ग़ज़ल – अनमोल

 

इक-दूसरे की मौत का सामान हो गये
कितने अजीब आज के इंसान हो गये

सहसा यूँ क्या हुआ कि जीने के फ़लसफ़े
जितने कठिन थे उतने ही आसान हो गये

लाचार हो गया तो पिता याद नहीं है
मतलब अगर दिखा तो चचाजान हो गये

देखो हमारे दौर की कैसी है जहनियत
टोपी जो पहन ली तो मुसलमान हो गये

हाथों में बम-बारूद ले मज़हब के नाम पर
कुछ सरफ़िरे इक क़ौम की पहचान हो गये

अनमोल दर-बदर यूँ किया वक़्त ने हमें
पूरे हमारे दिल के भी अरमान हो गये

 

- अनमोल

जन्मतिथि: 19 सितंबर

जन्म स्थान: सांचोर (राज.)

शिक्षा: स्नातकोत्तर (हिन्दी)

संप्रति: लोकप्रिय वेब पत्रिका ‘हस्ताक्षर’ में प्रधान संपादक

प्रकाशन: 1. ग़ज़ल संग्रह ‘इक उम्र मुकम्मल’ प्रकाशित (2013)
       2. कुछ साझा संकलन में रचनाएँ प्रकाशित
       3. देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व अंतरजाल पर अनुभूति, साहित्यदर्शन, स्वर्गविभा, अनहदनाद, साहित्य रागिनी, हमरंग आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित

संपादन: 1. साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, मनकापुर की पुस्तक शृंखला ‘मीठी-सी तल्खियाँ’ के भाग 2 व 3  का संपादन
       2. पुस्तक ‘ख्वाबों के रंग’ का संपादन
       3. वेब पत्रिका ‘साहित्य रागिनी’ का सितम्बर 2013 से जनवरी 2015 तक संपादन

पता:  अनमोल-प्रतीक्षा, रूड़की (हरिद्वार) उत्तराखंड

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