कुछ अपनी कब्रे हमने खोदी, कुछ औरो का भी हाथ रहा।
सब अपने रस्ते जाते थे, सो पल दो पल का साथ रहा।
जिसको दुनिया में ख़ोज मैंने, वो हर कण-कण में बसता है,
जिसको सच माना उसको सच (भगवन) अपनी माया से रचता है।
मैं हूँ अँधा, इस अंधेपन में कुछ सूरज का भी हाँथ रहा,
संभव था भ्रम ये हट जाता (२) …पर माया का जो साथ रहा।
कुछ अपनी कब्रे हमने खोदी, कुछ औरो का भी हाथ रहा।
सब अपने रस्ते जाते थे, सो पल दो पल का साथ रहा।
- रोहित सिन्हा
ये यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का,लिंकन, अमेरिका में एक रिसर्च एसोसिएट हैं । इनकी रिसर्च बैक्टीरिया और ह्यूमन जीनोम के पारस्परिक सम्बन्ध के बारे में जानकारी से सम्बंधित है ।
तकनिकी से जुड़े होने के बावजूद इन्हें हिंदी साहित्य से प्रेम है और अपने इस प्रेम को ये अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं ।