दिन के पास थीं दास्तानें कितनी
संजोये थी रात भी ख्वाब हसीं
कहने खूबसूरत किस्से थे
और
सुननी रुबाइयाँ थीं कुछ भीनी सी
लो फिर
ठिठक ही गया चाँद
रुपहली खिड़की पर कुछ पल..
चाँदनी छन्न से बिखर गयी
नदियाँ हँस पड़ीं खिलखिलाकर
जरा अकड़ तन गया पर्वत कोई
घाटियों ने गहरी साँसे लीं
दरख्तों ने धरी होठों पे उँगलियाँ
शांत हुए भंवरे
चंचल तितलिओं की धमाचौकड़ी भी
थम गयी बेसाख्ता
मद भरा इंतज़ार था।
झुक सा गया कुछ आसमां
धरा चिहुंकी, थरथरा गयी
कुछ दरका, चटखा भी कहीं कुछ
थोड़ा सा लहका,तो बरस भी गया
ज्वार उफना…उतर गया
कहीं
कुछ अधजला
अधबुझा सा
सुलगता ही रह गया
गहरा निश्वास ले
हवाएँ आगे बढ़ गयीं
बस
चाँद के दिल मे एक कसक बाकी रह गयी।
-डॉ छवि निगम
परिचय: एक शिक्षाविद के रूप में कार्यरत (नोयडा) , एक सम्वेदनशील सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता एवं एक उत्साही लेखिका ।कई उत्कृष्ट रचनायें विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित , हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओँ में अनेक विधाओं में सक्रिय लेखनरत-जिनमे विचारोत्तेजक एवं व्यंगात्मक लेख, कहानियाँ एवं कविताएँ शामिल है, जिनका सतत प्रकाशन विभिन्न समाचारपत्रों पत्रिकाओं व संकलनों में होता आ रहा है।