“कागज किश्तियों के माने / बचपन भीगना न जाने । फ्लैट की खिड़की से झाँके / बूंदों से खुद को बचाके । एक अनोखी चाह में / देखे नन्हा कुछ और है … ये बारिश का दौर है…..”-अवधेश सिंह
“पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” के अंतर्गत सावन ऋतु को समर्पित जुलाई माह की यह चौतीसवी गोष्ठी में आज दिनांक 23 जुलाई 2017, रविवार, वैशाली,गाजियाबाद में पूरी तरह से फुहारों और मेघों की रिमझिम से जुड़ी अनुभूतियों की कविताओं का पाठ हुआ ।
सावन की रिमझिम के साथ तेज झमा झम बारिश को देखते हुए यह गोष्ठी अपने वृहत रूप के साथ ही संयोजक कवि अवधेश सिंह के निवास पर देर शाम तक जारी रही । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नव गीत कार व आलोचक डॉ राधेश्याम बंधु ने बारिश न करने वाले प्रेमी रूपी बादल को गीत माध्यम से कोसा “ कैसे बहरूपिये निष्ठुर बादल / रुई के फाहों में / पत्थर बादल ? / सावन भी सूख गए / प्रेम पत्र लिख लिख कर / चीड़ों की चर्चाए / मौन हुई थक थक कर / पर तेरा पिघला / कब अंतर बादल …।“
प्रारम्भ में वरिष्ठ रचनाकर कन्हैया लाल खरे ने सावन पर नायिका के लिए अपना गीत पढ़ा “घिरी आई घटा चढ़ी आई अटा /दृग कोरनि बीच पिया छवि छायी / शीतल प्यारी फुहार लगे तन / छू के उन्हे पुरुवा चलि आई ।का पाठ किया । गोष्ठी में वरिष्ठ गजलकार मृत्युंजय साधक ने सावन ऋतु के अनुभवों को प्रस्तुत किया “खुशियों की बदरी छायी / जब तुम आए । मन में गूंजी शहनाई जब तुम आए । अंबर की चिट्ठी बाँचे कारी बदरी / धरती ने ली अंगड़ाई / जब तुम आए ….। नवोदित कवियत्री सुश्री रिंकू मिश्रा ने सावन पर अपनी पीड़ा व्यक्त की “ मन को लुभाता है / मन को चुराता है / सावन के झूले / बारिश का पानी / क्यों इतना सताता है … “
संयोजक कवि अवधेश सिंह ने सावन का बच्चों पर होने वाला सामयिक प्रभाव नव गीत से व्यक्त किया “कागज किश्तियों के माने / बचपन भीगना न जाने । फ्लैट की खिड़की से झाँके / बूंदों से खुद को बचाके । एक अनोखी चाह में / देखे नन्हा कुछ और है … ये बारिश का दौर है…..”.
पूर्वी बिहार में बोली जाने वाली भाषा अंगिका की प्रसिद्ध कवियत्री सुप्रिया सिंह ने अंगिका भाषा पर बिरहा पढ़ा “ बरसे जे सावन गम कै जे जूही केकरा स करौ दिल बात है”। और हिन्दी में “अंबर बदरिया डोले उमंगों की तान रे / झूला पर झूले मन सावन सुहान रे” पढ़ा । कवि पत्रकार अमर आनंद सावन से जुड़ी कविता पढ़ी “मचलते से बादल / बरसते से बादल / होने लगी है / ख्यालों की हलचल / नाचे मन मयूर / देख देख हूर / ये सावन है / चढ़े सावन का सरूर”। कवि मनोज दिवेदी ने गीत पढ़ा “हो रही बारिश, मेरे यार चल आना / अरमानों की अगन को / आकार तुम्हें बुझाना ॥“
मुख्य अतिथ डॉ राधेश्याम बंधु की गरिमामय उपस्थिती में , आलोचक कवि डॉ वरुण तिवारी की अध्यक्षता में , अवधी भाषा के सुपरिचित कवि व संयोजक अवधेश सिंह ने अपने सफल संचालन में गोष्ठी को इस झमा झम बारिश में भी नयी बुलंदियों से स्पर्श कराया ।
गोष्ठी में श्रोता के रूप में ठाकुर प्रसाद चौबे संपादक साहित्यिक पत्रिका परिंदे , श्री अनीता सिंह व एन सिंह रहे ।
- अवधेश सिंह , संयोजक