कितनो में हो तुम
तुम तुम करके
बदल गए हम
तुम में तुम हम मे तुम
हर अक्षरों में है तुम
जीवन की जीवनी में
कथनी और करनी में
मन और मानसिक सहनी में
आरोपों के व्यपार में
चापलूसों के मकरजाल में
संस्कारो के आकार में
तुम ही तुम, तुम ही तुम
रुक गया है ढक गया है
पहिया जैसे छिटक गया है
बिना जंग के लड़ लिया है
अफवाहों ने सिरकत किया है
मैं से तुम कब बन गया है
दिल में तुम, मन में तुम
बेवसी दिखती है, हम में तुम
छोर देंगे कहना तुम,
चलेंगे मिलकर अब दोरेंगे हम
तुम में हम हम में तुम
- मनीष कुमार
- पिता का नाम - श्री गजेन्द्र प्रसाद कर्ण
- माता का नाम - श्रीमति आभा देवी
- शेक्षणिक योग्यता - MBA, MCA
- पता – रांची ,झारखण्ड
- लेखनी - कविता लिखना
- व्यवसाय - आईटी कंपनी में कार्यरत