निशा ने उसके दोनों कंधे पकड़ कर झिंझोड़ा ,“ दिया ! होश में आओ .“
दिया इतना झिझोड़े जाने पर भी अचल रही .अपनी भावशून्य बड़ी बड़ी आँखों से उन्हें देखती रही निशा हैरान हो गई कि उस पर कुछ असर नही हो रहा .वह वैसी ही प्रतिक्रियाविहीन है .निशा घबरा गई ,“इसकी हालत तो बहुत गम्भीर है .“
दिया की माँ रोली का गला भर आया ,“एक महीने से यह ऐसी ही हो रही है .बड़ी मुश्किल से दूध या जूस पिलाती हू.“
निशा ने शिकायत की ,“तुमने मुझे पहले क्यों नही बताया ?“
`सोचा तो बहुत था किंतु ऐसी बातो के लिये संकोच होता है .“.
“तो तुम अब मुझे परायो में गिनने लगी हो ?“
“नही ,ये बात नही है खबर करती भी तो क्या कि बेटी इश्क में चोट खाकर पत्थर हो गई है ?“ कहते कहते वह सिसक उठी .
दिया बिखरे बालों में घुटनों पर अपनी थोड़ी टिकाकर ऐसे बैठी थी कि जैसे वहाँ है ही नही .निशा ने धीमे से उससे पूछा ,“दिया !क्या आज मुझसे नमस्ते भी नही करोगी ?“
दिया बुत बनी रही .निशा पलंग से उठ खड़ी हुई . फिर उसने दिया की थोड़ी पकड़ कर ऊपर उठाई ,“दिया !मै तुम्ही से कह रही हू .“
दिया ने अपनी कातर आंखे उसकी आँखों में डालीं ,उनमें एक महीन पह्चान उभरी फिर मिट गई.अचानक निशा ने दो चांटे उसके गाल पर इतने ज़ोर से मारे कि वह तिलमिला कर रोने लगी .रोली घबराकार खड़ी हो गई,“निशा !ये क्या कर रही है ?पागल हो गई है.?“
“मै जो कर रही हू सोच समझकर कर रही हू.“कहकर उसने दिया को झिंझोड़ा ,“मै इतनी देर से तुमसे बात करना चाह रही हू—उत्तर क्यों नही दे रही ?ये मुठ्ठी में क्या छिपा रक्खा है ?“
“कुछ भी नही .“दिया ने और ज़ोर से मुठ्ठी भींच ली .
“क्या है दिखा तो सही ?“निशा ने ज़बरदस्ती वह खोलने की कोशिश की ,पर सफ़ल न हो सकी तो बोली ,“रोली ! तुम इसे पीछे से पकड़ो .“
`नही निशा ! इसे अपने हाल पर छोड़ दो .“
“आज मै इसको इसके हॉल पर छोड़ दू ?याद नही है जब तुम नौकरी पर जाती थी तो मै बार बार तुम्हारे घर आकर तुम्हारी मेड पर नज़र रखती थी .“
“निशा ! मै जानती हू एक अच्छी पड़ोसन की तरह तुमने इसे चार पाँच वर्ष तक सम्भाला है . इसकी मेड नही आती थी तो तू इसे अपने घर ले जाती थी .मै तेरे वो अह्सान कैसे भूल सकती हूँ ?“
“ वो अह्सान नही थे .दिया ने मेरे भी तो मात्रत्व को पूरा किया था उसी हक से कह रही हूँ इसे कसकर पकड़ .“ . रोली ने घबराते हुए दिया को पीछे से पकड़ लिया.निशा ने पूरी ताकत से दिया का हाथ खोल लिया .उसमें एक मुड़ा तुड़ा कागज़ था .
