मकान नहीं घर
मुझे अपने मकान से नहीं
अपने घर से लगाव है|
पहले जब मकान के नाम पर
एक छोटी सी झोंपड़ी थी
घर महलों से भी बड़ा था|
जबसे मकान महल बन गया
घर न जाने कहाँ खो गया|
मुझे घर चाहिए
मकान नहीं
जहाँ सिर्फ रिश्तों का व्यापार हो
ऐसी दुकान नहीं
मुझे घर चाहिए
मकान नहीं|
- पंकज भाटिया ‘कमल’
शिक्षा: एम् एस सी (भौतिकी), एम् बी ए
व्यवसाय: मुंबई में मल्टी नेशनल आई टी कंपनी में सेल्स मेनेजर
लेखन संप्रति : स्वतन्त्र लेखन
लेखन विधा: छंदमुक्त कविता, आलेख, निबन्ध आदि
पिछले चौदह वर्षों से विभिन्न हिंदी एवं अंगेजी पत्र पत्रिकाओं में सम सामयिक विषयों पर आलेख प्रकाशित
प्रथम कविता संग्रह शीघ्र प्रकाशन के लिए तैयार