बदलता इतिहास

महाभारत का युद्ध समाप्त हुए समय गुज़र चुका है । खंडहर हुए हस्तिनापुर की आँखों में  अपने गौरवशाली इतिहास के आँसू हैं ।
अपने कक्ष में धृतराष्ट्र बिल्कुल चुप बैठे हैं ।एकदम जड़ , शून्य ,स्पंदन रहित !
“ स्वामी ,मैनें वानप्रस्थ का सारा प्रबन्ध कर लिया है ।”
गांधारी की बात पर धृतराष्ट्र मौन हैं ।
“स्वामी ,आप कई दिनों से मुझसे बात नहीं कर रहे ।अपने मन की बात खुलकर कहें ।”
“ गांधारी ,क्या कहूँ ! तुमने मेरा वंश व जीवन नष्ट कर दिया !”
“ स्वामी ,मैनें ?” गांधारी इस लांछन से अवाक थी ।
“ स्वामी ,समस्त जीवन आपके लिए आँखों पर पट्टी बाँधे रही ।ताकि आपके अंधत्व को अनुभव कर सकूं ।ये उस त्याग का प्रतिफल है ?”
पट्टी बंधी आँखों से अश्रु गालों पर लुढ़क
आये थे ।
“आपके पुत्र मोह ने सारा विनाश किया ।”
अश्रु शब्दों के बाण बनकर बरसे ।
“ गांधारी ,मेरा पुत्र मोह तो था ।पर तुमने माता का कर्तव्य कहां निभाया ?आँखों पर पट्टी बांध पतिव्रता व महान तो बन गयी किंतु सन्तान के प्रति कर्तव्य से विरक्त हो गयी ।”
धृतराष्ट्र के कथन से गांधारी हतप्रभ सी थी ।
“ स्वामी ,साफ साफ कहें ,
क्या कहना चाहते हैं ?”
“ तो सुनो , मैं तो अंधा था ।पर यदि तुमने आँखों पर पट्टी न बांधी होती तो अपनी संतानों को सही संस्कारों की दृष्टि दे सकतीं थीं !”
“ स्वामी ,सब लांछन मुझ पर ?”
गांधारी पर पति के शब्द हथौड़े से प्रहार कर रहे थे ।
सन्तान विहीन धृतराष्ट्र के भीतर जमा पुरुषवादी मवाद फूट पड़ा !
“ गांधारी ,मैं सदा अनुभव करता था कि तुम्हारा पट्टी बाँधना कहीं मेरे प्रति घृणा तो नहीं !”
“ स्वामी ,ये क्या कह रहे हैं ?”
“ हाँ गांधारी ,एक सुंदर ,दृष्टि से सम्पन्न स्त्री का एक अंधे से जबरदस्ती विवाह किया जाए ! हो सकता है वह स्त्री प्रतिशोध व घृणावश आँखों पर पट्टी बाँध ले ।”
धृतराष्ट्र कह चुके !
उनके कहे वाक्यों की गर्म आँच  गांधारी के कानों को जला रही थी ।वही गर्म आँच अब चिंगारी बन बरसी : “वाह वाह ! स्वामी , यही हैं पुरुषवादी सोच। सब दोषारोपण मुझ पर !मेरे समस्त त्याग का पुरस्कार ! आखिर एक पुरुष का अहम स्त्री के त्याग को कैसे महत्व दे दे ?”
धृतराष्ट्र चुप थे ।गांधारी के भाव बाँध तोड़कर बह निकले: ”स्वामी ,आपकी हर आज्ञा मानी। स्त्री होकर द्रोपदी के अपमान पर मौन रही । आपके पुत्र व सत्ता मोह पर अपनी ममता की बलि चढ़ते देखती रही ।”
गांधारी के आहत स्त्रीत्व का निर्णयात्मक स्वर गूँजा …
“ अब इस बेला में समझ गयी हूँ –स्त्री को पति की अंध अनुगामी नहीं होना चाहिए । अर्धांगिनी को अपने आधे अस्तित्व की स्वतन्त्र  सत्ता सदा स्मरण रखनी चाहिए ।”
गांधारी के हाथ आँखों पर बंधी पट्टी तक पहुंच चुके थे ।

- डॉ संगीता गांधी 

शिक्षिका व लेखिका  , नयी दिल्ली। 

शिक्षा - बी ए ऑनर्स ,एम् ए हिंदी । एम् फिल ,पी एच डी ।

शोध कार्य -
1   पाली -सम्वेदना और शिल्प ।
2   अमृतलाल नागर जी के उपन्यासों में सांस्कृतिक बोध ।
प्रकाशन -नवप्रदेश ,ट्रू टाइम्स ,लोकजंग ,दैनिक  नव एक्सप्रेस , समाज्ञा ,हमारा मैट्रो  ,वर्तमान अंकुर , विमेन एक्सप्रेस ,साप्ताहिक अकोदिया सम्राट ,झांब न्यूज़ ,दैनिक पब्लिक इमोशन ,अद्भुत इंडिया ,दैनिक गज केसरी, पत्रों में कविताएं ,लघुकथाएं व कहानियां प्रकाशित ।
शैल सूत्र ,निकट ,ककसाड़,दृष्टि ,शेषप्रश्न ,अट्टहास ,पर्तों की पड़ताल ,सत्य की मशाल , नारी तू कल्याणी ,प्रयास ,सन्तुष्टि सेवा मासिक,अनुभव,अनुगुंजन ,सलाम दुनिया आदि पत्रिकाओं में कविता , लघुकथा , लेख प्रकाशित ।
नए पल्लव 2 संग्रह में लघुकथाएं प्रकाशित
मुसाफिर साझा काव्य संग्रह 
सहोदरी सोपान 4 काव्य संग्रह 
सहोदरी सोपान 4 लघुकथा संग्रह ।
हिंदी लेखक .कॉम ,साहित्यपिडिया ,प्रतिलिपि.कॉम ,लिटरेचर पॉइंट ,स्टोरी मिरर ,जय विजय .कॉम ,हिंदी कुंज.कॉम ,कथांकन.कॉम  ,अटूट बन्धन ,मातृ भारती .कॉम पर  रचनाएं प्रकाशित ।कथांकन .कॉम द्वारा कहानी ‘ समय का अंतराल ‘  यू ट्यूब पर  प्रस्तुत ।

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