रोली सिसक उठी ,“जिस दिन से संजय का कोई दोस्त इसे ये पत्र दे गया है ,उसी दिन से ये पत्थर जैसी हो गई है .“
दिया ने उसके हाथ से वह पत्र छीनना चाहा ,“ये मेरा है ,संजय की आखिरी अमानत —प्लीज़ ! इसे मत लीजिये .“
निशा ने उसे डांटकर बिठा दिया और ज़ोर ज़ोर से पत्र पदने लगी ..“दिया !हम लोग शादी के सपने देख रहे थे .मेरे पेरेंट्स ने भी तुम्हे पसंद कर लिया था मैंने तुम्हे सगाई की अंगूठी भी पहना दी थी लेकिन एक नई `सिचुएशन सामने आ गई है जिससे मेरी ज़िंदगी बदलने जा रही है .तुम्हे तो पता है कि मै कैरियर के लिए हमेशा से स्वार्थी रहा हू और मुझे ये भी अच्छी तरह पता है कि मै तुम्हे बहुत बड़ी तकलीफ देने जा रहा हू .हुआ ये है कि कम्पनी की` ओनर `[मालिक ] की बेटी मुझ पर मेहरबान हो गई है और वह शारजाह में अपनी कम्पनी की एक ब्रांच खोलने जा रहे हैं .उसके लिए मुझे ही भेजेंगे ..तूम मुझे एक अच्छे दोस्त की तरह समझने की कोशिश करना —-एक ब्राइट फ्यूचर –विदेश की एक कम्पनी मेरी झोली में आ गई है —–तुम ही सोचो —क्या ये छोड़ना सही है ?.ये तुम्हे भी पता है कि मै तुम्हे कभी भूल नही सकता लेकिन तुमसे अलग होना मेरी मजबूरी भी है – कभी तुम्हारा संजु.“
दिया पत्र सुनते हुए बिलख बिलख कर रो रही थी .
“प्यार की लाश को ऐसे कलेजे से लगाकर जीया नही जा सकता दिया !“कहते हुए उसने पत्र के टुकड़े टुकड़े कर दिए.
“यह आपने क्या किया ?“वह पलंग पर गिरकर तकिये पर सिर पटकने लगी .
रोली तो रो ही रही थी,“ये क्या हो गया ?मेरी तो समझ में नही आ रहा .हम लोगो ने खूब धूमधाम से सगाई की थी .“
“हाँ ,बहुत बड़ा धोखा हुआ है .“
“मै तो दिया से मिन्नते करते करते हार गई हू कि कौलेज जाना शुरू कर दे .बस इसका एक ही जवाब है कि ये आगे पदाई नही करेगी.“
“ऐसा कैसे हो सकता है?एक बार तुमने मेरी सहायता मांगी थी . कुछ वर्ष मैंने इसकी देखभाल की थी .उन वर्षो में मुझे कभी महसूस नही हुआ कि दिया मेरी बेटी नही है . क्या हुआ जो हम लोग दूसरी कौलोनी में रहने चले गए .मै उसी अधिकार से कुछ दिन इसे अपने पास रखना चाह्ती हू .“
इससे पहले कि रोली कोई जवाब दे पाती दिया चीख उठी ,“मुझे किसी के घर नही जाना —अब मै इसी घर में मरूंगी —अब मै जीना नही चाह्ती .“
निशा दिया के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली ,“मेरे घर चलो तो सही ,सब ठीक हो जायेगा .“
“आपके साथ तो हर्गिज़ नही जाउंगी .आपने मेरा पत्र क्यो फाड़ा ?“ दिव्या उसे क्रोधित आंखो से घूरते हुए बोली .
