चुरा लेना चाहती हूँ
बारिश की कुछ बूंदों को,
बादल के कुछ टुकड़ों को,
आकाश का जरा सा नीलापन,
मिटटी का जरा सा सोंधापन
चुरा लेना चाहती हूँ…
सूरज की थोड़ी सी रोशनी
चाँद की थोड़ी सी चांदनी
दिन का थोडा सा अवसान,
शाम की थोड़ी सी थकन
रात का थोडा सा अंधकार
भोर का थोडा सा उजास
चुरा लेना चाहती हूँ,
आज थोड़ा-थोड़ा
सबकुछ
कि कल कहीं ये खो न जाएँ
समा लेना चाहती हूँ
कहीं अपने ही भीतर
सबकुछ
थोड़ा-थोड़ा…!!
- स्वाती ठाकुर
शोध छात्रा ,
हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय,
दिल्ली , भारत