चांद का प्रपंच

भागता हुआ
अपनी परछाई के पीछे
थक गया हूं मैंए
ये प्रपंच चांद का है, सूरज का है,
दुधिया रो श नी में नहाई उत्तरआधुनिक दुनिया का है
जिन्होंने मेरे गोलार्द्ध में भटकाया मेरी परछाई को
बेतहाशा भागते हुए पीछे छूट गए
रिश्ते.नाते, दोस्त.महीम सब,
अब जब गुम होने की कगार पर हूं
सोचता हूं अंधेरा भला था
जो करा जाता था अपने होने का अहसास।।

 

 

- अमलेन्दु अस्थाना

मुख्य उपसंपादक
दैनिक भास्कर, पटना।

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