“अभी तू गुस्से म़ें है —नासमझ है –लेकिन एक दिन तू ज़रूर समझेगी मैने जो किया ,वह सही था .ज़िंदगी की अगर एक डाल कट जाये ज़िंदगी खत्म नही हो जाती .कही कोई कोंपल ज़रूर छिपी होती है जिसे हमे ढूड़ना होता है .“
“मेरे जीवन मे कोई कोंपल नही फूटेगी—संजय इतना गिर जायेगा ,मैने कभी सोचा भी नही था .“
“आदमी जो कभी नही सोचता ज़िंदगी मे वही हो जाता है .मुझे व विवेक को देख लो , हमने एक दूसरे का प्यार पा लिया लेकिन एक बच्चे के लिये तरसते रह गये .हम लोग गम मे एक बुत नही बन गये ,अपना बच्चा मैने तुममे ढूद् लिया था —चल हाथ मुंह धो ले और मेरे साथ चल .“
दिया जब चलने को तैयार नही हुई तो निशा ने रोली से कहा,“जब ये मान जाये तो तुम इसे मेरे पास छोड़ जाना या मॅ इसे ले जाऊँगी.“
निशा के घर आकर चार पांच दिन बहुत बेचैनी मे गुज़रे दिया फोन पर बात करने को तैयार नही होती थी .आखिर एक दिन रोली व उसके पति दिया को उसके यहा छोड़ ही गये .निशा ने दिया के रहने के लिये कोठी की टेरेस वाला कमरा चुना .इस टेरेस पर आठ दस फूलों के गमले थे .व कमरे आगे एक टीन शेड था ..उखिड़की के पास ही मनी प्लांट की बेल ऊपर से नीचे तक झूम रही थी.कुछ फर्न के हैंगिंग पॉट बालकनी में लटक रहे थे . उसके पति इन दिनो फ्रांस एक ट्रेनिंग के लिये गये हुए थे इसलिये वह रात मे दिया के साथ ही सोती थी .
दिन भर तो निशा दिया को नीचे काम मे या टीवी मे उलझाये रहती थी .दोपहर् को आराम करने वे उपर आ जाती थी ..शाम को अक्सर दिया टेरेस पर कुर्सी पर बैठे बैठे गुमसुम आसमान को घूरती रहती थी .— पिछली बातो को याद करने से उसके गालो पर आंसू बहने लगते थे –कैसे एक बर्थडे पार्टी मे एक कोने मे संजय ने उसे घेरकर तुरंत ही कह दिया था ,“तुम्हे देखकर एसा लग रहा है मेरी तलाश पूरी हो गई है .“
“किस बात की तलाश ,“वह उसकी बेतक़्क़लुफी पर हैरान हो गई थी
“अपने प्यार की .`
“वौट ?अभी आप मुझको जानते ही कितना हैं ?
“आई एम लव इन फर्स्ट साइट .“
“आर यू जोकिंग `?“
“नो .,मे तुमसे शादी करना चाहता हू “
“मेरी ज़िंदगी का फैसला मेरे पेरेंट्स करेंगे .“
“तो चलिये आपके पेरेंट्स से मिल लेते हैं.“
वह अकड़ गई थी ,“पहले मुझसे तो ठीक से मिलिये ,पहले मॅ तो आपको पास कर दू.“
संजय से एक महीने नेट पर चैट करके , सी सी डी या बरिस्ता मे दो तीन मुलाकातों के बाद उसे एसा लगने लगा था जसे कोई बेशक़ीमती चीज़ उसकी मुठ्ठी मे कैद हो गई है ,उन दोनों की रुचिया भी एक सी थीं ,बस उसे शांत संतुलित जीवन पसंद था जबकि संजय तेज़ आसमान मे उड़ना चाहता था .उसी तेज़ उड़ान मे ये भूल बैठा कि जिसे ज़िंदगी की तलाश माना था,वही ज़िंदगी मे पीछे छूट गई.
उस टेरेस वाले कमरे मे जब .दिया की नींद खुल जाती तो वह कमरे से बाहर् निकल कर कुर्सी पर कोई पुस्तक पड़ने की कोशिश करती बैठ जाती .पड़ते पड़ते अक्सर उसकी नज़र सामने वाले बंगले पर पद जाती .उसकी छत को झोंपड़ी का आकार देकर खूबसूरती प्रदान की गई थी .उस छत की फेंसिंग से हरी बेल की पंक्तियां नीचे झूल रही थी .सामने का लॉन एक पंक्ति मे सजे गमलो से ,रास्ते पर गड़े रंग बिरंगे पत्थरो से भव्य लगता था ,जिनके बीच थी झुकी हुई एक भव्य नारी की मूर्ति जिसकी मटकी से फुव्वारा का पानी बहता रहता था.इसमे रहने वाले दो बड़ी कारो मे काम पर चले जाते थे .इस विशाल अभिजात्य भरी भव्यता से अलग दिखाई देती थी सिर पर मैला लाल स्कार्फ बांधे ,लकड़ी के से हाथ पैर वाली एक दुबली पतली पिचके गालों वाली सूखी औरत .सुबह शाम उसके कपड़े ठीक ठाक होते थे -कभी मेक्सी या कभी साड़ी लेकिन दोपहर मे वह अक्सर पेटीकोट पर पीली या काली टी शर्ट पहने घूमती रह्ती जिसके ऊपर के एक दो बटन खुले होते थे जिनमे से झांक रहे होते थे झुर्रियो भरे अंग .
