बुढ़ापा

अरे बड़ी बहू … जरा एक ग्लास पानी तो दे दे …

बहोत देर से प्यास लगी है … गला सूखा जा रहा हैं … कोई सुनता क्यों नही …

अरे छोटी बहू … कोई है भी या नही …

घर से बाहर किये गए, एक टूटी खाट … पर एक पैर से अपाहिज, लाचार, बूढ़े रामलाल जी की यह आवाज लगभग आधे घंटे से मेरी कानो में लगातार आ रही थी।

परन्तु उनके दोनों बहुओं और बच्चों के कान में … जा कर भी लगता था कि कहीं और को जा रही हो।

वक्त का तकाजा था, रामलाल जी थोडा भी ऊचा सुनते थे, और दोनों घरों की दीवारें एक होने से, उनके घर से उठती आवाजें अक्सर मुझे भी साफ सुनाई दे देती थी …

पर रामलाल जी शायद सुन नहीं पाते थे, या सुन कर भी अनसुना सा कर देते थे …

वे बेचारे कर भी क्या सकते थे … अपाहिज बुढापा और आश्रित … आज के इस दौर मे एक बड़ी सजा ही तो है …

हम दोनों पड़ोसियों की एक जैसी ही स्थिति थी, दोनों के पास कहने को भरा पूरा परिवार था। मेरे दोनों बच्चें जिम्मेदारी उठाने के समय, अच्छी नौकरी का बहाना कर चले गए, मैं और मेरी पत्नी, बुढापे में अकेले रह गए एक दूजे का साथ निभाने के लिए।

रिटायर्मेंट के कुछ समय बाद तक, बच्चें बीच – बीच में आते जातें रहे, फिर वो भी दुनियादारी में व्यस्त हो चले … अब तो सिर्फ फ़ोन पर ही वे मिल पाते हैं। दो वर्ष पहले मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ कर चली गयी। अकेला ही हूँ तब से मैं यहाँ … पर आश्रित नहीं …

मैंने शुरू से ही सोच रखा था, कि हम दोनों में साथ पहले जो भी छोड़े, दूसरा कभी भी किसी पर भी आश्रित नहीं रहेगा।

रामलाल जी की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है, जब तक उनकी पत्नी थी, घर में हुकुमत उनकी पत्नी की थी, परंतु अब … हे प्रभु किसी को भी इतना लाचार जिन्दगी न दे …

रामलाल जी कि आवाज फिर से मेरे कानों में पड़ी, वे पुन: पानी मांग रहे थे, हम दोनों के घर सटे होने से उनके घर कि लगभग सारी बातें गाहे बगाहे मेरे कानों में आ ही जाती थी, बड़ी बहु शायद बोल रही थी, बुढ़िया तो चली गयी, अपाहिज ….

उफ़ इतना जहर … आखिर आता कहाँ से है, अपने सगों के मन में, जब घर के बड़े बुजुर्ग आश्रित हो जातें है, और शायद घर वालों को समझ आ चुका होता है, कि इनसे अब हमें कुछ मिलना भी नहीं … नयी पीढ़ी आखिर इतनी स्वार्थी क्यों है … क्या बहु वही शब्द जो मैं सुन न सका, वो अपने घर परिवार के लिए वोल पाती … शायद नहीं … पता नही …

खैर अब मैं क्या करूँ, कुछ पल सोचता रहा, फिर अनायास ही मेरे मन में एक ख्याल सा उभरा, और मेरी आँखों में चमक सी आ गयी, अगर ये हो गया तो शायद रामलाल जी कुछ दिनों के लिए ही सही … इस जलालत से बच सकते हैं।

और … और मैं चल पड़ा पडोसी रामलाल जी के घर …

रामलाल जी नमस्कार, मैं थोडा जोर से बोला, उनके कम सुनने कि आदत, मेरे आज काम आने वाली थी, जब तक रामलाल जी कुछ जबाब देते … अंदर से चुभती … तीर सी एक आवाज कानों में पड़ ही गयी … लो एक खूसट कम था, जो एक और आ गया …

मनोज बेटा जा दोनों बूढ़े खूसटों को पानी दे आ।

पानी देख, रामलाल जी कि आँखों में चमक आ गयी, अपना ग्लास उन्होंने ऐसे खाली किया जैसे वे वर्षों के प्यासे हो, अब उनकी नजर मेरे ग्लास पर थी … मैंने आहिस्ते से अपना ग्लास उनके सामने कर दिया।

पानी पीकर ऐसा लगा … जैसे थोड़ी सी जान वापस आ गई हो उनमे,

दोनों हाथ जोड़ दिये उन्होंने … पता नहीं उन्होंने मेरे अभिवादन का जबाब दिया था मुझे … या धन्यवाद …

उफ़ …

जिस काम के लिए मैं यहाँ आया था, वो तो भूले ही जा रहा था शायद …

अरे रामलालजी आप का बैंक में कोई खाता है या नहीं, थोडा ज्यादा तेज वोला इस बार कि घर वाले भी सुन सकें …

हाँ, एक खाता तो है, पर उसमे पैसे नहीं है, अब मेरे पास पैसे कहाँ है, जो जमा कर सकूँ … रामलाल जी ने हलके आवाज मे जबाब दिया।

अरे रामलाल जी … आप को नहीं, सरकार जमा कराएगी पैसा, जब तक आप जीवित हो, हर महीने के महीने …

क्या … क्या कह रहे है, आप … ये सच हैं क्या … विस्मित नजरों से रामलाल जी ने मुझे देखा।

हाँ …

मुझे अच्छे से महसूस हो रहा था कि दीवारों के पीछें रामलालजी की पूरी पलटन है …

मैं यही बताने आया था आपको …

आप जैसे बीमार, असक्त और उम्रदराज लोगो के खाते में कुछ पैसे सरकार देगी …

जिससे आप अपना जीवनयापन आसानी से कर सकें …

एक फुसफुसाहट पुंह: उभरी, अरे छोटी दो कप चाय तो चढ़ा चूल्हे पर …

और यह सुन … मेरे मन को फिलहाल थोडा सा सुकून आ गया कि रामलाल जी के कुछ दिन तो अब ठीक ठाक गुजरेंगे …

बाद कि फिर कभी … हाथ जोड़ कर मैं खुश मन से अपने घर आ गया …

चाय जो पीनी थी, पर अपने घर में …

 

- डॉ ज्ञान प्रकाश    

 

शिक्षा: मास्टर ऑफ़ साइंस एवं डॉक्टर ऑफ़ फिलास्फी (सांख्यकीय)

कार्य क्षेत्र: सहायक आचार्य (सांख्यकीय), मोतीलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश ।
खाली समय में गाने सुनना और कविताएँ एवं शेरो शायरी पढ़ना ।

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