एक संस्मरण – कुवैत

मैं पिछले २ सालों से कुवैत में रह रहा हूँ। जब मैं पहली बार कुवैत में आया तो सद्दाम हुसैन की याद आयी। जिसने कुवैत पर अपना पूर्ण नियंत्रण किया था। मैं सोच रहा था की कुवैत की दशा कैसी होगी। पर कुवैत तेल के पैसों पे सवार तीव्र गति से विकास कर रहा है। हवाई पट्टी की तरह चौड़ी और मक्खन की तरह चिकनी सड़कें। ऊँची-ऊँची गगन चुम्बी इमारतें। बड़े-बड़े शौपिंग मॉल। संध्या पाश्चात अन्धकार को निगलता सड़क का प्रकाश प्रबंध पुरे कुवैत को जगमग-जगमग कर देता है, और अन्य बहुत सारी विशेषताएं कुवैत के विकसित देश होने का प्रमाण देती हैं।

मैं पहली सुबह जब अपने कार्यालय को निकला तो आश्चर्य चकित रह गया। आश्चर्य इस लिए की मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं वाराणसी से बाहर हूँ। जहाँ देखो भारतीय लोग दिख रहे थे। हाँ कुछ अमेरिकन, कुछ यूरोपियन, कुछ और देशों के लोग भी दिख रहे थे, जोकि वाराणसी में विदेशी पर्यटकों की भीड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। अब मैं ये सोचने लगा की यहाँ के मूल निवासी कहाँ हैं? कुछ समय तक गौर करने पे ये महसूस हुआ सड़क पे दौड़ती प्राडो, लेक्सस, बी एम डब्लू, फेरारी अदि मोटर कारों में प्रायः कुवैती नागरिक ही सवार हैं।

शुरुआती दिनों में मैंने परिवहन के लिए टैक्सी का उपयोग किया। फिर लगभग १ साल ५ महीनों बाद मेरा कुवैती कार चालन अनुज्ञा पत्र बन गया। मैंने नयी टोयोटा कोरोला कार ले ली। मेरे कुछ भारतीय दोस्त पहले से ही अपनी कार चलाते थे। उन्होंने मुझे सचेत किया की कुवैत में गाड़ियां बहुत ही तीव्र गति से चलती हैं। भारतीय और अन्य बाहरी नागरिक अनुशासित चालन करते हैं, पर कुवैती लोगों का चालन कम अनुशासित और गति सीमा के उल्लंघन से भरा होता है।

जैसा की मेरे साथियों ने समझाया था, मैं पूरी सावधानी से गाड़ी चलाता था। फिर लगभग ७ महीनों बाद, ७ मार्च, २०१३, दोपहर के ३:३० बजे मेरी कार पहली बार दुर्घटना ग्रस्त हुई। सड़क पे किनारे एक लोहे का गटर का ढक्कन पड़ा था, जो एक कार ओवरटेक करते समय अचानक से मेरे सामने आ गया। मैंने गाड़ी तो संभाल ली पर मेरी गाड़ी के दाहिने पहिये उस ढक्कन पे चढ़ते बने। भाग्य से मुझे या किसी और को क्षति नहीं पहुँची, पर मेरी कार क्षतिग्रस्त हो गयी। कार के दोनों दाहिने पहियों के रिम विकृत हो गए, साथ ही साथ पिछले दाहिने पहिए से हवा भी निकल गयी। मैंने कार किनारे लगा ली ताकि बाकि आने जाने वाले वाहनों को रुकावट न हो। अब कुवैत के नियमानुसार मैंने यातायात आरक्षी को कॉल किया। समय हो रहा था ३ बज के ३८ मिनट। मुझे क्षति को ठीक करने के लिए बीमा का पैसे आरक्षी विवरण दिखा के ही मिलता। बहुत समय बीत गया और अब समय हो रहा था शाम का ५ बज के १५ मिनट। पिछले १ घंटे ३८ मिनट में मैंने यातायात आरक्षी को ५ बार कॉल लगाया। हर बार यही उत्तर मिला की बस १५ मिनट में यातायात आरक्षी वाहन वहाँ पहुँच जाएगी फिर आपकी गाड़ी की क्षति विवरण दे दिया जायेगा। अब ५:३० हो गया था और मैंने आरक्षी की आस त्याग दी थी। जैसे जैसे शाम ढल रही थी तापमान गिरता जा रहा था और शीत हवा का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। उस पर आरक्षी वाहन को देखने के लिए मैं बाहर ही खड़ा था।

