एक बंदर बड़ा शैतान था । जंगल में दंगल करता हुआ एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर उछलता ,मटकता । दूसरों की नकल करता हुआ उल्टे –सीधे चेहरे बनाता । अब चाहे किसी को बुरा लगे या भला ।
बंदर को शक्कर जैसे मीठे आम चूसना और उनकी गुठलियों से निशाना लगाना बड़ा पसंद था । पेट भर जाने पर टहनियों को ज़ोर –ज़ोर से हिलाकर खुश होता चाहे कोई टहनी टूटकर नीचे जा पड़े या किसी को घायल कर दे पर उससे उसे क्या !अपने में मस्त रहने वाला दूसरों के दुख क्या जाने ।
आम के पेड़ के नीचे एक चुहिया का बिल था । उसने बड़ी मेहनत से मिट्टी की खुदाई की । एक पतली सी सुरंग अपने बच्चों के रहने के लिए बनाई । अंदर बच्चे निडर होकर रहते और चुहलबाजी करते । लेकिन चुहिया माँ के जाते ही बिल से निकल पड़ते । छुआछाई खेल में वे अधाधुंध भागते और एक बच्चा दूसरों को छूने की कोशिश में रहता।जब उस खेल से उकता जाते तो आँखमिचौनी खेलने लगते। । पत्तों के पीछे या पेड़ के तने की ओट में अपने को छिपाने की कोशिश करते।
एक दिन दुष्ट बंदर ने उन्हें देख लिया । उनकी खुशी उससे बर्दाश्त न हुई । वह आम खाकर गुठलियों से चुहिया के बच्चों पर निशाना लगाने लगा । इससे किसी के कान पर,किसी के पेट पर चोट आई और रोते सिसकारी भरते बिल में घुस गए। माँ जैसे ही घर में घुसी,शिकायतों की गठरी खोल बैठे –माँ –माँ बंदर मामा ने हमें गुठलियों से मारा । देखो –देखो मेरा पैर फूल गया । अब मैं कैसे चलूँगा । छोटे की रुलाई फूट पड़ी ।
-ओह !रोना –धोना बंद करो । थकी चुहिया झल्लाई ।
वह बिल से बाहर आई और बोली –बंदर भाई ,आम खाकर गुठलियाँ नीचे न गिराओ । मेरे बच्चों को उनसे चोट लग गई है । तुमको भी उनका ध्यान रखना चाहिए ,आखिर हो तो तुम उनके मामा ।
-हूँ –मामा –। बंदर ने मुंह चिढ़ाया ।
उस पर चुहिया की बात का कोई असर न हुआ ।
दूसरे दिन चुहिया माँ को अन्न का दाना खोजने खेतों पर जाना पड़ा । बंदर को जब यह मालूम हुआ तो मन ही मन बड़ा खुश हुआ कि बच्चों को तंग करने का एक सुनहरा मौका और मिल गया । अब तो उसने बिल के पास बहुत ज़ोर से गुठलियाँ फेंकनी शुरू कर दीं ।
दूसरे पेड़ पर बैठे तोते से उसका कसाईपन न देखा गया । उसने उसका विरोध किया –टें—टें –। तुझे नाजुक से बच्चों को सताते शर्म नहीं आती !
-जा –जा ,अपना रास्ता नाप । तुझ पर भी बड़ी ज़ोर से हवा में घुमाकर एक गुठली फेंक दूंगा । सारे पंख झड़ कर नीचे गिर पड़ेंगे । बंदर ने घुड़की दी ।
उनकी चिल्ल –पौं से पड़ोसी खरगोश घबरा गया और छलांग लगाता चुहिया को ढूँढने निकल पड़ा । दूर से उसने देखा – चुहिया अनाज के ढेर से गेहूं कुतर –कुतर कर पेट भर रही है ।
वह चिल्लाया -चुहिया तेरे बच्चे तो मुसीबत में है । जल्दी घर चल ।
-अभी तो मैंने उनके खाने को कुछ जुटाया भी नहीं है ।
-तू चिंता न कर ,मैं कूड़े से रोटी के टुकड़े बीनकर अभी लाता हूँ ।
-तू कितना अच्छा है !बंदर बच्चों को मारने में लगा है और तू बचाने में ।
-यह समय बात करने का नहीं है । तू यहाँ से जल्दी भाग ।
चुहिया भागती- हाँफती जल्दी ही पेड़ के पास आ गई । बंदर की बेरहमी को देखकर वह गुस्से से पागल हो गई । उसने मन ही मन पक्का इरादा कर लिया –इस धूर्त को ऐसा मजा चखाऊंगी कि भागता ही नजर आयेगा ।
साँझ होते ही वह अपने साथियों को बुला लाई । दो रातों में ही सबने मिलकर पेड़ को जड़ से खोद डाला । अब तो पेड़ डगमगाने लगा । उस पर बैठे बंदर ने सोचा –जमीन हिल रही है । कहीं यह पेड़ न गिर जाय । उसी समय धड़ाम से बंदर वृक्ष सहित जमीन पर आ पड़ा ।
-हो न हो भूत आ गया है । अब यह दूसरा पेड़ गिराएगा फिर तीसरा । जरा सी देर हो गई तो मैं इसके नीचे दब कर मर जाऊंगा । भागो रे –भागो भूत आ गया –चिल्लाता हुआ बंदर वहाँ से भाग खड़ा हुआ ।
चुहिया के बच्चे तालियाँ पीटते बिल से बाहर निकल आए । छोटी सी चुहिया ने बड़ी चतुराई से टेढ़ी चाल चलने वाले बंदर से हमेशा के लिए मुक्ति पा ली ।
- सुधा भार्गव
प्रकाशित पुस्तकें: रोशनी की तलाश में –काव्य संग्रहलघुकथा संग्रह -वेदना संवेदना
बालकहानी पुस्तकें : १ अंगूठा चूस २ अहंकारी राजा ३ जितनी चादर उतने पैर ४ मन की रानी छतरी में पानी ५ चाँद सा महल सम्मानित कृति–रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह )
सम्मान : डा .कमला रत्नम सम्मान , राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मानपुरस्कार –राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६)
वर्तमान लेखन का स्वरूप : बाल साहित्य ,लोककथाएँ,लघुकथाएँमैं एक ब्लॉगर भी हूँ।
ब्लॉग: तूलिकासदन
संपर्क: बैंगलोर , भारत