वह औरत निरुदेश्य इधर उधर बंगले मे चक्कर लगाती दिखाई देती ,कभी सीडियों पर बैठकार कुछ बड़बड़ाया करती ,कभी लॉन मे पड़े झूले पर कुछ सोचती बैठी रहती व उसी पर सो जाती थी . उधर दिया को निशा ज़बरदस्ती खाना खिलाने आती .वह कोशिश करने पर भी अधिक खाना नही खा पाती .निशा उससे पूछती कब कालेज जाना है तो वह बस उसे सूनी सूनी आंखो से देखती रहती या फुसफुसाकर कहती ,“कभी नही .“
वह उसे बहलाने की कोशिश करती ,“चल आज बाज़ार हो आये ,मुझे कुछ टॉप व सूट लेने हैं .“
“मुझे कही नही जाना ,मैं घर पर ही ठीक हू .“
“दिया ! अपने को संभालने कोशिश कर .“
“ मै किसके लिये सम्भलूँ ?क्यों सम्भलूँ?सब कुछ खत्म हो गया है .“
“एक चोट से ज़िंदगी तो खत्म नही हो जाती ?“
“ज़िंदगी बची ही कहाँ है ?“
एक दिन जैसे ही दिया नीचे से उपर आई देखा वह औरत अपने बंगले के बड़े फाटक की सलाखे पकड़े सामने उसे टकटकी लगाकर घूरते हुए खड़ी है .जो चेहरा दूर से दहशत जगाता था ,वही रूखी सूखी बालो की लटो के बीच उसे मासूम लगने लगा ..दिया ने उसे देखकर अपना हाथ हिलाया ..वह औरत चुपचाप खड़ी रही प्रतिक्रियाहीन सी .दिया ने तीन चार बार कोशिश की लेकिन उस पर कोई असर नही हुआ .एसा लग रहा था सामने निर्जीव आंखो का कोई पुतला खड़ा है .अलबत्ता उसका बदरंग लाल रंग का स्कार्फ ज़रूर फड़फडा रहा था दिया खिसियाकर बुदबुदा उठी ,`पगली !`फिर उसने कमरे मे जाकर किताब पडने की कोशिश की लेकिन पद नही पाई ,फिर सोचते सोचते न जाने कहा खो गई —-किसी ने उसका कंधा झिंझोडा,वह चौंक गई.देखा निशा अंटी हाथ मे चाय का प्याला लिये खडी हैं ,“पता है ,मै दो मिनट से तेरे सामने खडी हूँ ,तुझे दिखाई नही दी?“
“जी —-.“वह खुद भी चौक गई ,उसे क्या हो गया है—- वह औरत ——- उसने चुपचाप उनके हाथ से प्याला ले लिया . उसका दिल कुछ सोचकर बहुत ज़ोर से धड़कने लगा.
` `कब से कह रही हू दिया ! अपने को सम्भाल .“अपने आंसू छिपाते हुए वह नीचे चली गई .
दूसरे दिन दिया ने फिर उस औरत को सीडियो पर खाने की थाली लिये हुए बैठे देखा ,फिर देखा थोड़ा खाना खाकर वह वही सो गई . उसके खाने से गंदे मुँह पर मक्खिया भिंनभिना रही थी .,वह अलमस्त सो रही थी . ——दिया को जुगुप्सा हो आई —कैसे म्रतप्राय हो गई है ये औरत ? थाली मे बचे हुए खाने पर कौये टूट पड़े.जब उसकी नींद खुली तो फिर वह् उस थाली में से खाने लगी . खाना खत्म होने पर अंदर जाकर थाली को निर्विकार अंदर रख आई जैसे कुछ हुआ ही नही है .
