नटखट मौसम

-यार ,भगवान ने बचपन का सबसे कम मौसम क्यों रखा है?

-इसका तो सबसे लंबा मौसम होता है बशर्ते इसको अपने साथ रखा जाए।

-इसको कोई भला क्या अपने साथ रखेगा ,यह तो खुद ही चला जाता है।

-बचपन कभी नहीं जाता। जाता भी है तो उन लोगों का जो इसकी तरफ से आंखें मूंद लेते हैं। उस समय यह बेचारा एक कोने मेँ दुबककर बैठ जाता है।

-ऊँह! तेरा बचपन भी कहाँ रहा –झुर्रीभरा चेहरा,आँखों पर चढ़ी ऐनक, हाथ में सुदामा की सी छड़ी –। क्या यह काफी नहीं बताने को कि तू बुढ़ापे की बदरंगी गलियों से गुजर रहा है।

-कभी- कभी ऊपर से जो दिखाई देताहै ,अंदर से वैसा नहीं होता है। मैं तुझे अपना दिल चीरकर कैसे दिखाऊँ जहां नटखट बचपन अब भी कुलांचे भर रहा है।उसकी हर अदा का रंग चटकीले फूलों सा है।उसकी खिलखिलाहट तो ओस की बूँदों की मानिंद मेरे माथे पर चमकती है। मैं तो उसे अपने साथ हमेशा ही लेकर चलता हूँ।

-उफ!यह कैसा छिछोरापन –बच्चों की सी बातें !

-बच्चों की सी बातें करता हूँ तभी तो बुढ़ापा दरवाजे की देहली लांघने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। हा –हा –हा हा । कहने वाला इतनी ज़ोर से हंसा कि उसकी गूंज से उसके साथी का बचपन भी किलकता घुटने चलता आ गया।

 

- सुधा भार्गव

प्रकाशित पुस्तकें: रोशनी की तलाश में –काव्य संग्रहलघुकथा संग्रह -वेदना संवेदना 
बालकहानी पुस्तकें : १ अंगूठा चूस  २ अहंकारी राजा ३ जितनी चादर उतने पैर  ४ मन की रानी छतरी में पानी   ५ चाँद सा महल सम्मानित कृति–रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह )

सम्मान : डा .कमला रत्नम सम्मान , राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मानपुरस्कार –राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६)

वर्तमान लेखन का स्वरूप : बाल साहित्य ,लोककथाएँ,लघुकथाएँमैं एक ब्लॉगर भी हूँ। 

ब्लॉग:  तूलिकासदन

संपर्क: बैंगलोर , भारत 

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