बैठे परिंदे
नदी के उस ओर
निहारते
कल कल ध्वनि
उथल पुथल प्रवाह को ।
चुप्पी तोड़कर
लहराने लगे
पेड़ अनेकों,
घास नन्ही करती क्रीड़ाएँ
और वह
डाली पर तितली रंग विरंगी
प्रफ्फुलित
पंख फैला उठी
मानो खिलखिला उठी
करती नृत्य ।
तट पर
मयूर चंचल
रवि की रेशमी किरणों में
सुखा रही है
पंख अपने
जैसे धुल लाई हो
किसी झरने में
जहाँ प्रकृति रोज
स्नानकर
संवरती हो
मुस्कान प्यारी प्यारी जगाकर
मस्तमौला सी ।
- अशोक बाबू माहौर
जन्म - १० जनवरी
साहित्य लेखन - हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में संलग्न
प्रकाशित साहित्य- विभिन्न पत्रिकाओं जैसे -स्वर्गविभा ,अनहदकृति ,सहित्यकुंज ,हिंदीकुंज ,साहित्य शिल्पी ,पुरवाई ,रचनाकार ,पूर्वाभास,वेबदुनिया,जखीरा आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित I
साहित्य सम्मान - इ पत्रिका अनहदकृति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५ से अलंकृति I
अभिरुचि - साहित्य लेखन ,किताबें पढ़ना
संपर्क- ग्राम-कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)