गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद में – अंजना संधीर से एक मुलाक़ात

 

रामायण में तुलसीदास जी ने लिखा है ,
” गिरिजा संत समागम शमन लाभ सुत मान।
बिनु हरि कृपा न होंहि सो गावहिं बेद पुराण।।
स्वागत मेरा कई बार हुआ मगर कहीं भी मेरे सभी श्रोता इतने उच्च कोटि के बौद्धिक नहीं थे कि मैं अपने आप को बौनी लगूँ। यह जुगाड़ अंजना संधीर ने की।
मंगलवार को अहमदाबाद जाना है। बुधवार को अंजना से मिलना है। मिलकर वापिस वडोदरा आना है। उसी रात। टैक्सी कर ली है।
अंजना से मेरी यह दूसरी मुलाक़ात होगी। एक बार पहले सं ग्यारह में श्री जवाहर कर्णावत द्वारा आयोजित संगोष्ठी में मैं उनसे पहली बार मिली थी। उन्होंने उस समय मुझे अपनी एक पुस्तक और उससे सम्बंधित सी डी भेंट किया था। पुस्तक में हिंदी फिल्मो के २५ लोकप्रिय गानों का अंग्रेजी में अनुवाद था और सीडी में वह सभी गाने भरे हुए थे। किताब न्यू यॉर्क लाइफ इन्स्योरेंस के सौजन्य में अमेरिका से छपी थी। अपने सुन्दर कलेवर में पूरी की पूरी भारतीय भाषा , संस्कृति ,इतिहास ,व सामाजिकता को संजोये हुए — गागर में सागर ! तार्किक एवं काल्पनिक बुद्धिमत्ता से प्रसूत ,अदभुद कृति।
इस किताब की भूमिका पढ़ी तो मेरा परिचय उन बहुमुखी प्रतिभावान लोगों से हुआ जो भारत की विद्वता व अध्यवसाय की अखंड जोत विदेशों में जगाये बैठे हैं।

उस बुधवार को अंजना ने मुझे गुजरात विद्यापीठ में आमंत्रित किया। बताये स्थान पर पहुंची तो पता चला कि अन्य कई जनों -को भी बुलाया है। सारांश में अंजना ने आनन फानन में एक कवि गोष्ठी का आयोजन कर डाला। और न न करते भी करीब चालीस लेखकों अध्यापकों ,शोध छात्रों को मुझसे मिलवाने के लिए आमंत्रित कर लिया।

 

मेरे समक्ष एक तारा – मंडल उपस्थित था जिसका प्रत्येक सदस्य एक से बढ़कर एक काबिल-ए – तारीफ़ ! मैंने दीप प्रज्वलित किया व श्रीमती प्रणव -भारती ने सरस्वती वंदना गाई । श्री के के भास्करन ,भारतीय भाषा संस्कृति संस्थान ,गुजरात विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष ने स्वागत भाष्य किया एवं मुझे खादी सूत्र माला व शाल भेंट किया। उपस्थित कवियों में थे श्री छत्रपाल सिंह वर्मा , आत्मप्रकाश जी , बसंत परिहार जी , जयंत परमार जी , प्रो० निसार अंसारी , डॉ ० चीनू मोदी , डॉ ० सुधा श्रीवास्तव ,सुश्री लक्ष्मी पटेल ,सुश्री शबनम , डॉ ० प्रणव भारती ,डॉ ० अर्चना अरगड़े , डॉ ० कुमुद मिश्रा , डॉ ० कुमुद वर्मा , शुभा चक्रवर्ती , जानकी पल्लवी ,कविता शर्मा ,अनिल पाण्डेय एवं डॉ ० अंजना संधीर।

 

