के.के.बिरला फाउंडेशन,कैक्सटन हाउस मध्य तल, 2-इ झंडेवालान एक्सटेंशन,नर्इ दिल्ली
डा. नरेन्द्र कोहली
आप संभवत: जानते हैं कि के.के.बिरला फाउंडेशन ने कर्इ उच्चस्तरीय सम्मान पुरस्कार प्रवर्तित किए है। इसमें सरस्वती सम्मान देश की सभी प्रमुख भाषाओं में से चुनी गर्इ किसी एक उत्कृष्ट कृति के लिए दिया जाता है। इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण आयोजन व्यास सम्मान है, जो सम्मान वर्ष से ठीक पहले 10 वर्ष की अवधि में प्रकाशित किसी भी भारतीय नागरिक की हिन्दी की एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति को भेंट किया जाता है। यह सम्मान 1991 में आरंभ किया गया था।
वर्ष 2012 के व्यास सम्मान के लिए प्रख्यात लेखक डा. नरेन्द्र कोहली के उपन्यास “न भूतो न भविष्यति” को चुना गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2004 है। यह निर्णय साहित्य के जाने-माने विद्वान और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता में संचालित एक चयन समिति ;पूरी सूची संलग्न नोट में दी गर्इ है। इसकी सम्मान राशि ढार्इ लाख रूपये है।
व्यास सम्मान:
के.के.बिरला फाउंडेशन साहित्य के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रीय है। फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष तीन बड़े साहित्यिक सम्मानपुरस्कार दिए जाते हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में किसी भी उल्लेखित भारतीय भाषा में पिछले दस वर्षों में प्रकाशित भारतीय नागरिक की एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति के लिए सरस्वती सम्मान ;राशि:साढ़े सात लाख रूपये और राजस्थान के हिन्दीराजस्थानी लेखकों के लिए बिहारी पुरस्कार ;राशि: एक लाख रूपये दिया जाता है।
एक अन्य पुरस्कार है व्यास सम्मान ;राशि:ढार्इ लाख रूपये जो सरस्वती सम्मान के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है। यह भी पिछले 10 वर्षों में प्रकाशित किसी भारतीय नागरिक की उत्कृष्ट हिन्दी कृति पर दिया जाता है। सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त साहित्य और भाषा का इतिहास, आलोचना, निबंध व ललित निबंध, जीवनी आदि विधाएं भी इन सम्मानोंपुरस्कारों की परिधि में आती है। हिन्दी में कर्इ प्रतिष्ठित पुरस्कार हैं। पर व्यास सम्मान की विशिष्टता यह है कि यह साहित्यकार को केन्द्र बिन्दु में न रखकर किसी एक साहितियक कृति को दिया जाता है।
व्यास सम्मान के लिए कृति के चयन का पूरा दायित्व एक चयन समिति का है। जिसके अध्यक्ष आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रख्यात विद्वान प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित हैं। उनके अतिरिक्त इस समिति में अन्य सदस्य हैं: प्रो.श्रीमतीद्ध एस. शेषारत्नम; विशाखापत्तनमद्ध; श्रीमती चित्रा मुदगल, दिल्लीद्ध; डा. पूरनचंद टंडन,नर्इ दिल्लीद्ध; डा. दीपक प्रकाश त्यागी; गोरखपुरद्ध व फाउंडेशन के निदेशक श्री निर्मलकांति भटटाचार्जी; सदस्य-सचिवद्ध। चयन प्रक्रिया द्विस्तरीय है। पहले एक तीन सदस्यों की भाषा समिति पुरस्कार अवधि में प्रकाशित कृतियों पर विचार-विमर्श करके तीन उत्कृष्ट कृतियों की संस्तुति करती है। इस पर चयन समिति विचार करती है। चयन समिति केवल संस्तुति की गर्इ पुस्तकों पर ही विचार नहीं करती है, निर्धारित अवधि में प्रकाशित अन्य पुस्तकों पर भी वह विचार कर सकती है।
अब तक निम्नलिखित साहित्यकारों की कृतियों को व्यास सम्मान दिया जा चुका है :
वर्ष पुरस्कृत कृति लेखक का नाम
1991 भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी ; डा. रामविलास शर्मा
तीन भागों में: आलोचनाद्ध
1992 नीला चांद; उपन्यासद्ध डा.शिव प्रसाद सिंह
1993 मैं वक्त के हूं सामने; कविताद्ध श्री गिरिजा कुमार माथुर
1994 सपना अभी भी; कविताद्ध डा.धर्मवीर भारती
1995 कोर्इ दूसरा नहीं; कविताद्ध श्री कुंवर नारायण
1996 हिन्दी साहित्य और संवेदना का प्रो. रामस्वरूप चतुर्वेदी
विकास; साहित्य का इतिहासद्ध
1997 उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएं; कविताद्ध डा. केदार नाथ सिंह
1998 पांच आंगनों वाला घर ;उपन्यासद्ध श्री गोविन्द मिश्र
1999 विस्रामपुर का संत; उपन्यासद्ध श्री श्रीलाल शुक्ल
2000 पहला गिरमिटिया; उपन्यासद्ध श्री गिरिराज किशोर
2001 आलोचना का पक्ष; आलोचनाद्ध प्रो. रमेश चन्द्र शाह
2002 पृथ्वी का कृष्णपक्ष; कविताद्ध डा.कैलाश वाजपेयी
2003 आवां; उपन्यासद्ध श्रीमती चित्रा मुदगल
2004 कठगुलाब; उपन्यासद्ध श्रीमती मृदुला गर्ग
2005 कथा सतीसर; उपन्यासद्ध श्रीमती चन्द्रकांता
2006 कविता का अर्थात; आलोचनाद्ध प्रो.परमानंद श्रीवास्तव
2007 इस वर्ष यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया.