दो दिन बाद ही उसकी मम्मी आ गई ,“दिया १कैसी हो ?“
उसने होठो को खींचकर मुस्कराने की कोशिश की ,
“देख मे तेरे लिये क्या लाई हू .“कहते हुए उन्होने एक हेरम्स पेन्ट ,एक थ्री फ़ोर्थ व दो टॉप सामने फैला दिये ..`तुझे पता है तेरे मामा की बेटी की शादी इसी इतवार को है ,अचानक तय हो गई है ,लड़का यू.के ,.जा रहा है मे तुझे लेने आई हू .जल्दी पैक कर ले ,बाज़ार से तेरे लिये संगीत व शादी के लिये ट्रेडिशनल लहँगे लेते चलेंगे .“
“मुझे किसी की शादी मे नही जाना .मैं किस मुंह से जाउंगी ?“
“कैसी बाते करती है –क्या एक धोखेबाज़ लड़के के पीछे जीना छोड़ देगी ? “
वह बिलखकर बिलखकर रोने लगी .निशा ने रोली के कंधे पर हाथ रख दिया व इशारा किया की वह उस पर ज़ोर ना डाले .वे दोनो बाहर आ गई ,निशा फुसफुसाई ,“अभी मेरा लक्ष्य पूरा नही हुआ है .“
“क्या है तेरा लक्ष्य ?“
“ये पूरा होने पर ही पता लगेगा . “
उस स्त्री की गतिविधियों पर नज़र रखना दिया की दिनचर्या बन गया था .एक दिन वह स्त्री फिर फाटक के पास पर खड़ी थी,उसने गहरा गुलाबी टॉप पहन रक्खा था. दिया ने हाथ हिलाया लेकिन वह खाली आंखो से उसे घूरती रही .
“औरत है या चलती फिरती लाश !“दिया सोच मे पड़ गई. —कही वह भी तो ऎसी नही होती जा रही ?—-उसने इन दस दिनो मे किया ही क्या है ?एक किताब तक तो पड़ी नही है —वह बस आसमान मे क्या खोजती रहती है ?या शून्य मे क्या टटोलती रहती है ?—उसके क्या कुछ हाथ आया है ?—-अरे ! उसे तो इतना भी होश नही रहा कि निशा आंटी से इसके अतीत के बारे में पूछती .
इससे पहले आंटी उसके लिये उपर चाय लेकर आती ,वह ही नीचे उतर आई ,“आंटी ! आज मे चाय बनाउंगी .“
निशा खुश हो गई ,“ज़हे नसीब ,आज तुम्हारे हाथ की चाय पीने को मिलेगी .“
दिया ने उसके हाथ मे प्याला देते हुए पूछा ,“सामने के बंगले मे एक अजीब सी औरत घूमती रहती है,वह कौन है ?“
“चलो इतने दिनो बाद ही सही तुमने शिवांगी के लिये पूछा तो सही .यह सामने के बंगले वालो की सबसे बड़ी बेटी है .“निशा मन ही मन खुश हो उठी वह अपने मकसद के करीब जा रही है .
