कागज़ की कश्ती दरिया में ही डूब गई
ये कागज़ की जीत है कि दरिया ही हार गई
ये कागज़ की जीत है कि दरिया ही हार गई
कश्ती को आता देख लहरें उठकर खड़ी हुई
डरी नही कश्ती भी उससे लहरो से ही भीड़ गई
लड़ती रही निकलने को अपनी छोटी पतवारों से
ये लहरों की बेमानी हैं कि कश्ती उसमे डूब गई
डरी नही कश्ती भी उससे लहरो से ही भीड़ गई
लड़ती रही निकलने को अपनी छोटी पतवारों से
ये लहरों की बेमानी हैं कि कश्ती उसमे डूब गई
क़िस्सा कश्ती की लहरों से अंतिम सांस तक लड़ने की
क़िस्सा कश्ती की लहरों की अंक में ना मिटने की
याद ही करती है दुनिया देख के विपदा कोई बड़ी
की ऊँची लहरें भी आख़िर में कश्ती में ही सिमट गई
क़िस्सा कश्ती की लहरों की अंक में ना मिटने की
याद ही करती है दुनिया देख के विपदा कोई बड़ी
की ऊँची लहरें भी आख़िर में कश्ती में ही सिमट गई
लहरें तो बेताब है अब छोटी कश्ती डुबाने को
कश्ती की भी ज़िद है अब लहरो के पार जाने को
देख तमाशा सागर का फिर छोटे परिंदे चहक रहे
हिम्मत है अब उनमें भी बाज़ो के संग लड़ने की
कश्ती की भी ज़िद है अब लहरो के पार जाने को
देख तमाशा सागर का फिर छोटे परिंदे चहक रहे
हिम्मत है अब उनमें भी बाज़ो के संग लड़ने की
कश्ती की हिम्मत को देख लहरें भी शरमा गईं
कोशिश करके लाखो भी हस्ती उसकी मिटा नही
बिखर गई उस कश्ती को फिर से बनाने की खातिर
सज़ा के अपनी हाथों पर लहरें किनारो पर ले आई ।।
कोशिश करके लाखो भी हस्ती उसकी मिटा नही
बिखर गई उस कश्ती को फिर से बनाने की खातिर
सज़ा के अपनी हाथों पर लहरें किनारो पर ले आई ।।
- बिमल तिवारी ‘आत्मबोध ‘
जनपद-देवरिया उत्तर प्रदेश भारत
फ्रेंच भाषा स्नातक, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी पर्यटन प्रशासन स्नातकोत्तर, डॉ राम मनोहर लोहिया यूनिवर्सिटी फैज़ाबाद पर्यटन प्रोफेशनल के साथ साथ यात्रा विवरण,कविता,किस्सा-कहानी-लघुकथा,डायरी,मेमोरीज़ लिखने का शौकीन । शीघ्र ही पहली कविताओं का संग्रह “लोकतंत्र की हार “ राजमंगल प्रकाशन अलीगढ़ द्वारा प्रकाशित होने वाली हैं।