पुस्तक को रचनाकार ने पाच रंगों से सजाते हुवे प्रस्तुत कृति के शीर्षक “पचरंगो मुकुट “ को सार्थकता प्रदान की हे | कृति शीर्षक का पहला शब्द “पचरंगो” मालवी बोली भाषा का प्रतीक हे वही “मुकुट” हिंदी भाषा के प्रतीक रूप में कृति के मुखप्रष्ठ पर सुसज्जीत होकर कृति के भीतर की या यु कहे की कृति के मन की बात को मुह पर लाने का एक सार्थक प्रयास हे | और इस सार्थक प्रयास में चार चाँद लगाने का स्वर्नियम प्रयास आवरण कार /चित्रकार /कवि /साहित्यकार /कलाकार और न जाने क्या क्या हे ऐसे आदरणीय श्री संदीप राशिनकर जी ने किया हे | कृति के भीतरी प्रष्ठो पर भी रचनाकार श्री राजेश भंडारी “बाबु” एवं चित्रकार श्रद्धेय संदीप राशिनकर जी और श्री हृषिकेश जी की अदभुत जुगलबंदी देखने / पड़ने व् अनुभव करने को मिलती हे | प्रस्तुत कृति के माध्यम से कलम और तुलिका की आनंदमयी त्रिवेणी में स्नान करने का सुअवसर पाठक वर्ग एवं आप ,हम सभी को प्राप्त होगा |
रचनाकार श्री राजेश भंडारी “बाबु” द्वारा स्वयं प्रकाशित इस दो सो चालीस (२४०) पेज की सजिल्द कृति में मालवी /हिंदी रचनाओं के साथ साथ मालवांचल में बोली जाने वाली मालवी कहावतो को “ मालवी केवाड़ा” शीर्षक से संग्रहित किया गया हे जो बेहद महत्व पूर्ण कार्य हे | इस प्रकार के कार्य तभी हो सकते हे जब हमारे भीतर अपनी संस्कृति अपने संस्कार एवं अपनी परम्पराओ के साथ साथ अपनी भाषा /बोली के प्रति अटूट श्रद्धा,आस्था ,विश्वास एवं जुड़ाव हो | आपने मालवी केवाड़ो के माध्यम से सिर्फ मालवी की कहावते ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मालवा प्रान्त की संस्कृति ,संस्कार एवं परम्पराओ के साथ बोली के पराग को इस संग्रह में एकत्रित किया हे जो युगों युगों तक शहद की तरह मीठी मालवी बोली की मिठास को बरकरार रखेगा |
प्रस्तुत कृति में प्रकाशित मालवी रचनाओ के माध्यम से रचनाकार ने जहा एक तरफ मालवा के वैभव एवं मालवी जन जीवन की बेदना संवेदना ,कथा व्यथा को उकेरा हे वही हिंदी रचनाओ एवं दो-दो ,चार- चार पंक्तियों की जुगलबंदी के माध्यम से आपने सम्पूर्ण राष्ट्र एवं सृष्टी की, समाज की,मानव प्रकृति एवं प्राणिमात्र की वेदना –संवेदना को कागजी केनवास पर बेहद करीने से उकेरा हे | कला /साहित्य एवं संस्कृति से माला माल इस मालवा प्रान्त की महत्ता को संजोने में इस कृति ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हे | बाबा महाकाल की ससुराल एवं माँ अन्नपूर्णा ,पार्वती का पीहर कहे जाने वाले एस मालवा प्रान्त की अपनी महिमा हे | माँ अन्नपूर्णा की कृपा से यहाँ सदेव अन्न जल के भंडार भरे रहते हे जिसके बारे में संत कवि कबीर दास जी ने कहा हे की मालव माटी गहन गंभीर डग डग रोटी पग पग नीर | उपजाऊ मिट्टी एवं स्वच्छ निर्मल नीर लिए बहती रेवा ,छिप्रा,चम्बल , पार्वती ,कालीसिंध ,और गंभीर जेसी सरिताए निश्चित रूप से मालवा प्रान्त को माला माल बनाकर मालवा वासियों को सुख सम्रध्धि एवं निश्चितता प्रदान करती हे | और यही कारण हे की मालवा की धरती को कला /साहित्य की उर्वरा धरती कहा जाता हे | इस उर्वरा धरा ने सृष्टी को कई रत्न प्रदान किये हे जिन्होंने अपने व्यक्तित्व व् कृतित्व से इस प्रान्त का नाम सम्पूर्ण जगत में विख्यात किया हे | उसी परम्परा में प्रस्तुत कृति के रचनाकार श्री राजेश भंडारी “बाबु” का नाम लिया जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | मै इस श्रेस्ठतम हिंदी मालवी कृति के लिए उन्हें बधाई प्रेषित करता हु |
पुस्तक “ पचरंगो मुकुट “
लेखक एवं प्रकाशक : राजेश भंडारी “बाबु”
प्रथम संस्करण : जनवरी ,२०१७
मूल्य : २००/
समीक्षक
- डॉ राजेश रावल “सुशील”
गोंदिया ,पोस्ट लेकोड़ा जिला उज्जैन (म.प्र.) ४५६००६