कुतिया अपनी माँ की शुक्र गुजार थी क्योंकि उसके साथ उसकी माँ से जन्मे चारों पिल्ले मादा थे . सभी मिलजुल कर रहते थे और हंसी – ठिठोली करते थे . कोई किसी की आजादी में किसी तरह की दखलंदाजी न करता , इसलिए कुतिया अपने आजाद बचपन से बहुत खुश थी .
आजाद ख्यालों की कुतिया जब थोड़ी बड़ी हुई तो अपनी बहनों के साथ एक ही तरह की हंसी – ठिठोली उसे अखरने लगी .उसकी इच्छा हुई कि कोई कुत्ता भी उन सब के साथ होता तो दिनचर्या में जरूर कुछ नयापन होता . वह बोर होने लगी पर कर कुछ नही सकती थी क्योकि उनके पिछड़े मोहल्ले में कोई किसी कुत्ते को लाने को तैयार ही नहीं था .अब कुतिया को अपना मोहल्ला अखरने लगा . पता नहीं क्या हुआ या कुतिया की किस्मत कि कैसे उसकी चाहत ने जोर मारा और एक फौजी का कुत्ता न जाने कहाँ से वहां आ धमका .
कुत्ता जोशीला और दमदार था . वह कुत्ता कुतिया को भा गया . कुत्ते के साथ अपनी युवावस्था के जोश में भागकर फौजी बैरक में आ गयी . कुत्ता फ़ौज का था . अनुशासन में रहना उसकी फितरत थी . उसने कुतिया से कहा , ” मेरे मालिक ने मुझे पाल – पोस कर बड़ा किया है . वफादारी मेरी पहचान है , मेरे साथ तुम्हें भी इसकी सेवा करनी होगी .” किसी भी बंदिश को पसंद न करने वाली कुतिया को यह बात पसंद नहीं आई . वह कुत्ते की टोन में कुत्ते पर भोंकने के तेवर दिखाने लगी. उसकी बातचीत में विरोध के स्वर गूँजने लगे . इस बीच कुतिया ने दो पिल्ले भी दे दिए .पिल्लों के मोह में कुत्ता डर गया . उसने सोचा कुतिया भाग गयी तो इन पिल्लों को दूध कौन पिलाएगा .वह कुतिया की बात मान कर शहर में आ गया पर उसकी फौजी तहजीब नहीं छूटी . आजाद ख्यालों की कुतिया के लिए वह असहनीय हो गया . कुतिया में इतनी लज्जा जरूर थी कि वह अपने पिल्लों को भी प्यार करती थी पर कुत्ते की ऐंठ को उसने सबक सीखने की भी ठान ली . वैसे भी कुत्ते की अनुशासन प्रियता उसे अखरने लगी थी .
शहर में उसकी आजादी को पंख मिल गए .मौका पाते ही उसने एक दोस्त पाल लिया . जब – तब फौजी कुत्ता किसी भी अनुशासन की बात करता , कुतिया की आजाद ख्याली उसकी अवहेलना करने से न चूकती .
कुतिया की उड्डंदता पर कुत्ते को गुस्सा आता पर बड़े होते पिल्लै उसके गुस्से को दबा देते . वह बेबस होकर सब कुछ सहन कर लेता . पर सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है .
एक दिन जब कुतिया की बेशर्म उड्डंदता सारी सीमांएं लांघ गयी तो कुत्ते की सहनशक्ति जवाब दे गयी .उसने अपने जबड़े को खोला और कुतिया के साथ – साथ दोस्त के रूप में पाले गए कुत्ते को भी लहु – लुहान कर दिया .
लहु – लुहान कुतिया ने सहायता के लिए अपने दोनों पिल्लों पर कातर दृष्टि डाली . उसके दोनों पिल्ले समझ नहीं पाए कि उनकी माँ की मंशा क्या है और उन्हें क्या करना चाहिए !
कुतिया असहाय होकर और जोर से चिल्लाई . उसकी चिल्लाहट उसकी माँ तक जा पहुंची . वह आकर फौजी कुत्ते पर जोर – जोर से भोंकने लगी . भोंकते – भोंकते उसकी नजर पास में हांफते हुए देसी कुत्ते पर पड़ी . उसे सारा माजरा समझने में देर नहीं लगी . वह चुपचाप वहां से सरकने को हुई .
कुतिया ने कहा , ” माँ ! इसने मुझे लहु – लुहान किया है , इसे छोड़ो मत .”
माँ ने प्रश्न किया , ” इसे या तुझे ? ”
अब कुतिया लचर थी .
इस पूरी घटना की गवाह मिसेज सत्या जो इस पूरे प्रकरण को शुरू से देख रहीं थी और समाज में आधुनिक विचारों की जबरदस्त पैरोकार थी ने कहा , ” यह माँ तो बड़ी बेगैरत है जिसे बेटी का दर्द ही समझ में नहीं आता . हम कुतिया की आजादी को बहाल करंगें और इस आततायी कुत्ते को इसकी बैरक में वापस भेजेंगे . ”
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्म - स्थान : जगाधरी ( यमुना नगर – हरियाणा )
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी – विज्ञान ) कानपुर , बी . एड . ( हिसार – हरियाणा )
लेखन विधा : लघुकथा , कहानी , बाल – कथा , कविता , बाल – कविता , पत्र – लेखन , डायरी – लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी : ” लाखों रूपये ” – क्राईस चर्च कालेज , पत्रिका – कानपुर ( वर्ष – 1971 )
अन्य प्रकाशन : 1 . देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन ( पत्रिका कोई भी हो – वह महत्व पूर्ण होती है , छोटी – बड़ी का कोई प्रश्न नहीं है। )
2 . आज़ादी ( लघुकथा – संगृह ) ,
3. विष – कन्या ( लघुकथा – संगृह ) ,
4. ” तीसरा पैग “ ( लघुकथा – संगृह ) ,
5 . बन्धन – मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
6 . मेरे देश कि बात ( कविता – संगृह ) .
7 . ” बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा – संगृह ) ,
सम्पादन : 1 . तैरते – पत्थर डूबते कागज़ “ एवम
2. ” दरकते किनारे ” ,( दोनों लघुकथा – संगृह )
3 . बिटीया तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
पुरस्कार : 1 . हिंदी – अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती – प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . ” अनुराग सेवा संस्थान ” लाल – सोट ( दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“ को वर्ष – 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
आजीविका : शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश – प्राप्ति : (अब या तब लेखन से सन्तोष )
सम्पर्क : साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश