बेवजूदरिश्ते…..
न जाने कितने रिश्ते अनाम रह जाते हैं
जीते हैं…बिना वजूद के
यादों में-
टंगे रहते हैं दीवारों पर , तस्वीरों की भीड़ में -
मरते नहीं कभी
न कभी ख़त्म होते हैं
बस , कभी कभी
किसी आह….किसी सिसकी…..
या कोरों में ठिठकी
नमी में सांस ले लेते हैं
यदा कदा ..!!!!
किरचें
अभी अभी कुछ दरका
पर आवाज़ नहीं हुई
मैंने टुकड़े बुहार दिए
लेकिन कुछ किरचें
दरारों..
अनदेखे कोनों में छिपी रह गयीं -
जो अचक्के में भेदकर
लहू लुहान कर गयीं
भीतर तक..!!!
काश !
वह शब्द -
जो एक तिलस्मी दुनिया से
बड़ी बेरहमी से घसीटकर
सच की ज़मीन पर
ला पटकता है ..
और हम -
छितरे हुए अरमानों को समेट-
एक और मौके की बाट जोहते
इंतज़ार की लम्बी खोह में
रौशनी तलाशते रह जाते हैं
ज़िन्दगी भर …..!
अहसास !
रुई के वे नर्म फाये !
जो हमदर्द बन
सोख लेते हैं -
हर दर्द….
हर आंसू….
हर ख़ुशी …..
और बन जाते हैं सौगात-
जीवन भर के …!
रुखसती !
वह अहसास
जो पर्त दर पर्त -
छीलता जाता है
लम्हें …
यादें…..
खुशियाँ….
और उधेढ़ देता है वह सच
जो जज्बातों की तह में
छिपा रखे थे
अब तक ….!
-सरस दरबारी
मुंबई विश्व विद्यालय से राजनितिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री l
विद्यार्थी जीवन में कई कवितायेँ लिखीं और अंतर महाविद्यालय कहानी लेखन, कविता लेखन प्रतियोगिताओ में कई पदक और ट्राफी प्राप्त कीं .
प्रखर साहित्यिक पत्रिका ‘दीर्घा’ में ‘विशेष फोकस ‘ के अंतर्गत ११ कविताओं का प्रकाशन.
नवभारत टाइम्स में कविताओं का प्रकाशन
आकाशवाणी मुंबई से ‘हिंदी युववाणी ‘ व् मुंबई दूरदर्शन से ‘हिंदी युवदर्शन’ का सञ्चालन
‘फिल्म्स डिविज़न ऑफ़ इंडिया’ के पेनल पर ‘अप्रूव्ड वोईस’
फिर विवाहोपरांत पूर्णविराम
३० साल बाद, फेब्ररी २०१२ से, ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश और फिर लेखन की एक नए सिरे से शुरुआत.
रश्मि प्रभा, अवं हिंदी युग्म प्रकाशन का काव्य संग्रह “शब्दों के अरण्य में ” अवं सत्यम शिवम् का कविता संग्रह “मेरे बाद ” ( उत्कर्ष प्रकाशन ) की समीक्षा