“मे तो समझ रही थी कि कोई पगली नौकरानी होगी ,जिसे तरस खाकर इन्होने रख लिया होगा.इसे हाथ हिलाओ ,इसकी प्लेट मे से पक्षी खाना खा जाते हैं ,इस पर कोई असर ही नही होता “
“नही ,ये कभी बहुत सुन्दर लगती थी लेकिन अपनी किस्मत इंसान नही बदल सकता लेकिन अपने मन की मज़बूती से अपने जीवन को बिगड़ने से बचा सकता है ..अपने जीवन मे उदेश्य पैदा कर सकता है. “ “इसकी तो बौडी भी अजीब लगती है .“
“जिसे अपने शरीर का ही होश न हो ,वह क्या संभालेगी ?इसकी एक बहिन अमेरिका मे रहती है .यहा तो एक भाई व भाभी है., इसके पेरेंट्स मर गये हैं .सुबह शाम भाभी इसके कपड़े बद्ल देती है .दोपहर् मे ये मनमानी करती रहती है .तुमने देखा ही होगा बंगले के गेट पर हमेशा ताला पड़ा होता है
“ हाँ ,.देखा है .क्या ये शुरू से ही ऐसी थी ?“
“नही शिवांगी बहुत प्यारी लड़की थी .हर समय बुलबुल सी चहकती रहती थी .बाद मे किसी के इश्क मे चोट खाक्रर इसकी ये हालत होती गई .“
`उफ़ .“कहते हुए दिया की नज़रो मे संजय का चेहरा घूम गया .—–क्या वह भी शिवांगी की तरह् —– .
“मुझे उसके विषय में अधिक तो नही पता लेकिन यह जिससे प्यार करती थी उसी से शादी होने वाली थी ,`इन्वीटेशन कार्डस ` भी छाप गए थे . शादी में पन्द्रह दिन बाकी थी .इसकी छोटी बहिन अमेरिका में एम बी ए कर रही थी .वह शादी में शामिल होने अमेरिका से आई .फिर पता नही क्या हुआ कि शिवांगी के प्रेमी ने इसे छोड़ उससे शादी कर ली .अपना बिज़नेस समेट कर अमेरिका जा बसा .तभी से ये काठ जैसी हो गई है .इसके चेहरे पर ना दर्द की लकीर उभरती है ,ना कोई सन्वेदना .बस तब से पथरीला बुत बनी अपना जीवन व दुबला होता जा रहा शरीर घसीट रही है .“
दूसरे दिन दिया टेरेस पर खड़ी शिवांगी को देख रही थी .वह आद्तन मौन आकाश को देखती कुछ सोच रही थी .उसे उस पर तरस आ रहा था कि बिचारी की ज़िंदगी को एक पुरुष ,पुरुष ही क्यो एक स्त्री ,वह भी उसकी सगी बहिन ने शूलो से भेद दिया था .शिवांगी चलते चलते गेट तक आ गई थी .तभी वहा से कुछ बच्चे अपने स्कूल बेग लिए निकले .उनमें से एक को शरारत सूझी .वह शिवांगी के पास जाकर चिल्लाया ,“पगली —-पगली .“
फिर सभी चिल्लाने लगे ,“पगली —पगली —-पगली .“
शिवांगी मौन रही ,ना चिदी ,ना गुस्सा हुई ,बस अविचल उन्हें देखती रही .
सभी बच्चे शिवांगी पर पत्थर बरसाने लगे ,निश्चित ही वे इस कौलोनी के नही थे .पत्थर उसके बदन पर पड़ रहे थे तब भी वह बुत बनी खड़ी थी .तभी एक पत्थर उसके माथे से टकराया ,दिया को लगा उसके माथे पर चोट लगी है ,वह चिल्लायी ,“ये तुम क्या कर रहे हो ?बच्चो ! ठहरो मै अभी नीची आती हू .“
दिया को चिल्लाते देख बच्चे भाग खड़े हुए .उस औरत के खून बह रहा था .वह वैसी ही प्रतिमा सी खड़ी थी .
दिया बेहद घबरा रही थी .उसने तुरंत नीचे उतरकर आंटी को बताया .निशा ने उस्की भाभी को फोन किया .दिया अब भी थर थर कांप रही थी —कही वह भी तो पथरीला बुत नही बनती जा रही ? —महीनो से जड़ बनी हुई है आगे भी बनी रही तो एसे ही चलती फिरती लाश में नही बदल जायेगी ?निश्क्रिय —–निरुदेश्य —–किसी काम की नही .
“नही —–.“अचानक दिया की चीख निकल गई ,“मै ऎसा नही होने दूंगी .“घबरा कर उसने निशा को झिंझोड़ दिया ,“ आंटी !मुझे इसी समय घर जाना है .प्लीज़ !मुझे जल्दी मेरे घर पहुंचा दीजिये.कल से मै कौलेज जाना चाह्ती हू .“
निशा के ये बात सुनकर चेहरे पर एक सफल मुस्कराहट उभर आई .
