बुद्धिमानों की दुनिया

एक कोयल थी । वह बड़ी आलसी थी । उसने कोई घोंसला नहीं बना रखा था ,बस डाल-डाल फुदकती और मीठा गाना गाती ।

एक बार उसने अंडे दिये ।

-अब इन अंडों को कहाँ रखूँ ,कैसे देखभाल करूं । इनके रहने के लिए तो मैंने कोई घर भी नहीं बनाया । सोच –सोचकर नन्ही कोयल परेशान हो गई ।

तभी उसे ध्यान आया –मेरे और कौए भाई के अंडे मिलते जुलते हैं ,क्यों न उसके घोंसले में अपने अंडे रख आऊँ । वह तो पहचान भी नहीं पायेगा । पहचान भी गया तो उन्हें मारने से रहा । बड़े नरम दिल का सीधा -सादा है ,बस उसकी बोली ही कड़वी है
एक शाम को कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में रख आई । उस समय कौवा –कौवी दाना चुगने गए थे । कौवे के घोंसले में जाते समय कोई पक्षी उसे पहचान भी नहीं पाया क्योंकि कोयल भी काली और कौवा भी काला ।

 

कुछ दिनों के बाद अंडों में से छोटे से कोमल से प्यारे से बच्चे निकल आए ।

-अरे इनमें दो तो कोयल के बच्चे हैं । कौवी आश्चर्य में पड़ गई ।

-कोई बात नहीं । हम अपने बच्चों की देखभाल तो करेंगे ही ,साथ में ये भी पल जाएँगे ।कितनी प्यारी बोली में दोनों चहक रहे हैं । बिलकुल अपनी माँ पर गए है ।कौवा बोला ।

एक शाम कौवा –कौवी बच्चों के लिए दाना लेकर लौटे तो देखा –कोयल का बच्चा पेड़ के नीचे गिरा पड़ा है ।एक दुष्ट काली बिल्ली थोड़ी दूर पर बैठी इस ताक में है कि मौका मिले तो बच्चे को खा जाऊं। नाजुक सा बच्चा डरा सा –सहमा सा चीं-चीं करता अपने प्राणों की भीख मांग रहा है।

कौवे ने उसे भगाने के लिए चिल्लाना शुरू किया –कांव –कांव,कांव -कांव ।लेकिन बिल्ली पर इसका कोई असर न हुआ । वह यह सोचकर आगे बढ्ने लगी –एक कौवा मेरा क्या बिगाड़ लेगा । जितनी देर में वह नीचे आयेगा उससे पहले ही मैं इस बच्चे को निगल जाऊँगी।

 

इस बार कौवा के साथ कौवी भी मिलकर कांव –कांव करने लगी पर बिल्ली आगे बढ़ती ही गई । अब तो कौवा –कौवी ने कांव –कांव करके आसमान सिर पर उठा लिया।उनकी चिल्लपौं सुनकर अन्य कौवे समझ गए कि उनका कोई साथी बड़ा परेशान है। जिस दिशा से कांव –कांव की आवाज आ रही थी उसी ओर चारों तरफ से कौवे उड़ –उड़ कर जाने लगे ।कुछ पेड़ पर बैठ गए ,कुछ पेड़ के नीचे । जब कौवों ने देखा –बिल्ली रुकने का नाम ही नहीं ले रही है ,पेड़ के कौवे भी छ्पाक –छपाक नीचे उतर आए और सबने मिलकर कोयल के बच्चे के चारों तरफ एक घेरा बना लिया ।

 

सबकी चोंचे बिल्ली की ओर बन्दूक की तरह निशाना साधे तनी हुई थीं –जो कह रही थी –एक कदम भी आगे बढ़ाया तो चोंचों से तुम्हारा शरीर गोद गोदकर छलनी कर दिया जाएगा । यह नजारा देख बिल्ली ऐसी डर कर भागी कि जंगल से बाहर जाकर ही दम लिया ।

 

कौवों की खुशी का ठिकाना न था । वे फुदकते हुये चोंच भिड़ाने लगे मानो कह रहे हों –दोस्त हम इसी तरह से मिलकर बुद्धिमानी से मुसीबत भगाते रहेंगे । देखते ही देखते वे पंख फैलाकर नीले आकाश में उड़ गए ।
कौवा –कौवी तो उनका किया उपकार भूल ही नहीं सकते थे— धन्यवाद देते हुये अपने साथियों को टकटकी लगाए देखते रहे जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए।

 

- सुधा भार्गव

प्रकाशित पुस्तकें: रोशनी की तलाश में –काव्य संग्रहलघुकथा संग्रह -वेदना संवेदना
बालकहानी पुस्तकें : १ अंगूठा चूस  २ अहंकारी राजा ३ जितनी चादर उतने पैर  ४ मन की रानी छतरी में पानी   ५ चाँद सा महल सम्मानित कृति–रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह )

सम्मान : डा .कमला रत्नम सम्मान , राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मानपुरस्कार –राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६)

वर्तमान लेखन का स्वरूप : बाल साहित्य ,लोककथाएँ,लघुकथाएँमैं एक ब्लॉगर भी हूँ।

ब्लॉग:  तूलिकासदन

संपर्क: बैंगलोर , भारत 

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