इस बार कविता
गाँव के चौराहे पर पढ़ी गर्इ
यह कविता
दस साल की बच्ची
द्वारा पढ़ी गर्इ
जिसका बाप
अभी – अभी साइकिल से
कोयला बेंचकर
लौटा है
थककर जमीन पर लेटा है
लेकिन देह से
पसीना अब भी
बह रहा है
और नमक धरती सोख रही है।
जिसकी माँ
खदान में कोयला
निकालने के दरम्यान
चाल में दबकर
मर गर्इ है
और चौराहे पर बहस
कोल ब्लाक आबंटन पर जारी है
बच्ची की कविता में
उसकी माँ है
शहर गर्इ बहन है
और जंगल से नही लौटा
उसका भार्इ है।
इस बार कविता
गाँव के चौराहे पर पढ़ी गर्इ
बच्ची की कविता में
गर्भ में मारी गर्इ
उसकी सहेलियाँ हैं
जो उसके सपने में
खेलती हैं
झुमर कित – कित
उसकी कविता में देश और दुनिया है
जो मुनाफे के बाजार में नीलाम हुए जा रही है
और इंसान रोबोट में
तब्दील हो रहे हैं
जबकि लड़की की कविता
कहती है कि
अब रोबोट में भी
भावना और संवेदना की
प्रोग्रामिंग की जा रही है।
यह कविता अभी – अभी
गाँव के चौराहे पर पढ़ी गर्इ है
और यह खबर
अमेरिका तक पहुँच गर्इ है
हालाँकि बच्ची का बाप
अब भी जमीन पर
बेसुध पड़ा है।
- लालदीप गोप
शिक्षा : एमएससी एवं पोस्ट ग्रेजुएट डिपलोमा इन हूमन राइटस
प्रकाशित रचनाएँ : ”तीसरी दुनिया के देश और मानवाधिकार”, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता कहानी एवं आलेख प्रकाशित
संप्रति एवं पता : डिपार्टमेंट आफ पेट्रोलियम इंजिनियरिंग , आर्इ0 एस0 एम0 धनबाद, झारखण्ड