जिंदगी
खण्ड- खण्ड होती
संस्कृति की चित्कार
फैलने लगता है भीतर ही भीतर
ज्वालामुखी
कीचड़ में धँसते जा रहे
रथ के पहिये को
कर्ण द्वारा निकालने का प्रयत्न
जैसे दोहराया जा रहा हो
फिर से
पुरुषत्व का दस्तावेज
चक्रव्यूह के सातवें द्वार में
उलझे- जूझते
अभिमन्यु-सी स्थिति है
या सम्मोहन के आवेश में
लिपटा
एक भयावह सच
अपना वजूद फैला रहा है
और हम
मूक दर्शक बने हुए हैं
मील के पत्थर
हजारों गिन चुका हूं
क्रूर विपदाओं के आक्रोश में
मेरा टूटता बिखरता व्यक्तित्व
समय के तनावों को भोग रहा है
जीवन ऐसे ही चक्रवात में फंसा है
अस्फूट स्वर…
भावना कब मनुज को
मुक्ति देगी
जिंदगी की मृच्छकटिका
कौन जाने कब रुकेगी
भाग्य पटकता है
पछाड़ता है बार-बार
और हरबार अपनी दृढ़ता में
खड़ा हो जाता हूँ
शरशैय्या से बिंधे भीष्म-सा।
- राजकुमार जैन ’राजन’

जन्म तिथि : २४ जून
जन्म स्थान : आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
लेखन विधाएं : कहानी, कविता, पर्यटन, लोक जीवन एवं बाल साहित्य
प्रकाशन : लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन : कर्इ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन
पुरस्कार व सम्मान : राष्ट्रीयप्रादेशिक स्तर पर ६० सम्मान
संस्थापक : ‘सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार,
‘डॉ राष्ट्रबंधु स्मृति बाल साहित्य सम्मान एवं कर्इ साहित्यिक सम्मानों के प्रवर्तक,
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का कि्रयान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन, आकोला , चित्तौडगढ़ (राजस्थान)