- नीलम कुलश्रेष्ठ
जन्म : आगरा
शिक्षा : रसायन विज्ञान में एम.एस सी.,एक्सपोर्ट मार्केटिंग में डिप्लोमा
लेखन परिचय : वड़ोदरा में स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता -एन.जी.ओ`ज व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तियों के साक्षात्कार ,विविध विषयों पर शोधपरक लेखन
उपलब्धियां : 1. गुजरात के ` हू इज हू `में से एक
2,तीन कहानियों को अखिल भारतीय पुरस्कार ,
3.रचनाओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद ,
4.`अपने घर की ओर`कहानी पर टेली फिल्म ,
5,वृन्दाबन की बंगाली विधवा माइयों , मानव संसाधन मंत्रालय .नई दिल्ली की योजना `महिला समाख्या `, भारत के बाईस विश्व विद्यालय के नारी शोध केन्द्रों पर राष्ट्रीय स्तर पर भारत में सर्वप्रथम लेखन
6.गुजरात की लोक अदालत को भारत में लोकप्रिय बनाने के योगदान ,
पुस्तकें ; 1. सन २००१ में प्रकाशित `हरा भरा रहे पृथ्वी का पर्यावरण `[सामयिक प्रकाशन ,नई दिल्ली ]
सन २००४ व २००५ में गृह मंत्रालय की सर्व श्रेष्ठ पुस्तकों में से एक , तीन संस्करण , गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
2, सन२००२ में प्रकाशित `ज़िन्दगी की तनी डोर ;ये स्त्रियाँ“ [मेधा बुक्स ,नई दिल्ली ]
[द सन्डे इंडियन `की विश्व की सर्व श्रेष्ठ नारीवादी पुस्तकों की सूची में शामिल ]` तीन संस्करण .गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
3. नारीवादी कहानी संग्रह `हेवनली हेल `[शिल्पायन प्रकाशन . नई दिल्ली ]
को अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार .
4प्राचीन स्त्री चरित्रों के व धर्म के स्त्री शोषण के विरुद्ध .एक आन्दोलन की शुरुआत सम्पादित पुस्तकों से
[1]“धर्म की बेड़ियाँ kiबेड़ियाँ खोल रही है औरत ` [शिल्पायन प्रकाशन ,नई दिल्ली ,सन २००८ में व सन 2010 में दूसरा संस्करण प्रकाशित ]
[2]. `धर्म के आर पार औरत ` [किताब घर ,नई दिल्ली ]
[3.] तीसरी पुस्तक`धर्म के आर पार औरत “खंड -२ प्रकाशाधीन
5 नारीवादी पुस्तक .;`परत दर परत स्त्री `.नमन प्रकाशन से सन २००१2 में प्रकाशित कुल आठ पुस्तकें कुल आठ पुस्तकें
6 ` गुजरात;;सहकारिता ,समाज सेवा और संसाधन `.`किताब घर ,नई दिल्ली —– सन २००१2 में प्रकाशित –
7.`गंगटोक का एक भीगा भीगा दिन`[कहानी संग्रह ] -ज्योति पर्व प्रकाशन ,नई दिल्ली
कुल आठ पुस्तकें
प्रकाशाधीन पुस्तकें ;
1..सम्पादित नारीवादी कहानी संग्रह -नॅशनल पब्लिशिंग हाउस ,जयपुर
2.` कुछ रोग ;कुछ वैज्ञानिक शोध `,नमन प्रकाशन. नई दिल्ली
3..`वडोदरा नी नार`[वड़ोदरा की अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रिय स्तर पर विशिष्ठ काम करने वाली महिलायों के इंटरव्यू
सम्प्रति ; वड़ोदरा [सन ११९० में ]व अहमदाबाद[सन २००९ में ] में महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच `अस्मिता ` की स्थापना , जो निरंतर अपनी कलम से ,मंच से स्त्री के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है
संपर्क - अहमदाबाद -३८००१५