मैंने अपने टैक्सी चालक दोस्त, ‘प्रकाश’ को कॉल किया और सारा हाल सुनाया, प्रकाश जी ने मुझे वहीँ प्रतीक्षा करने को कहा। वो १० मिनट में अपने साथ टोइंग गाड़ी ले आए। उन्होंने मुझसे पूछा की और पहले कॉल क्यों नहीं किया? मैंने कहा की बिना आरक्षी विवरण के कोई काम नहीं होता यहाँ इसलिए मैंने सोचा की पहले तो वही लोग आएंगे। प्रकाश जी कहा; अमित भाई जब भी कभी ऐसा हो तो पहले मुझे कॉल कीजिये। मैंने उनसे कहा; मैं पिछले २ घंटे से आरक्षी को कॉल कर रहा हूँ पर कोई नहीं आ रहा। प्रकाश जी ने कहा; आपने किसी और गाड़ी को नुकसान नहीं पहुँचाया और आप यातायात को भी बाधित नहीं कर रहे फिर वो क्यों आएंगे। मुझे वाराणसी की याद आ गयी, वहाँ भी यातायात आरक्षी की हालात डामाडोल है, वे तभी आएँगे जब पैसे कमाने को मौका दिखेगा।

फिर मैं उनकी कार में बैठा और मेरी कार को टोइंग गाड़ी पे रखा गया। अब हम निकटतम थाने पे गए, वहां हमने आरक्षी को अपनी गाड़ी दिखाई और सारा किस्सा सुनाया। उसने हमें क्षति विवरण एक सील बंद लिफाफे में दिया और कहा इसे ले कर एक दुसरे थाने पर जाना होगा, वो आपको अंतिम विवरण देगी। अब समय रात का १० हो गया था और दिन था बृहस्पतिवार, कुवैत में शुक्रवार और शनिवार साप्ताहिक अवकाश रहता है। अर्थात अंतिम विवरण के लिए मुझे दो दिन और प्रतीक्षा करनी थी। इतना ही नहीं, इन दो दिनों तक मैं अपनी गाड़ी को बनवा भी नहीं सकता था। मैंने सोचा की पिछले ७ घंटों में मैं ऐसे ही ७ साल जी चूका हूँ, अब दो और दिन में तो दो जन्म बिताने पड़ेंगे। मैंने प्रकाश जी से पुछा की कुल कितने दीनार लगेंगे गाड़ी बनवाने में। उन्होंने बताया की लगभग २० दीनार। मैंने मन ही मन सोचा की २० दीनार ४००० हज़ार रुपये होंगे और मैं दो दिनों में दो और जिंदगी नहीं जीने के लिए इतने रुपये तो अपने खलीते से दे ही सकता हूँ।

हमने रात में गाड़ी वहीँ थाने पे छोड़ दी और प्रकाश जी ने मुझे मेरे निवास पहुंचा दिया। अगले दिन वो अपने साथ एक कार मिस्री को ले आए, उसने थाने पे ही पिछला पहिये को स्टेपनी से बदला। फिर मैंने अपनी कार तो खुद चला के प्रकाश जी के बताये गैरेज में ले गया, वो भी अपनी कार में आए। वो गैरेज वाला उनका मित्र था। अगले १ घंटे में २१ दीनार का काम हुआ मेरी कार पे, अब मेरी कार बिल्कुल ठीक हो चुकी थी।

मैंने प्रकाश जी को ह्रदय से धन्यवाद् दिया और अपने निवास की ओर चल पड़ा। रास्ते में मेरे दिमाग में यही ख्याल आ रहा था की बाहर देश में एक भारतीय ही दुसरे भारतीय के काम आ सकता है। और मैंने अपने कान पकड़े की अब कुछ भी हो जाए, कितनी भी देर हो रही हो मैं अपनी कार मध्यम गति से ही चलाऊँगा। घर पहुँच के मैंने संकट मोचन भगवान हनुमान और भोले नाथ को मेरी और दूसरों की जान बचाने के लिए धन्यवाद कहा।

- अमित सिंह 

फ्रांस की कंपनी बेईसिप-फ्रंलेब के कुवैत ऑफिस में में सीनियर पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट के पद पे कार्यरत हैं |

हिंदी लेखन में रूचि रहने वाले अमित कुवैत में रहते हुए अपनी भाषा से जुड़े रहने और भारत के बाहर उसके प्रसार में तत्पर हैं | 

 

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