चौपाई : भारत माँ ने आँखें खोलीं – ज्योत्स्ना प्रदीप

भारत माँ ने आँखें खोलीं,
देखो वो भी कुछ तो बोली ।
बालक मेरे  हैं अवसादित,
पथ ना जानें क्यों हैं बाधित।
वसुधा वीरों की मुनियों की,
ज्ञान कोष थामें गुनियों की।
कोई तो था प्रभु का साया,
कोई गंगा   भू पर लाया ।
संतानें अब बदल गई हैं,
माँ की आँखें सजल भई हैं ।
निकलो अपनी हर पीड़ा से,
खुद को सुख दे हर क्रीडा से ।
कुटिया चाहे ठौर बनाना ,
घी का चाहे कौर न खाना।
पावनता  को अपनाना है,
नवयुग सुख का फिर लाना है।
किरणें थामे नैन कोर हो,
सबकीअपनी सुखद भोर हो ।
बनना  खुद के भाग्य विधाता,
आस लगाये भारत माता ।

- ज्योत्स्ना प्रदीप

शिक्षा : एम.ए (अंग्रेज़ी),बी.एड.
लेखन विधाएँ : कविता, गीत, ग़ज़ल, बालगीत, क्षणिकाएँ, हाइकु, तांका, सेदोका, चोका, माहिया और लेख।
सहयोगी संकलन : आखर-आखर गंध (काव्य संकलन)
उर्वरा (हाइकु संकलन)
पंचपर्णा-3 (काव्य संकलन)
हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश

प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जैसे कादम्बिनी, अभिनव-इमरोज, उदंती, अविराम साहित्यिकी, सुखी-समृद्ध परिवार, हिन्दी चेतना ,साहित्यकलश आदि।

प्रसारण : जालंधर दूरदर्शन से कविता पाठ।
संप्रति : साहित्य-साधना मे रत।

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