मैं कैदी हूँ

(१)
बडे दिनों बाद
लौटा हूँ अपने देश
जिंदा था तब तक
हुक्मरानों की बातचीत के
समीकरणों में,
मैं उलझता रहा
कूटनीति के शब्दजालों में,
मैं फँसता रहा
पर मेरी टीस ना सुन सका कोई
शायद इसलिए कि
मैं कैदी हूँ
अपने नहीं, दूसरे मुल्क का।

(२)

धरती पर खींची ये रेखाएँ
मुल्कों के नाम तो बदलती हैं
पर सोचता हूँ सुबहो शाम
क्या ये रेखाएँ
वाकई बदलती हैं
लहू के रंग भी
और ढालती हैं आदमी को
मानवता के अलग-अलग
साँचो में
आखिर आज जवाब मिल ही गया
मुझे
हां, ये निर्जीव रेखाऐं
भौगोलिक सीमाएँ ही नहीं बनाती
वरन् गढ़ती हैं, संवेदना शून्य-वेदना शून्य
आदम
तभी तो कत्ल कर दिया गया मैं
क्योंकि, मैं कैदी हूँ
हमवतन नहीं, दूसरे मुल्क का।

(३)

आज श्रांत सा क्लांत सा मैं
देख रहा हूँ, इस दुनियां का खेल
दिया जा रहा है
सम्मान मुझे, वो भी राजकीय
और गार्ड्स की सलामी भी
पर ऐ! मेरे मुल्क के हुक्मरानो
पूछता हूँ तुमसे आज
आखिर वक्त रहते
क्यूँ न सुनी गयी
इस पिता की टीस
जो सुकून से
गले भी न लगा सका
अपनी रानी बिटिया को
आखिर क्यूँ न देखी वह पीड़ा
इन आँखों में
जो ढूँढती थी इस कलाई पर
बहन की राखी
आखिर क्यूँ, वैदेशिक सम्बन्धों की
कसौटी पर
प्यादे की तरह इस्तेमाल होता रहा
मैं,
कभी दोस्ती का पुल बना
तो कभी
स्तरीय वार्ताओं का विषय मात्र
पर रहा मैं कैदी ही।

(४)

जाते-जाते बस एक पैगाम
जाग जाओ गहरी नींद से
और सुलझा दो, जल्द से जल्द
दोनों मुल्कों के कैदियों का मसला
दे दो जिन्दगी
उन सैंकड़ो कैदियों को
जिसकी टीस को समझ सकता
हूँ मैं,
क्योंकि मैं भी एक कैदी हूँ।

 
 - रेणुका बड़थ्वाल

जन्मतिथि       :   १ ८ जून, चूरू में

स्थायी पता        :    सुभाषनगर, सरदारशहर , जिला चूरू, राजस्थान, भारत

शिक्षा व कार्यानुभव   :

- एम.ए. (हिन्दी साहित्य), राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से
- कुछ समय काॅलेज (पाली, मारवाड़) में हिन्दी अध्यापन
- हिन्दी के साथ अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़
- इग्नू से अनुवाद में पी.जी. डिप्लोमा कोर्स में अध्ययनरत
- स्वतन्त्र लेखन जारी
प्रकाशन व पुरस्कार  :

- बचपन से कविताएँ लिखने का शौक। ‘‘बच्चों का देश’’ व ‘‘बाल भास्कर’’ ने लेखन हेतु मंच प्रदान किया।
- मधुमती, साहित्य अमृत, अनुकृति व कादम्बिनी में कविताएँ प्रकाशित।
- विश्व हिन्दी सचिवालय मारीशस की अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी लघु कथा प्रतियोगिता २०१४ में भारतीय भौगोलिक क्षेत्र से द्वितीय स्थान प्राप्त।
- अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का ‘डा. सरला अग्रवाल पुरस्कार’ कहानी ‘वह चला गया’ के लिए प्राप्त।
- राजस्थान साहित्य अकादमी का डा. सुधा गुप्ता पुरस्कार २००५ -०६ कहानी ‘बाबा! मेरे श्रद्धेय’ के लिए प्राप्त।

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