और सामूहिक

 

ये शब्द सुनते ही

मन में कौंध उठती है,

किसी अबला की चीख,

किसी की करुण पुकार,

किसी की उजड़ती लाज,

किसी की हृदयविहारक रुदन,

किसी निरीह नारी की गिड़गिड़ाहट ,

दानवी चेहरों वाले

शैतानों की खिलखिलाहट,

मानवों का अमानवीय कर्म

 

पर क्या स्त्री की

लज्जाहरण का यह

दुष्कर्म इतना,

सुलभ और आम हो गया है

हमारे समाज में कि,

हमारा चिंत “सामुहिक”

शब्द सुनते ही

इसकी कल्पना

कर लेता है ?

 

अगर यह सच है,

तो सचमुच ही

हमारा समाज

पतन कि ओर

अग्रसर है,

और हम चरित्रहीनता

की ओर

सुनकर जब “सामुहिक ”

शब्द,मन में कौंधे

श्रमदान, सेवा, प्रतिज्ञा,

और परोपकार

का कर्म,

तभी होगा हमारे

देश का कल्याण और

सार्थक होगा आदर्श

“अमित” समाज का मर्म

 

- अमित कुमार सिंह

बनारस की मिट्टी में जन्मे अमित जी की बचपन से कविता और चित्रकारी में रूचि रही है|

कालेज के दिनों में इन्होने विश्वविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का सम्पादन भी किया|

अमित कुमार सिंह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं|

इनकी कवितायेँ और लेख अनुभूति, हिंदी चेतना, दैनिक जागरण, सुमन सौरभ, कल्पना, हिंदी नेस्ट , वेब दुनिया, भोज पत्र, भोजपुरी संसार , रचनाकार एवं अनेकों पत्रिकाओं में छप चुकी है|

पिछले कई वर्षों से ये कनाडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका हिंदी चेतना से जुड़े हुए हैं|

इनकी पेंटिंग्स टाटा कंपनी की मैगज़ीन में कई बार प्रकाशित हो चुकी है और देश विदेश की कई वर्चुअल आर्ट गैलरी में प्रकाशित हैं |

दो बार ये अपने तैल्य चित्रों की प्रदर्शनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के ऑफिस प्रांगड में लगा चुके हैं |

वर्तमान में ये हॉलैंड में कार्यरत है और हॉलैंड से प्रकाशित होने वाली हिंदी की प्रथम पत्रिका अम्स्टेल गंगा के प्रधान सम्पादक और संरक्षक हैं |

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