मेरा सौभाग्य कि मैंने उन सबकी रचनाएं सुनी और सबसे मिली। इसी अवसर पर मैंने श्री आत्मप्रकाश की पुस्तक ” पतझर भी मधुमास हो गया ” ( कविता संग्रह ) एवं डॉ अंजना संधीर की पुस्तक ,” भूकम्प और भूकम्प ” ( कहानी अनुवाद संग्रह ) का विमोचन भी किया।
मैंने अपनी कवितायेँ एवं कहानी ” मिलन हो कैसे ? ” का पाठ किया जो सबको बहुत पसंद आई।
यह सराहनीय आयोजन केवल एक दिन में व्यवस्थित किया गया था फिर भी उपस्थित सदस्यों की संख्या इतनी थी कि कुर्सियां कम पड़ गईं। यह दर्शाता है कि सब अंजना जी का कितना सम्मान करते हैं। अंजना ने बताया कि जब भी कोई लेखक या लेखिका विदेश से या भारत के अन्य शहर से आता है वह इसी तरह स्वागत करती हैं। कितना प्रेरणात्मक कार्य है यह। इसके लिए गुजरात विद्यापीठ प्रशंसा का पात्र है विशेषकर भाषा संस्कृति संस्थान।
अंजना संधीर — एक बहुमुखी व्यक्तित्व — एक चिरस्थाई याद !

डॉ अंजना संधीर ने संगीत व साहित्य अपने पिता से विरासत में लिया है। वह अच्छा गाती भी हैं व अपनी ग़ज़लों का सीडी भी बनवाया है। भाषाओं पर अधिकार है अतः अभी हाल में श्री नरेंद्र मोदी की कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया है ,” आँख ये धन्य है ” . उनके अपने ही शब्दों में ” ” अनुवाद करना परकाया प्रवेश की भाँति है ”. विशेषकर यदि अनुभूतिपूर्ण कविताओं का हो तो। मोदी जी ने गुजरती में लिखा है ,परन्तु अंजना जी ने उसे समस्त भारत के ह्रदय तक पहुँचाया है। यह हिंदी के लिए गर्व का विषय है।


उनकी पुस्तक ‘ भूकम्प और भूकम्प ‘ गुजरात में आये भूकम्प ( २००१ , २६ जनवरी ) पर लिखी गुजराती लेखकों की कहानियों का अनुवाद है जो भुक्तभोगियों द्वारा लिखित समय का दस्तावेज़ है। यह अति पठनीय एवं संग्रहणीय किताब है।
पैंतालीस वर्षों के अपने प्रवास में जाने कितनी बार मुझे अपनी दर्जनों सहपाठिनो की याद आई है। ज्यों निकलकर बादलों की गोद से ,बूँद इक छोटी सी कुछ आगे बढ़ी —- वाली कविता चरितार्थ करते हुए वह लड़कियाँ कहाँ कहाँ जा बसीं ? उत्तर मिला अंजना की एक और किताब से। अंजना समय और समाज को साथ लेकर चलती रही हैं। अमेरिका में रहकर इन्होंने वहां की अनेकों कवियित्रियों की रचनाओं का एक संग्रह छापा। उसी तरह गुजरात में उन्होंने कवियित्रियों को गुहार लगाई और सौ स्त्री लेखिकाओं का परिचय और उनकी कविताओं का संग्रह बनाया। उनके परिचय पढ़कर लगा वह सब मेरी सहपाठिनें ही तो थीं ! शायद किसी जादू की छड़ी से उनके नाम और रूप बदल गए थे। नॉस्टेलजिया सावन की गझिन घटाओं की तरह मन में उमड़ने लगा। पूरी किताब एक दांव में पढ़ डाली।
अंजना का अध्यवसाय अथक है। अब तक उन्होंने पंद्रह के करीब किताबें लिखी हैं। परन्तु उससे भी अधिक सराहनीय है उनकी जीवंत मुस्कान व सरल मित्रता। ईश्वर उनका आत्मविश्वास व क्रियाशीलता बनाये रखे। मुझे इतने सारे महानुभावों के समक्ष अपनी बात रखने का अवसर देने के लिए मैं उनकी ह्रदय से आभारी हूँ।

 

- कादंबरी मेहरा


प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली

                          पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली

                          रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ

सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ

             पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के

             एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५

             अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ

             ” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित

संपर्क: यु के

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