ठीक है किसी को इंसानी शक्ल-सूरत की जरूरत हो तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी लेकिन अगर वे कहें कि नहीं, हमें तो सूरत भी ऐसी चाहिए जिसे देखते ही दया और मित्रता का भाव उमड़ पडे यानी उन्हें भोली सूरत चाहिए तो फिर सोचना पड़ सकता है।शायद उन्होंने वह गीत नहीं सुना होगा – “भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे, दर्शन छोटे।” यदि यह गीत उन्होंने सुन लिया होता तो संभव था कि उनका विचार कुछ बदल जाता और वे किसी अन्य दिशा में सोचते।फिर भी ज्यादा चिंता वाली बात नहीं है क्योंकि जिसके लिए वे सोच रहे हैं वह तो यांत्रिक मानव ही रहेगा जिसकी अपनी कोई सोचने-समझने की क्षमता नहीं होगी।तब चिंता किस बात की!
हमने सुना है कि ब्रिटिश इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग फर्म जियोमिक अपने रोबोट को ऐसा चेहरा देना चाहती है जो देखने में बिल्कुल इंसान जैसा लगे । कम्पनी ऐसी शक्ल के एवज में बानवे लाख रूपये तक चुकाने को तैयार है।अरे,शक्ल देने का क्या है!हम ही दे दें।हमसे ज्यादा भोली सूरत का इंसान इस जगत में कहाँ मिल सकता है।हम तो तैयार हैं और फिर वे जितना कहेंगे, उससे भी ज्यादा भोले बनकर अपना चेहरा उनके सामने प्रस्तुत कर देंगे।फिर जैसा चाहें रोबोट का चेहरा वे बना लें।हमारी भोली सूरत ही तो ले पाएंगे, भीतर जो छुपा है,वह थोड़े ही न ले पाएंगे और फिर हम ही क्या जिसके पास भी जाएंगे, वही माल पाएंगे।हर आदमी अपनी दुकान लगाए बैठा है भाई!
रोबोट तो फिर भी मशीन है ।इंसान भोला दिखाई देकर भी भोला नहीं है और भोला बनकर भी भोला नहीं है।वैसे रोबोट को भोला इंसान दिखाकर भी क्या तीर मारा जा सकता है।कभी इंसानी फितरत चेहरे पर उभर कर आई है, नहीं न,यह तो महसूस करने और अनुभव करने की बात है।
यदि रोबोट भी इंसानों की तरह चेहरे से बहुत मासूम और भोलाभाला दिखाई दे जाए और उसके भीतर के तंतु उसे उस तरह का आदमखोर बना दे जो भोली सूरत लेकर आते हैं और तरह तरह से इंसानी लहू को पी जाते हैं। ऐसी भोली सूरत लेकर भी क्या कीजै!भोली सूरत बनाकर लोग ऊंगली पकड़ते-पकड़ते पोंचा पकड़ लेते हैं।इसीलिए भाई,भोली सूरत पर मत जाओ।मेरा परामर्श तो यही है कि रोबोट को रोबोट ही रहने दो,इंसानी सूरत-शक्ल देने से क्या हांसिल।भोली सूरत में मक्कारी और शैतानियत मिल गई तो बेचारा रोबोट भी शर्मसार होगा।
हाँ,यह बात अवश्य है कि रोबोट में यह खतरा नहीं है क्योंकि वह तो भोली सूरत लेकर भी वही कार्य करेगा जो कमांड उसे दिये जाएंगे।वह अपने मन से तो कुछ करेगा नहीं, यहाँ तक कि मन की बात भी नहीं कर सकता!यह सब तो इंसानी फितरत है।इंसान को बनाने वाले ने भी कभी यह नहीं सोचा होगा कि इंसान नाम का यह दोपाया इतना खतरनाक साबित होगा।कम से कम रोबोट बनाने वाले आश्वस्त रह सकते हैं।भोली सूरत वाले रोबोट सम्पत्ति के लिए किसी अपने की हत्या नहीं करेंगे।अकेली किसी अबोध से दुष्कर्म कर उसको मौत के घाट नहीं उतारेंगे।झूठ, फरेब,मक्कारी उनमें कैसे आ सकती है।भले ही कम्पनी चाहे तो रोबोट की भोली सूरत की जगह शैतानियत बरसने वाली सूरत बना दे,तब भी उसकी नीयत में खोट नहीं मिला सकेंगे।लेकिन फिर भी संशय तो है ही क्योंकि रोबोट को बनाने वाला आखिरकार इंसान ही तो है!
- डॉ प्रदीप उपाध्याय
संक्षिप्त परिचय – 21 जनवरी, को झाबुआ मध्यप्रदेश में जन्में डॉ.प्रदीप उपाध्याय की शिक्षा-दीक्षा तीन विषयों में स्नातकोत्तर के साथ विधि स्नातक की रही।मध्य प्रदेश शासन के अन्तर्गत राज्य वित्त सेवा में शासकीय सेवा से वर्ष 2016 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर चुके हैं।वर्ष 1975 से सतत रूप से लेखन में सक्रिय रहे हैं। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,लघु कथा,कविताएँ,व्यंग्य आलेख तथा विभिन्न सामाजिक,राजनीतिक विषयों पर आलेख एवं शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।
प्रकाशन- व्यंग्य संकलन- मौसमी भावनाऐं ,सठियाने की दहलीज पर,बतोलेबाजी का ठप्पा, बच के रहना रे बाबा,मैं ऐसा क्यूँ हूँ!तथा प्रयोग जारी हैं।
साझा व्यंग्य संग्रह निभा , मिली भगत।साझा काव्य संग्रह ‘काव्य दर्पण’ एवं साझा कहानी संग्रह ‘प्रतिश्रुति’,मनभावन कहानियाँ
वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर ,भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में व्यंग्य संकलन ‘मौसमी भावनाएँ’ के लिए पवैया सम्मान से सम्मानित,वर्ष2018-19 में व्यंग्य संकलन ‘सठियाने की दहलीज पर’ के लिए अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार तथा संस्मरण लेखन हेतु रचनाकार आर्ग.से पुरस्कृत