तबादला

उनके तबादले पर खुश थे
कर्मी, निचले स्तर के अधिकारी
सहायक, चपरासी भी
किसी ने कोई विदाई के कार्यक्रम भी नहीं की
अफसोस तक नहीं हुआ
और न ही कोई दुख
उनके तबादले का ।
बड़े कानून के पक्के थे वे
समय पर हर काम करते
आलस्य और दवाब कभी
उस पर हॉबी न हो सका
नियम के प्रतिकूल लड़ भी जाते
लोग उन्हें पसंद नहीं करते
जमाने के हिसाब से कच्चे थे
सामाजिक समरसता कभी उन्हें
लुभा न सकी।
उनके जाने पर अगर किसी को
तकलीफ थी तो केवल
दरवाजे पर बैठे दरवारी कुत्ते को
उसे खिलाये बगैर कभी नहीं खाते
आज उनकी आँखों में गर्म आंसू थे
और थी चिंता तो परिंदों को
जो हर शाम आ जाती कुछ खाने
ऐसे में उनके रोम गीले थे
और अप्रत्याशित अश्रुकण
उनकी आँखों में
तबादले की।

 

 

डॉ0 मु0 हनीफ़

डॉ (मु)हनीफ साहित्य की कई विधाओं जैसे-कविता,कहानी,लघुकथा,उपन्यास,संस्मरण इत्यादि से गहरा सरोकार रखते हैं।हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत,उर्दू,अरबी,बंग्ला,संथाली पर समान अधिकार रखनेवाले अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी अनेक रचनाएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित है।पत्थर के दो दिल(उपन्यास),कुछ भूली बिसरी यादें,और दर्द कहूँ या पीड़ा,कहानी संग्रह अमेज़न पर उपलब्ध है।प्रतिभा सम्मान,राष्ट्र गौरव सम्मान,राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान,बेस्ट एडुकेशनिस्ट अवार्ड, सुपर अचीवर्स अवार्ड, ग्लोबल आइकॉन अवार्ड,शिक्षक सम्मान और अन्य कई अवार्ड सेसम्मानित डॉ हनीफ जनसरोकार और मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी रचनाएँ लिखनेवाले सम्प्रति स प महिला महाविद्यालय में बतौर अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में दुमका,झारखण्ड (भारत) में कार्यरत हैं।

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