2008 एक कहानी यह भी ;आत्मकथाद्ध श्रीमती मन्नू भंडारी
2009 इन्हीं हथियारों से ;उपन्यासद्ध श्री अमरकांत
2010 फिर भी कुछ रह जायेगा ;कविताद्ध डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
2011 आम के पत्ते ;कविताद्ध प्रो. रामदरश मिश्र
वर्ष 2002-2011 की अवधि में प्रकाशित पुस्तकों पर विचार करने के बाद वर्ष 2012 के व्यास सम्मान के लिए प्रख्यात लेखक डा. नरेन्द्र कोहली के उपन्यास न “भूतो न भविष्यति” को चुना गया है।
डा.नरेन्द्र कोहली और उनका उपन्यास न “भूतो न भविष्यति”:
डॉ नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी, 1940 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविधालय से हिन्दी में एम. ए. और पीएच.डी की है। हिन्दी साहित्य में महाकाव्यात्मक उपन्यास की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेन्द्र कोहली को ही जाता हैं। उन्होंने पुराणों पर आधारित साहित्यिक की रचना कर लेखन की दुनिया में एक नर्इ विधा का सूत्रपात किया। 1975 से वह हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी की अविछिन्न धारा से समृद्ध करते आ रहे हैं, इसलिए समकालीन आधुनिक हिन्दी साहित्य की यह अवधि कोहली युग के नाम से भी जानी जाती है।
उनके कुछ उपन्यासों में समाज और परिवारों के जीवन को पेश किया गया है, लेकिन महज समाज के बारे में कहने या उसके दोषों का मखौल उड़ाने और दुविधाओं की प्रस्तुति से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। उन्होंने महसूस किया कि समाज के आधे-अधूरे, संकीर्ण और सीमित चित्रण से न तो साहित्य का लक्ष्य पूरा होता है ना ही समाज का हित होता है। मनुष्य की दुर्बलता और दोषों को सामने रखने से बुराइयों और दूषित प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा मिलेगा। इसलिए उनका मानना है कि साहित्य को जीवन के महान, गौरवपूर्ण और नैतिक मूल्यों को ही व्यक्त करना चाहिए।
कालजयी कथाकार कोहली जी की अब तक लगभग 76 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें कहानी, उपन्यास के साथ-साथ आलोचना, व्यंग, नाटक, संस्मरण व निबंध शामिल हैं। महासमर, तोड़ो कारा तोड़ो, अभ्युदय, क्षमा करना जीजी, अभिज्ञान, हत्यारे, आत्मा की पवित्रता, युद्ध एवं त्रासदियां उनके बहुचर्चित संस्करण हैं।
डा. नरेन्द्र कोहली के उपन्यास न “भूतो न भविष्यति” ;वर्ष 2004 में प्रकाशितद्ध को वर्ष 2012 के व्यास सम्मान के लिए चुना गया है।” न भूतो न भविष्यति” देश के इतिहास और संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ने वाले स्वामी विवेकानंद के व्यकितत्व और उस युग पर लिखा हुआ ऐतिहासिक उपन्यास है। इस उपन्यास में समकालीन जीवन के मूल्यगत विभ्रम को डा. नरेन्द्र कोहली ने ऐतिहासिक कथ्य के माध्यम से पौराणिक शाश्वत मूल्यों पर चिंतन करते हुए अंकितन किया है। अपनी रचना में उन्होंने आस्था, सत्य, मर्यादा, नैतिकता, संस्कृति तथा धर्म के सात्विक स्वरूप से सम्बद्ध अनेक बुनियादी प्रश्नों को भी उठाया है।
पुरस्कृत उपन्यास में .धर्म और जीवन की जटिल गुत्थियों तथा र्इश्वर संबंधी जिज्ञासाओं को लेखक ने इतनी सहजता और सरलता से समझाया है कि पाठक को भी उस सत्य का कलात्मक साक्षात्कार होने लगता है।
- निर्मलकांति भटटाचार्जी